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दादी मां.

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एक बार दादी मां का अपनी बेटी के घर आना हुआ, अब दो दिन रह कर दादी मां अपने घर रोहतक जाने के लिये तेयार हुयी, बच्चो के पास समय नही था इस ९० साल की बुढिया दादी मां के लिये, ओर दादी मां दिल्ली से रोहतक के लिये चली......
दादी मां को उस की बेटी ओर दामाद दिल्ली बस अड्डे पर रोहतक की बस मे बिठा कर ओर टिकट वगेरा ले कर देदी ओर समझा दिया की रोहतक पहुचते ही आप का बेटा आप कॊ बस मे से उतार लेगा आप बेफ़िकर हो कर बस मे बेठना, बाकी कई ओर बाते समझाई, राम राम , पेरी पोना हुआ ओर बस रोहतक के लिये चल पडी...... अभी बस को चले थोडी देर हुयी कि बस रुकी, दादी कंडेकट्र से बोली, बेटा बाहदुर गढ आ गया क्या( यह बाहदुर गढ दिल्ली ओर रोहतक के बीच मे हे) तो कंडॆकट्र बोला अम्मा अभी नही आया, बस चली थोडी देर बाद सवारी लेने के लिये फ़िर रुकी,दादी ने फ़िर से पुछा बेटा बहादुर गढ आ गया, कंडेकट्र बोला नही मां जी अभी नही.
यु कई बार हुआ, ओर अब कंडेकट्र को थोडा गुस्सा आ गया, एक बार फ़िर बस रुकी दादी फ़िर से बोली बेटा अब तो लगता हे बहादुर गध आ ही गया, तो कंडेकट्र गुस्से से बोला मां तु चुपचाप बेठ जा जब भी पेसे का हिसाब करने लगता हु तु बोल पडती हे,ओर मेरा सारा हिसाब किताब खराब हो जाता हे,जब भी बहादुर गढ आया तो बता दुगां , अब मत बोलना,दादी मां थोडी सहम गई ओर उस की आंखॊ मे दो आंसु आगये.
ओर अन्य लोगो ने कंडेकट्र कॊ उस की बतमीजि पर गुस्सा किया, कब बहादुर गढ आया कब निकल गया पता ही नही चला सब लोग मस्त थे, आगे संपला आगया तो कडेकट्र को याद आया अरे इस बुढिया को तो बहादुर गढ उतरना था, अगर किसी भी यात्री को याद आ गया तो मेरी पिटाई हो जायेगी,
ओर कंडेकट्र ने ड्राईवर से बात की ओर बस वापिस मोड ली, बहादुर गढ पहुच कर कंडेकट्र बोला अम्मा बहादुर गढ आ गया !!!! दादी बोली अच्छी बात हे बेटा यह ले गिलास ओर पानी का भर ला मेरी बेटी ने कहा था जब बहादुर गढ आ जाये तो यह गोली खा लेना....
ओर अब कंडेकट्र अपना सर पकड कर बेठ गया........ :)-

हमारा तिरंगा झंडा कब बना ओर किस ने चुना इस का रंग

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बात बहुत पुरानी हे, एक बार राजा राम मोहन राय जी इग्लैंड जा रहे थे, रास्ते मे उन्होने ने फ़्रांस का शिप देखा जिस पर एक तिरंगा फ़्रांस का लहरा रहा था, यह बात हे करीब १८३१ की, ओर १८५७ मे भारत मे क्रन्ति हुयी ओर जनता मे आजादी के मतवाले झुम उठे, ओर फ़िर यह तिरंगा तब से चला, लेकिन समय के साथ साथ इस मे कई तब्दीलीया होती रही,
ओर फ़िर स्वदेशी अन्दोलन ने जोर पकडा तो एक राष्ट्रीया धवज की जरुरत पडी,तो स्वामी विवेकानन्द जी की शिष्या निवोदिता जी ने इस झण्डे की परिकल्पना की, ओर ७ अगस्त १९०६ को कोलकता मे एक रेली मे बंगाल के विभाजन के बिरोध मे इसे लहराया गया।
ओर फ़िर इस मे काफ़ी परिवर्तन हुये , ओर भारत मे एक धव्ज समिति का गठन किया गया, जिस के अध्यक्ष डाक्टर राजेंद्र प्रसाद जी थे, ओर एक बेठक मे यह तह किया गया कि राष्ट धव्ज के रुप मे एक तिरंगा कुछ हो, ओर उस मे आशोक चक्र बीच मे हो, ओर कुछ चरचा ओर परिवर्तनो के बाद आज के तिरंगे का फ़ेसला हुआ, जो आज हमारे सामने हे

गोल गपे

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बीबी अपने पति से, एक बात बोलू मारोगे तो नही.....
पति , अरे केसी बात करती हॊ बोलो...
बीबी, मै मां बनाने वाली हूं.....
पति, अरे इस मे मारने वाली क्या बात हे यह तो खुशी की बात हे....
बीबी, हां लेकिन एक बार जब मे कालिज मे थी ओर यह बात पापा को बोली थी तो....पापा ने बहुत मारा था।
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ताऊ, बचपन मे मां की बात सुनी होती तो .... यह दिन ना देखना पडता!!!!!
तिवारी, क्या कहती थी तुम्हारी मां ???
ताऊ, अरे बाउली बुच जब बात सुनी ही नही तो मुझे क्या पता मां क्या कहती थी।
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बीबी , सुनो जी ड्रा० ने मुझे एक महीना किसी हिल स्टेशन पर जाने को कहा हे, पुरा एक महीना....ओर हम कहा जायेगे ?
पति, दुसरे ड्रा० के पास।
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संता होटल मे जा कर एक मच्छ्ली खाने के लिये आर्डर करता हे, थोडी देर मे वेयर आता हे... सर आप फ़ेंच मच्छी लेगे या स्पेनिश ??
संता, ओये यार कोई सी भी ले आ मेने कोन सी उस से बातें करनी हे.

दादी मां

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आईये आप कॊ एक दादी मां की बात बतायें.....
दिल्ली से रोहतक जाने के लिये एक बुढिया दादी मां जो करीब नव्वे साल के करीब थी, ओर पतला सा शरीर ओर बेचारी से चला भी मुश्किल जा रह था, बच्चो ने शायद मना कर दिया, सो दादी मां अकेली ही दिल्ली बस स्टेंड पर खडी, जब भी बस आये तो दादी मां बस के पिछे भागे उसे पकडने के लिये, फ़िर भीड मे वह बेचारी बस मे ना चढ सके बहुत देर से ऎसा हो रहा था, ओर एक नोजवान ने जब देखा की बुढिया दादी मां इस उम्र मे तो बस नही पकड सकती. तो उसने बस आने पर बुढिया दादी मां को गोद मे उठा कर बस मे बिठा दिया.
अब दादी मां बहुत खुश हुयी, ओर उस नोजवान के सर पर हाथ फ़ेर कर आशिर्वाद ओर दुआ देने लगी...
बोली बेटा तेरा भगवान भला करे मे तो बहुत देर से बस मे चढने की कोशिश कर रही थी, तेरी मदद से बस मे चढ गई, जीते रहो, खुब खुशियां मनाओ बेटा, जेसे तुम ने मुझे उठा कर बस मे बिठाया, वेसे ही भगवान तुम्हे उठाये, जुग जुग जीयो मेरे लाल......

एक छोटा सा सवाल

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चलिये आज आप से एक छोटा सा सवाल पुछते हे, बताओ तो जाने.....
सवाल .....
एक आदमी के पास आठ वजन हे, सात वजन दस द्स किलोग्राम के हे, ओर एक वजन का भार नो किलो नॊ सॊ नव्वे ग्राम (990 ग्राम) हे, लेकिन सभी वजन देखने मे एक साईज के हे, अब आप ने इस कम वजन वाले भार को इन मे ढूंढना है, ओर आप इन्हे सिर्फ़ दो बार ही तोल सकते हे, तो बातईये केसे इस कम वजन वाले भार को सब से अलग करेगे????

उलटा चोर कोतवाल को डांटे

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आज आप को दो चुटकले सुनाते हे लेकिन पढने से पहले देख ले आप के साथ कोई ऎसा व्यक्ति तो नही जिस के सामने आप कुछ खास बात ना पढ सके, तो अभी यहां से लोट जाये.....
धन्यवाद
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एक आदमी की टांग किसी दुर्घटना मे कट गई, वह आदमी जब होस्पिटल मे था तो ऎक ड्रा० ने उस से कहा मे हमेशा नये प्रयोज करता हु, मे आप की कटी टांग फ़िर से जोड सकता हु? वह आदमी वोला केसे तो ड्रा० उसे वोला मे आप की कटी टांग पर किसी जानवर की टांग फ़िट कर दुगां, जेसे किसी बडे कुत्ते की टांग, तो वह आदमी बोला अगर मेरी कटी टांग पर कुत्ते की टांग लगा दी तो क्या मे..... ड्रा० बीच मे ही बोल पडा हां हां तुम बिलकुल सही चल पाओगे, लेकिन समय लगेगा, तो वह आदमी बोला लेकिन ड्राओ साहिब लोग क्या बोले गे.
ड्रा० बोला अरे तुम पेंट पहनोगे, नीचे स्पेशल बुट लोगो को तो पता भी नही चलेगा कि तुम्हारे नकली टांग लगी हे, ओर बहुत सी बाते करने के बाद वह आदमी तेयार हो गया.ओर ड्रा० ने उस का ओपरेशन करके कुते की टांग लगा दी, ओर १५ दिन के बाद उसे छुट्टी दे दी, साथ ही ड्रा० बोला भाई अब आप ने ६ महीने बाद चेक करवाने आना हे....
ठीक ६ महीने बाद मरीज ड्रा० के पास चेक करवाने आया, तो ड्रा० ने पुछा सब ठीक हे ना, तो वह आदमी बोला ड्रा० साह्ब बाकी तो सब ठीक हे लेकिन जब मे पेशाब करने जाता हु तो......... मेरी यह वाली टांग जो आप ने लगाई हे ऊपर उठ जाती हे.....कुत्ते की तरह से.
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एक बच्चा दोपहर को स्कुल से घर आया ओर मां से बोला ममी ममी आज मेने पापा को राधा आंटी के साथ देखा,मां ने पुछा कहा, बेटा बोला मां पार्क मे , पापा उस की चुम्मी ले रहे थे, ओर बांहो मे ले रहे थे......... मां बोली अभी मत बताओ सारी बात रात को जब सब खाना खाये तो बताना.
रात को सब लोग खाने के लिये मेज पर आये, मां ने जब खाना डाल दिया तो बोली बेटा बो वाली बात क्या थी ??
बेटा बोला मां मां आज मेने ना पापा को देखा, मां कहा देखा था, बेटा मां स्कुल के साथ वाली पार्क मे , (पापा चुपचाप सुन रहे हे) ओर ममी साथ मे राधा आंटी भी थी, फ़िर बेटा क्या हुआ मां ने पुछा, फ़िर मां पापा उसे बांहो मे पकडने लगे, फ़िर उस की चुम्मी ली, मां अच्छा ओर पति को ओर देख कर बेटा फ़िर क्या हुआ ? ममी फ़िर पापा ओर आंटी झाडियों की तरफ़ चले गये ओर जाते जाते माली को ५० रुपये दे गये, मां ने पुछा बेटा फ़िर क्या हुआ ? फ़िर ममी पता हे पापा ने अपने सारे कपडे उतार दिये, ओर आंटी ने भी .... अच्छा मां हेरान हो कर फ़िर क्या हुआ बेटा................................ ममी वही जो आप रमेश अंकल के साथ करती हे पापा ने भी बही किया

भांगडा पालो

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आईये आप को भगंडा करवाये अरे यानि आप को भंगडे के गीत सुनाये, एक से बड कर एक ओर एक नही बहुत से , तो आप सुनाने के लिये तेयार हे....

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भंगडा पालो २
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कुछ ऎसे गीत शायद ही आप ने सुने हो.

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जी यह हे ऎसे भुले विसरे ओर मधुर गीत जो आप ने शायस्द ही कभी सुने हो... लेकिन बहुत ही सुन्दर, तो सुनिये फ़िर बाताईये केसे लगे.....

क्या मे आत्मह्त्या कर लू ?? अन्तिम भाग

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आप ने पहले भाग मे जो पढा हे उस से आगे ....
पिछले दो सप्तहा केसे बीत गये पता ही नही चला, सब से ज्यादा खुशी मां को थी, लेकिन पिता जी भी कम खुश नही थे, आने जाने वाले सभी कहते थे कि चंदु की मां अब तो तुम ओर भी सुन्दर लगने लगी हो, तो कोई कहता, चंदु के पिता जी तो अब जवान लगते हे, घर मे खुशिया ही खुशियां, दुखी थे तो मेरे मित्र, क्योकि मेने अब उन के पास जाना बहुत कम कर दिया था, दफ़तर से सीधा घर, फ़िर शाम को घुमने जाना, मां अपनी पसंद से नयी नयी साडियां गहने देती , ओर बाहर जाने से पहले पता नही केसे केसे टोटके करती, कभी कान के पीछे काला रंग लगा देती तो कभी कुछ।

फ़िर हम दोनो कुछ दिनो के लिये गोवा घुमने गये, वहां हम १५,२० दिन के करीब रहे खुब मस्ती की, मे खुद पर हेरान था, मेरे जेसा चुप रहने वाला लडका अब नटखट बन गया था, अरे मे अपनी दुल्हनिया का नाम तो बताना ही भुल गया, मेरी उन का नाम पुनम (कलप्नित नाम) हे, मेरी तरह से पुनम भी बहुत ही खुश थी,हम लोगो ने यहां खुब खरिदारी की, कुछ समान मां के लिये तो कुछ समान पिता जी के लिये भी हम दोनो ने अपनी दोनो की पंसद का लिया ओर, फ़िर एक दिन घर वापिस चल पडे।

घर पर मां ओर पिता जी बहुत ही बेचेनी से हमारा इन्तजार कर रहे थे, शाम को दीदी भी बच्चो के साथ गई( इस बीच मे अपनी ससुराल मे एक बार पुनम के साथ एक दिन रह आया था) दुसरे दिन मेरी मां दीदी ओर पुनम बाजार गये ओर वहां से कुछ गहने, ओर साडियां खारीद लाये, अगले दिन एक रस्म होती हे जिस मे नयी दुलहन को रासॊई मे जाना पडता हे, फ़िर उस के बाद वह किसी भी समय रसोई मे जा सकती हे, फ़िर दुसरे दिन यह रस्म भी पुरी हो गई, ओर मेरी दीदी , मां ओर पिता जी ने पुनम को आशीवाद दिया ओर बहुत से उपहार भी दिये, साथ मे मां ओर पिता जी ने कहा की तुम इस घर मे बहु बन कर नही मेरी बेटी बन कर रहना।

कुछ दिन सब ठीक ठाक चला, एक दिन पुनम का भाई उसे लेने आया तो मेने एक दम से मना कर दिया, लेकिन मां ओर पिता जी के सामने मेरी एक ना चली, ओर पुनम भी अनमने मन से मायके चली गई, उस दिन घर मे किसी ने भी ढग से खाना नही खाया।

कई बार फ़ोन किया तो हर बार मेरी सास यही कहती बेटा थोडे दिन ओर रुक जाओ, फ़िर एक महीना बीत गया तो मॆ मां ओर पिता जी की इजाजत ले कर एक दम से ससुराल मे पहुच गया, मुझे अचानक देख कर सभी पहले तो हेरान हुये, फ़िर खुश भी हुये, दुसरे दिन मे पुनम को ले कर घर गया, ओर फ़िर से जिन्दगी वेसे ही चल पडी,एक साल बीत गया मेरी शादी को, इस बीच एक दो बार पुनम अपने मायके हो आई थी,लेकिन जब भी गई कुछ बदली बदली लगती थी, हम सब ने सोचा शायद अपने मां बाप के लिये उदास हो गई हे

इसी बीच मां ने एक दिन बताया की मे दादी बनने वाली हु,फ़िर क्या था पुनम का बहुत ही ज्यादा ख्याल रखा जाने लगा,ओर ठीक समय पर हमारे घर पर नया मेम्बर गया यानि मेरा बेटा, सभी बहुत खुश थे, नाना नानी भी आये ,फ़िर अगले साल एक कन्या ने जनम लिया, सो मां ओर पिता जी की खुशी का अन्त नही था ,
इसी तरह से मेरी शादी को तीन साल बीत गये ओर खुशियो मे जेसे हम गम नाम को भुल ही गये,लेकिन पुनम अब पहले जेसी नही रही थी, काफ़ी चिड चिडी ओर बात बात मे गुस्सा करने लगी थी,मुझे मां कहती थी बेटा बच्चे छोटे हे इस लिये थोडे दिनो मे अपने आप ठीक हो जाये गी, लेकिन अब पुनम ठीक होने के वजायए ओर भी बदजुबान होती जा रही थी।

फ़िर एक दिन मुझे बोली आप अलग मकान क्यो नही ले लेते, मेरा यहां दम घुटाता हे, मेने पुछा क्या मां या पिता जी ने तुम्हे कुछ कहा हे, तो बोली नही ... ओर मेने उसे समझाया देखो आईंदा ऎसा विचार भी मन मे मत लाना, मे अकेला ही इन का सहारा हू, ओर मे सपने मे भी नही सोच सकता।

फ़िर समय बीतता रहा, अब मेरी शादी कॊ पांच साल हो गये थे, ओर मेरा घर पुरी तरहा से नरक बन चुका था, पुनम मेरे समझाने से ठीक हो जाती , मायके जाती तो दुसरे दिन ही घर मे आते लडने लगती,
अब बच्चे भी सब देखते ओर सहम जाते। मेने अभी तक पुनम से बहुत ही प्यार से बात की , उसे सब तरह से समझाया, एक दिन दोपहर को घर आया तो देखा पुनम अपने कमरे मे आरम से सो रही हे, ओर मां घर मे फ़र्श साफ़ कर रही हे,इस के बाद कई बार ऎसा देखा ओर फ़िर मेने पुनम को प्यार से समझाया तो मेरी बात सुने बिना बोली मुझे नोकरानी बना कर लाये हो कया, जब मेरा अपना घर होग तो देखा जाये गा,

फ़िर एक साल से पुनम ने मां ओर पिता जी को भी बद जुबान से बद जबाब देने शुरु कर दिये, एक दिन इसी कारण पिता जी को दिल का दोरा पडगया, ओर मेरी मां का चेहरा देख कर लगता हे की कोई सॊ साल की बुढिया हे, ओर अब पुनम ना तो बच्चो को समभालती हे, ना ही घर का कोई काम, एक दिन तो हद हो गई, उस के भाई ओर पिता जी एक थाने दार के साथ आये ओर धमकी दे गये की अगर मेरी बेटी को कोई दुख दिया तो सब को जेल मे भेज दुगां

एक दिन जब मे पुनम को समझा रहा था तो वह जोर जोर से बोलने लगी, फ़िर अपने ऊपर मिठ्ठी का तेल डाल कर बोली मे तो मरुगी तुम सब को भी जेल मे चक्की पिसवाऊगी उमर भर, ओर अब यह हाल हे कोई भी पडोसी हमारे यहां नही आता, अगर कोई भुल से आ जाये तो अपनी बेज्जती पुनम से करवा कर जाता हे।
बहुत समझाया, लेकिन मेरे समझाने को शायद मेरी या मेरे मां ओर पिता जी की कमजोरी समझती हे,मां ओर पिता जी नही चाहते उसे तालक दु, मे भी नही चाहता, लेकिन घर जाता हु तो लगता हे किसी नरक मे आ गया, करु ओ कया करू, दिल करता हे जहर खा कर मर जाऊ, साथ मे मां ओर पिता जी ओर बच्चो को भी जहर दे दु, समझ मे नही आता मेरी खुशियो मे किस की नजर लगी, मां ओर पिता जी से अलग हो जाऊ तो इस उमर मे वो क्या करे गे, किस के सहारे रहे गे, मे मां बाप को भी नही छोड सकता, मुझे एक ही रास्ता दिखता हे आत्म हत्या, लेकिन पिता जी के असुल सामने आते हे , अब तो नोकरी भी मुस्किल लगती हे रोजाना वहां भी गल्तिया हो रही हे,
आप कोई अच्छी सलाह दे सके तो आप सब की मेहर बाणी हो गी

मेने आज तक पुनम पर कभी हाथ नही उठाया,उसे कभी गाली नही दी, क्या मेरी पुनम बदल गई हे????

रफ़ी जी के हिट गीत ०४

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आईये आप को कुछ ओर रफ़ी जी के हिट, सदा बहार गीत सुनाये,बहुत ही सुन्दर, मन भावन, ओर आप के मुड कोसही रंग मे लाने के लिये तो सुनिये रफ़ी जी के यह गीत......


क्या मे आत्महत्या कर लू ?

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यह मेल मुझे काफ़ी दिन पहले मिला था, लेकिन समय की कमी के कारण पोस्ट ना कर सका, आज इसे पोस्ट कर रहा हू,


मेरे इस बांलाग का मकसद यही हे की, इस मे मॆ लोगो के दिल का दर्द आप सब के सामने रखू, कहते हे ना खुशी बाटने से बढती हे, ओर दुख बांटने से कम होता हे, तो क्यो ना हम यह दुख इसी बहाने एक दुसरे से बांटे, मेरे किसी भी लेख मे आप को आशीलता नजर नही आयेगी, अगर कोई बात ऎसी होगी भी तो छुपे शव्दो मे, ओर इस बांलग पर जितने भी ऎसे लेख पोस्ट होते हे, वह उस लॆख भेजने वाले की इच्छा से ही होते हे,





आप जो भी सलाह टिपण्णई के रुप मे यहां देते हे वह सीधे उन तक पहुचती हे,आज का लेख अपनी तरह का एक अलग सा हे, ओर मेरा मकसद यह भी हे की ऎसे लेख जो यहां पोस्ट होते हे, शायद आप मे से भी किसी की यही मुसिबत हो तो आप को भी कोई नेक सलाह मिल जाये।





पिछले लेख मे डा० अमर जी ओर राम्पुरिया जी की सलाह उन साहब को बहुत उचित लगी ओर उन्होने दिल से आप सब को ओर डा० अमर जी, ओर राम पुरिया जी धन्यवाद दिया हे, ओर आने वाले समय मे एक अच्छा इन्सांन बनने का वचन दिया हे





आज का लेख एक सज्ज्न जो २९ साल के हे, इन का कल्पनित नाम चंदू लाल जी रख लेते हे,इन के दो बच्चे हे, पहला बच्चा ४ साल का ओर दुसरा बच्चा ३ साल का, इन के एक बडी बहिन हे, जो अपने ससुराल मे सुखी हे, माता पिता के साथ यह अपने परिवार समेत रहते हे, इन के पिता २ साल पहले सरकारी नोकरी से रिटायर हुये हे, मां बिमार रहती हे, ओर इन की बीबी भी घर मे ही रहती हे यानि घरेलू पत्नि (हाऊस बाईफ़) हे।





तो अब चलते हे इन की कहानी की ओर , अगर आप किसी के पास इन की मुसिबत का कोई रास्ता , उपाय,विधि हो तो आप इन की मदद जरुर करे।





चंदु लाल जी का कहना हे की इन के पिता बहुत ही सज्जन, ईमान दार ओर असुलो के पक्के इंसान हे, मेरी बहिन की शादी मे हमारे पिता जी ने एक पेसा भी दहेज नही दिया, ओर बहुत ही साधारण शादी की, आठ साल के करीब हो गये हे बहिन की शादी को वह अपने घर मे सुखी हे, बहिन की शादी के करीब दो साल बाद इन की शादी की बाते घर मे होने लगी थी.





पिता जी की सभी लोग, इज्जत बहुत करते हे, इस लिये अच्छे अच्छे (अच्छे का मतलब अमीर नही) घरो से एक दो रिश्ते आये, तो पिता जी की एक ही बात थी जब लडकी देखने जाना हे तो ना नही बोलनी,उस से पहले अपने घर मे सारी बात कर लो, दहेज भी बिलकुल नही लेना,ओर शादी भी बिलकुल साधारण होनी चहिये, लडकी के खान दान का पता लगा कर ही बात आगे बढेगी,एक दो लडकियो के फ़ोटो सभी ने देखे, एक सुन्दर सी लडकी सभी को पंसद आ गई, पतला शरीर, रंग सावला लेकिन देखने मे सुशील ओर शांत, बहिन ओर जीजा जी ओर उन के परिवार मे भी फ़ोटो दिखाई सब को पंसद आ गई, चन्दू लाल जी भी शर्मा कर हा कर रहे थे, लेकिन अंदर ही अंदर बहुत खुश।





पिता जी ने अपने तरीके से लडकी के परिवार के बारे पता किया, तो पिता जी भी निश्चिन्त हो गये, फ़िर एक दिन चंदु लाल जी , माता पिता ओर अपनी प्यारी बहिन के साथ बात पक्की करने गये,ओर वहां से सभी खुशी खुशी लोटे,फ़िर सगाई ओर एक दिन शादी भी हो गई, चन्दू लाल जी के घर पर बहुत रोनक थी, सभी मां को बधाई दे रहे थे, कि अब एक बेटी गई तो दुसरी आ गई, ओर चंदु लाल जी की माता का स्व्भाव भी बहुत ही अच्छा था, आज तक मुहहले मे किसी से ऊची आवाज मे बोली तक नही थी





बिलकुल सीधी साधी, लेकिन आज उसे कुछ सुझ ही नही रहा था, आज तो उस के पांव भी जमीन पर नही पड रहे थे, कभी इधर कभी उधर, सच मे आज चंदु लाल जी की मां फ़िर से जवान हो गई थी,करीब ४,५ दिन घर मे रोनक रही फ़िर सभी मेहमान जाने लगे, ओर आज बुआ भी अपने बच्चो के साथ चली गई , ओर शाम को दीदी भी जाने वाली हे, लेकि उस से पहले कुछ राश्मे पुरी करनी थी सो दीदी ओर बुआ ने सुबह सुबह ही कर ली, ओर शाम को दीदी को जीजा जी भी ले गये ।



अब घर पर हम चारो थे, मां ,पिता जी , मे ओर मेरी दुलहन, कभी कभार आस पडोस वाले बधाई देने आ जाते थे,हम सब थक भी बहुत गये थे, लेकिन घर मे काम भी बहुत बिखरा था, धीरे धीरे घर का सारा काम भी हो गया, फ़िर इस बीच कब दो सप्ताह बीत गये पता ही नही चला,

आखरी ओर अगला भाग कल सुबह

वेसे तो यह बात इतनी लम्बी नही हे लेकिन मे इसे एक कहानी के रुप मे लिख रहा हु, इस लिये आप सब से निवेदन हे की गल्तियो को माफ़ करे, ओर अपनी सही राय दे, शायद आप की सलाह से किसी का घर बच जाये, किसी की जिन्दगी सुधर जाये,यह सब हमारे किसी के साथ भी हो सकता हे

मैं कहता हूं कि आप अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में लिखें।उनको गरज होगी तो वे हमारी बात सुनेंगे। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा।*जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे तो हिंदी भाषा का दर्जा बढ़ेगा। महात्मा गांधी अंग्रेजी का माध्यम भारतीयों की शिक्षा में सबसे बड़ा कठिन विघ्न है।...सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"महामना मदनमोहन मालवीय