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बेचारा गरीब मजदुर????

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हमारे भारत देश मै तो सच मै एक मजदुर  बेचारा ओर गरीब ही है, जो सारा दिन कडक्ती धुप मैकाम करता है, लेकिन उसे शाम को भर पेट रोटी भी नसीब नही होती, सारा दिन काम करने  के बाद उसे ८०,९० रुपये मिलते होंगे,अगर वो बीमार हो जाये ,या उस का बच्चा, बीबी, मां बाप कोई भी बीमार हो जाये तो उस बेचारे का क्या होगा? भगवान जाने? ओर हमारे मजदुर के पास कपडे भी कहा ठंग के होते है....... जो दुसरो को छत बना कर देत है वो खुद बिना छत के सोता है,

मेरे पडोसी के घर मै गेराज बन रहा है, वो खुद भी एक मजदुर ही है, आज सुबह से ही बहुत आवाजे आ रही थी, मेने देखा तो दो तीन लोग काम कर रहे थे, तो मेरे ब्लागिंग वाले दिमाग मै झट से एक पोस्ट की रुप रेखा तेयार हो गई....

                                                     आप इस चित्र को बडा कर के देख सकते है
यह ऊपर वाले चित्र मै भी ध्यान से देखे तीन मजदुर दीवार बना रहे है, ओर यह चोथा आदमी जो बुल्डोजर पर चढ रहा है यह ओर इस का पिता भी एक मजदुर है, ओर यह बडा सा घर भी इन का ही है, यानि यहां के मजदुर को पीसा नही जाता, यहां यह मजदुर घंटो के हिसाब से काम करते है, ओर एक घंटे के यह १८ € से २५ € के बीच लेते है, फ़िर इन्का मेडिकल कलेम, टेक्स,बेरोजगारी भत्ता, ओर पेंशन के पेसे कट कर बाकी तन्खा इन्हे हर महीने बेंक मै मिल जाती है, सभी मजदुर अपनी अपनी कारो मै आते है, ओर काम के बाद यह भी हम आप जेसे आम कपडे पहनते है, इन्हे कोई गरीब या बेचारा कह कर तो देखे, इन की आमदनी भी एक ओफ़िसर जितनी ही होती है.
यह सब भारत मै भी हो सकता है, ओर जिस दिन यह सब भारत मै होगा  उस दिन हम अपने आप को विकास शील कह सकते है,आओ हम इन बातो मै इन युरोपियन की नकल करे, हर हाथ को काम तो हो लेकिन उसे दाम भी सही मिले, सिर्फ़ काम हो ओर मिल मालिक, या कम्पनी का मालिक अमीर ओर अमीर होता जाये ओर मजदुर रोटी के ही चक्कर लगाते रहे... क्या यह उचित है, मेहनत कोई करे, फ़ल कोई ओर ले??

इसे कहते है अंग अंग का डोलना

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 जिन्हे आशील लगे वो इसे ना देखे, वेसे यह नाच मै अपने बच्चो के संग देख सकता हुं.
भाई कल घुमते घुमते  यु ही इस विडियो पर नजर पडी ओर नाच देख कर मोहित हो गया, मैने तो ऎसा नाच अपनी जिन्दगी मै पहली बार देखा है.... आप देखे फ़िर बताये, क्या आप ने  ऎसा नाच पहले कभी देखा है.....

आईये हम अपने ब्लाग मित्र के बारे कुछ सुध ले...

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दो चार दिनो से मन मे विचार ऊठ रहे थे कि हमारे ब्लांगर मित्र श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय जी के बारे मै जानने के लिये मेरे पास ना तो उन का कोई फ़ोन ना० ही है, ओर ना ही ई मेल ,
भगवान से यही प्राथना करता हुं वो जल्द ठीक हो कर फ़िर से हमारे बीच आये, अगर किसी के पास उन का मोबाईल ना०, फ़ोन ना० हो या ई मेल  तो मुझे ई मेल से जरुर डाले.
अन्त मे मै उन की सेहत के बारे भगवान से यही प्राथना करता हु जल्द से जल्द स्वस्थ्य हो ओर फ़िर से वापिस आ कर हमे राम राम करे, नमस्ते कहे, आप इस समय जहां भी है मेरी ओर पुरे ब्लांग जगत की नमस्ते स्वीकार करे.

मैं कहता हूं कि आप अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में लिखें।उनको गरज होगी तो वे हमारी बात सुनेंगे। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा।*जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे तो हिंदी भाषा का दर्जा बढ़ेगा। महात्मा गांधी अंग्रेजी का माध्यम भारतीयों की शिक्षा में सबसे बड़ा कठिन विघ्न है।...सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"महामना मदनमोहन मालवीय