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ताऊ का ईलाज केसे होगा ??

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नमस्कार आप सभी को,
अब तबीयत भी काफ़ी अच्छी हो रही है धीरे धीरे ओर अब दिल भी नही लग रहा आप सब के बिना, कल से आप सब की सेवा मै फ़िर से हाजिर रहूंगा...
लेकिन यह हमारे ताऊ जी है, इन की परेशानी कुछ अजीब सी है, अगर आप मै से कोई इन का इलाज कर सके तो बहुत अच्छा होगा, क्योकि सभी डा० इन का ईलाज करते करते माथा पकड लेते है, ओर इन्हे जेब से पेसे दे कर हाथ जोड कर वापिस भेज देते है...
तो सुने पिछले डा० साहब ओर ताऊ की कहानी...

डा,.... ताऊ जी राम राम जी की.
ताऊ मरीज... डा साहिब राम राम जी की.
डा.... ताऊ जी केसे है आप ?
ताऊ.... भई डाकदार साहब आराम कोईना आया,तबीयत घणी ज्यादा खराब हो गई.
डा.... दवाई खा ली थी ? (खाली )
ताऊ.. डाकदार साहब दवाई की शीशी तो भरी हुयी थी.
डा.... अरे ताऊ जी मेरे कहने का मतलब आप ने दवाई ले ली थी ?
ताऊ... डा साहब केसी बाते करते हो, आप ही ने तो दवाई दी थी, ओर मेने ले ली थी.
डा:::ताऊ जी आप ने दवाई पीली थी क्या ?
ताऊ...डाकदर साहब दवाई पीली नही लाल थी !
डा... ने अपना सर पकड लिया ओर बोले अबे ताऊ दावाई को पीलिया था क्या ?
ताऊ... डाकदार साहब पीलिया तो मुझे है दवाई को थोडे ही है....
डा.... अबे ताऊ मेरे कहने का मतलब तुम ने दवाई को मुंह लगा कर अपने पेट मे डाल ली थी क्या ?
ताऊ... ना डाकदर साहब ना जी.
डा.... क्यूं ?
ताऊ..क्यूं कि उस का ढक्कन जो बन्द था ?
डा... तो खोला क्यो नही ?
ताऊ...डाकदार साहब आप ने ही तो कहा था कि... शीशी का ढक्कन बन्द रखना.
डा....ताऊ तेरा इलाज मेरे पास नही
ताऊ... तो डाकदार साहब यह तो बता दो मे ठीक केसे होऊगां...

४,५,६ ओर फ़िर अन्तिम दिन...

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चोथा दिन....
सुबह करीब ५ बजे छोटी भाभी मां को देखने गई तो, उसे कुछ आजीब सा लगा, उस ने जल्दी से मुझे ओर भाई को जगाया, मेने ध्यान से मां को देखा तो आंखो मे आंसू वह रहे थे, फ़िर मेने मां के सर पर हाथ रखा जो गर्म था, तभी मेने हाथ पकडा तो बिलकुल ठंडा लगा ओर हम ने जल्दी से ड्रा को बुलाया, ड्रा जी ने कहा बस अब जो करना हो कर लो इन का अंतिम समय आ गया, ओर ड्रा जी ने एक शीशा नाक के पास लगा कर देखा था, भाभी जल्दी से एक बुजुर्ग ओरत को बुलाने चली गई जिस ने पहले भी हमारी बहुत मदद की थी, मै पहले तो बहुत घबरा गया, भाई मेरे से भी ज्यादा घबरा गया, फ़िर मेने हिम्मत कर के, अपने ऊपर काबू कर के मां को ऊठा लिया ओर भाई को जोर से कहा चल मेरी मदद कर ओर भाई ने मां के दोनो पेर पकड लिये ओर जल्द से हम ने मां को उस जगह जमीन पर लिटा दिया, जहां पिता जी ने प्राण छोडे थे, ओर मेने अपने घुटने ( गोडे) पर मां का सर रख लिया, ओर साथ मै ही दिया भी जला दिया, इतने मै वो बुजुर्ग पडोसन भी आ गई, ओर उस ने मां का मुयाना किया तो कहा कि अभी कुछ सांसे बाकी है, ओर उस बुजुर्ग ओरत ने मां के मुंह मे गंगा जल डाला ओर फ़िर हम सब गायत्री मंत्र का जाप करने लगे, कुछ देर बाद भाई ने भी अपना घुटना मां के सर के नीचे दिया, मां की आंखो मे कुछ ओर आंसू आये ओर हम सब को छोड कर चली गई.....मै तो रॊ भी नही पाया एक दम से चुप सा हो गया.

उस समय मुझे ऎसा लगा कि इस भरे संसार मै मेरे ऊपर से एक घने पेड की छाया मुझ से छीन गई.........मै भरी दोपहरी मै...... किसी धुप वाली जगह पर खडा हुं, दिल अन्दर ही अन्दर रो रहा था, लेकिन आंखो मे आंसु नही थे, फ़िर सभी जान पहचान वालो को रिशते दारो को फ़ोन किया ओर आग्रह किया कि वो भी सभी जान पहचान वालो को बता दे,फ़िर बाकी की तेयारी सब करनी शुरु कर दी, मोहल्ले वाले भी सभी इकट्टे हो गये ओर सभी लोगो ने हम दोनो भाई की मदद करनी शुरु कर दी, मुझे सभी ने बेठे रहने की इच्छा जता दी कि भाईया आप बेठे, अंकल आप बेठे

फ़िर चिता देने के बारे बात हुयी तो मेने मना कर दिया कि मै मां को चिता नही दुंगा, जिस मां ने हमे हमेशा सर्दी गरमी से बचाया मै उसे केसे चिता के हवाले कर दुं, ओर भी भाई ने इसे करने की बात मान ली, ओर बाजार से सारा समान भी ले आया, ओर अपने नाप के कपडे भी, फ़िर पंडित जी आये, ओर उन्होने कहा कि चिता तो आप ही देगे, मेरे मना करने पर पंडित जी ओर बहुत से लोगो ने मुझे समझाया तो मुझे इस कार्य के लिये तेयार होना पडा, ओर फ़िर भाई के नाप वाले कपडे ही मुझे पहनाने पडे, जो काफ़ी तंग थे, पाय्जाम तो बेठते ही फ़ट गया. फ़िर दोपहर तक सारे रिशते दार ओर जानपहचान वाले, अडोसी पडोसी इकठ्ठे हो गये, ओर हम सब मिल कर मां की अर्थी को ले कर शमशान घाट की ओर चल पडे,वहां पंडित जी ने सारी रशमे निभाई, पुजा कि ओर फ़िर मां को आखरी प्रणाम कर के उन्हे चितां दे दी, लेकिन चिता देते समय मेरा रोना फ़ुट गया लेकिन सभी साथी लोग मुझे सहारा दे रहे थे समझा रहे थे ओर फ़िर मै वहां काफ़ी देर वेठा रहा, फ़िर सभी ने मुझे अपने साथ लिया, फ़िर पंडित जी ने हम दोनो भाईयो कि तरफ़ से सब का धन्यवाद किया, ओर चाय नास्ता कर के जाने को कहा, ओर साथ ही चोथे का समय भी बता दिया, फ़िर मेरे से कुछ जरुरी पुजा करवाई ओर कुछ नगद पेसे ले कर ( दक्षिणा )ले कर अगले कार्य कर्म के बारे बता दिया, फ़िर हम सब घर वापिस आ गये, ओर आज पहली बार यह घर मुझे बेगाना लगा

लेकिन अब यह घर मुझे बेगाना सा लग रहा था, मां की हाय हाय अब भी सुनाई दे रही थी कानो मे, बेठ बेठा ऊठा कर कभी मां को पानी पिलाने के उठता, लेकिन फ़िर वापिस बेठ जाता,फ़िर चाय बगेरा सब को पिलाई, खुद भी पी..... फ़िर आगे के कार्य कर्मो के बारे मै अपने से बडॆ लोगो से राय मांगी कि क्या क्या करना होता है ? फ़िर उस के हिसाब से मेने कमर कस ली, कहां तो मुझे गर्मी बहुत लगती थी, ओर कहा मां को शांति मिले इस लिये सभी काम खुद करने लगा, पुजा के लिये समान लाना, आने जाने वालो के लिये भोजन का इंतजाम करना, चोथे के लिये हलवाई बिठना, ओर जो लोग आज आये थे उन सब के लिये खाने का इंतजाम करना, ओर चोथे तक मै खुब घुमा गर्मी मै घुमा,ओर भगवान से यही प्राथना करता था, है भगवान मुझे अभी बिमार मत करना, ....

आज रात को भी नींद नही आई, बस युही सोचता रहा मां के बारे, पिता जी के बारे, भाई के बारे, उस के बच्चो के बारे..... दिमाग फ़टने को आ गया लेकिन कुछ भी सही सोच ना पाया, किसी भी फ़ेसले पर पहुच पाना कठीन था, ओर आज मेने पहली बार सर दर्द की गोली खाई ओर कब नींद आ गई पता नही.
पांचवा दिन...
पांचवा छटा ओर बाकी दिन.....
आज के दिन बहुत से अडोसी पडोसी मिलने जुलने आये, कई रिशतेदार भी दोबारा आये, ओर फ़िर पंडित जी ने भी काफ़ी समान लिख वाया वो सब मेने खुद ही इकट्टा किया, पसीने के मारे बुरा हाल गर्मी ने भी मुझ से गिन गिन कर बदले लिये, लेकिन मेने हिम्मत नही हारी, हां अब मेने खुब सारी शिकंजबी पीनी शुरु कर दी थी, या फ़िर पानी मै नींबू डाल कर पीता था, यह पांचवा दिन भी युही बीत गया, जब भी घर से जाता तो मुंह से निकला अच्छा मां मै बाजार जा रहा हुं, लेकिन फ़िर याद आ जाता कि ......

(मुझे तो पता नही था, जिस दिन मां को चिता दी उसी दिन कुछ जल चढाने, या छींटे मारने जाना था, मां की चिता पर, लेकिन मुझे रात सोने के समय यह पता चला, तब करीब रात के बरह बज गये थे, तो मेने भाई को कहा चलो अब चल पडते है, लेकिन सब ने रोक लिया) आज शाम को मेने याद रखा, ओर शाम चार बजे मै ओर मेरे भाई का लडका मां की चिता पर जा कर पानी के छींटे मार आये, हम दोनो को पता नही था कि क्या ओर कोन सा मंत्र पढना है, बस हम ने अपनी समझ से ही मां कॊ प्रणाम किया, कुछ जल छीडकां, ओर वापिस घर आ गये...

आज भी नींद आंखो से कोसो दुर थी... पता नही कब सो गया...

तेहरवां दिन ...
आज बहुत ही जल्द मेरी आंख खुल गई,शायद चार बजे, मेने दांत साफ़ किये थोडा पानी पिया, ओर फ़िर नहाने चला गया, नह कर निकला तो , थोडी देर मै पंडित जी आ गये, राम राम करने के पश्चात मेने उन्हे सारा समान सोंपा
आज मां को गये द्स दिन हो चुके थे,फ़िर पंडित जी ने आटे के दिये मंगवये, हां सब से पहले रेता मंगवाई, कुछ रेता को फ़र्श पर डाल कर उस पर स्वास्तिक का निशान, आटे से बनाया, फ़िर कुछ लिखा, फ़िर मेरे से कई पिंड बनबाये,अब याद नही शायद २४ या फ़िर कम या ज्यादा, फ़िर दिये जलाये कुछ दियो मे कच्ची लस्सी ( दुधिया पानी ) जेसा भी भरा, फ़िर काफ़ी देर तक मंत्र पढते रहे, ढुप बत्ती भी करते रहे ओर मै उन के बाद उन के पीछे उसी मंत्र को दोहरा रहा था, फ़िर पडितं जी ने एक एक पिंड को पुजना शुरु करवाया, इन सब बातो मे काफ़ी समय लग गया, फ़िर पडित जी ने हवन करना शुरु किया,

मेने भाई को ओर उस के लडके को पहले ही समझ दिया कि हवन समाग्री एक ही स्थान पर मत डाले, ओर पडितं जी ने श्लोक पढने शुरु किये हओ हवन को अग्नि दी, लपटे खुब ऊंची उठी गर्मी तो बहुत थी, लेकिन आज इस हवन से मुझे गर्मी कम , प्यार ज्यादा मिला, ओर कई दिनो से खराब तबीयत काफ़ी हद तक ठीक हो गई, हवन भी काफ़ी देर तक चला, फ़िर पडितं जी ने आखरी मंत्र ओर शलोक पढे ओर हम सब को खडे होने का संकेत किया, फ़िर पडिंत जी ने अपनी दक्षिणा मांगी, वा अन्य समान मांगा, मेने बिना आना कानी किये, पडितं जी को उन की दक्षिणा ओर उन का समान उन्हे दे दिया, ओर पडितं जी खुशी से विदा ले कर चलेगये,
फ़िर सब ने चाय पी, को नाश्ता किया.

अब मेरे यहां के सारे काम पुरे हो गये थे, ओर रुकने का सवाल ही बाकी नही था,एक काम शुधि करण रह गया था , जो मेने पंडित जी से पुछ लिया कि क्या यह कर्म मै अपने घर जा कर कर सकता हुं ? तो पंडित जी ने कहा कि १६ दिनो के बाद इस साल मे कभी भी किसी भी दिन कर सकते हो, ओर भाई ने कहा कि भईया मै यहां कर लूंगा, लेकिन मेने कहा तुम करो लेकिन मै वहा इसे जरुर करूंगा, लेकिन आते ही पहले मै बिमार पड गया, ओर फ़िर अस्पताल चला गया, अब हम इस कर्म को यहां सितम्बर मै दुसरे सप्ताह करेगे,

मां कि अस्तिया व्यास नदी मै बहा आया था, जहां रास्ते मै मुझे वत्स शर्मा जी मिले, बिलकुल ऎसे जेसे हम पहली बार नही बल्कि कई बार पहले भी मिल चुके हो, उन्होने बहुत प्यार ओर सम्मान दिया, बहुत अपना पन दिया... बाते तो बहुत सी थी लेकिन समय की नाजुकता को देख कर उन्ह से भी भीगे मन से इजाजत लेनी पडी,

मेरी इस दुख भरी यात्रा से किसी का दिल दुखे तो माफ़ करे, बाते तो बहुत सी है लेकिन अब इस लेख को मै आज यही खत्म कर देता हुं.....
आप सभी का धन्यवाद जिन्होने मेरे इस सब लेखो को पढा, मुझे हिम्मत दी, मेरे आंसू पोछे
हां उस से अगले दिन यानि ३ सितमबर को मै सुबह सुबह भारत से चला ओर शाम ६ बजे अपने बच्चो ओर अपनी बीबी के पास था, यह सब मुझे लेने मुनिख एयर पोर्ट पर आये हुये थे

घर मै दुसरा ओर तीसरा दिन...

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घर मै दुसरा दिन...
आज सुबह चार बजे मां को देखा तो सांसे चल रही थी, ओर शरीर भी गर्म था, फ़िर कुछ समय मै लेटा तो पता नही कब नींद आ गई, जब उठा तो मां की हाय हाय सुन रही थी, शायद मां दर्द से तडप रही थी, ओर हम सब कुछ भी नही कर पा रहे थे, दवा भी तभी दे जब मां कुछ खा पी रही हो, मां ने तो एक महीने से खाना पीना छोड दिया था, बस चम्मच से ही थोडा बहुत पानी पी रही थी, वो सारा दिन भी मै मां के सिरहाने बेठा रहा, एक बार मां ने बहुत मध्दिम सी आवाज मे कहा राज तु आ गया अच्छा किया.ओर मै मां के हाथो को सहलाता रहा,कभी मुंह मे गंगा जल दे रहा था, लेकिन गंगा जल का रंग बिलकुल पीला था, यानि बहुत गंदा, लेकिन हमारी हिन्दू नीतियो के सामने कई बार ऎसे मोको पर चुप रहना पडता है,जिस समाज मै रहना है उस के साथ ताल मेल बिठाना भी जरुरी है.

फ़िर सारा दिन मिलने जुलने वाले , हाल चाल पुछने वाले आते जाते रहे, सभी से बात करते सुनते दुख बंटता गया, ओर फ़िर रात आई मै दिन मे आज कुछ सो गया था, इस लिये रात को सब ने जागने का प्रोगराम बनाया कि बारी बारी से जागे गै, ओर बाते करते करते रात के दो तीन बज गये, मां की हालात देखी नही जा रही थी, ओर मां के ठीक होने के कोई आसार नही नजर आ रहे थे बस सभी भगवान से यही प्राथना कर रहे थे कि है भगवान इन्हे अब ज्यादा मत तडपाओ, इन्हे मुक्ति देदो.....फ़िर थोडी देर के लिये सब सो गये, लेकिन थोडी सी आहट पर हम सब जाग जाते. ओर किसी तरह से यह दिन भी निकला.

अब अडोसी पडोसीयो से घर के बारे कई बातो की खुसर पुसर भी कानो मे पढने लगी, लेकिन मै मां की हालत देख कर बहुत परेशान था, ओर सब कुछ सुन कर, जान कर भी चुप रहा, जेसे कोई नालायक बेटा हो.... मां के ऊपर कितना कुछ बीता लेकिन मां ने कभी मुझे नही कहा, क्यो? यह सवाल मां से करना चाहता था ? लेकिन मां तो बोल ही नही पा रही थी, बोल मां एक बार तो बता क्या यह सब बाते जो मुझे सुनाई दे रही है सच है ? इतना बेबस कभी ना हुआ था, अगर आज मां अच्छी हालात मै होती तो... मै मां की बेज्जती का बाद्ला तभी ले लेता..... लेकिन अब मुझे भी अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था, लेकिन करुं क्या समझ मै नही आ रहा था, भाई से एक दो बार सवाल किया तो वो खामोश हो जाता... क्या करुं इस समय बस अपने आप मे ही उलझता गया, ओर सारा गुस्सा पीता गया.

लोग कहते है कि बेटा हो तो स्वर्ग मै जगह मिलती है, बेटे मां बाप की सेवा करते है, तो कोई कहता बेटी मां बाप की सेवा करती है? क्यो हम आपस मै झुठ बोलते है, सेवा बस अच्छे बच्चे ही करते है, नालायक बस दिखावा करते है, सेवा नही, नालाय्क चाहे बेटा हो या बेटी वो मां बाप की बेज्जती ही करते है, उन के पेसॊ पर ऎश तो करते है उन्हे गालियां भी निकालते है, मत मांगो अपने लिये बेटा या बेटी मांगो तो अपने लिये अच्छे बच्चे वो किसी भी रुप मै क्यो ना हो, जो कम से कम मां बाप की सेवा ना करे लेकिन उन्हे वक्त से पहले लज्जित कर के मोत के मुंह मै ना धकेले....... मेरा इन दो दिनो मे सोच सोच कर बुरा हाल हो गया था, ओर फ़िर सामने मेरे नाटक होता जेसे सब श्रवण ही थे??
पता नही कब सोचते सोचते नींद मै चला गया....................
ओर फ़िर तीसरा दिन...
मुझे सुबह जल्दी जगाने की आदत है, रात को चाहे कितनी भी देर से सोऊ, सुबह ५,३० पर मेरी आंख खुली सब सोये थे, मैने दांत साफ़ किये पानी पिया, दो तीन चम्मच पानी मां के मुंह मै डाले, आज मां अन्य दिनो से थोडी शांत थी, मेने मां को बुलाया तो मां थोडा गरदन को हिलाया, फ़िर मेने मां के सर पर हाथ फ़ेरा, लग रहा था कि आज मां को दर्द कम होगी फ़िर १०,१५ मिंट मै बाहर घुम आया, ओर फ़िर आ कर मां के पास बेठ गया, आज मां से मेने अपने दोनो बेटो की आवाज भी मां के कानो तक मोबाईल से पहुचाई, पता नही मां मै कहां से हिम्मत आई कि बिलकुल साफ़ शब्दो मे अपने पोतो का नाम पुकारा, फ़िर एक शांति सी छा गई, फ़िर सारा दिन आने जाने वालो का तांता लगा रहा, मां की जान पहचान बहुत थी, क्योकि सभी के दुख को मां अपना दुख समझती थी, सभी को नेक सलाह देन, मदद देना मां का पहला काम था, ओर मां को देख कर सभी यही कहते है कि है भगवान तु यह केसी बेइंसाफ़ी कर रहा है, जो ओरत आज तक सब के दुख बांटती रही, अपना पराया ना देख कए सब की मदद करती रही तु उस के साथ यह सब क्यो कर रहा है??

अब सारा दिन मां के सिरहाने बेठा रहता, कभी कभी भाई से मां के बारे पुछता तो सही जबाब ना मिलता, मां की कोई आखरी इच्छा जो मां ने कभी बताई हो, लेकिन भाई हर बात को टाल जाता, दवा के बारे पूछता तो कभी कोई जबाब तो कभी कोई जबाब, फ़िर मेने डा के पास लेजाना चाहा तो हमारे मित्र डा जी ने साफ़ मना कर दिया कि इन्हे लेजाना बेकार है, अब इन्हे आराम से यही रहने दे, मै सारा दिन मां के सिरहाने बेठा रहता, ओर हार आने जाने वाले से मां की एक एक बात जानना चाहता, भगवान से यही कहता है भगवान एक बार सिर्फ़ एक बार मां मेरे से कोई भी बात कर ले बस एक बार.......मेरी मां मुझ से बात कर ले, मै मां से उस की आखरी इच्छा ही पुछ लुं....

मै मां के पास बेठा रहता था, ओर मां का हाथ थोडी थोडी देर बाद पकड लेता, ओर आज की रात मां का हाथ थोडा ठंडा लगा, लेकिन सभी कहे नही गर्म है, लेकिन बार बार जब भी मां के हाथ पांव छुता तो मुझे थोडे ठंडे लगे..मेने सब को कह दिया कि आज की रात कुछ होने वाला है, रात बारी बारी से जागने की सलाह बनी... लेकिन आज फ़िर रात का एक बज गया, फ़िर सभी लोग धीरे धीरे अपने घर चलेगे,युही कब रात के तीन बज गये पता ही नही चला, हम सब भी थोडी देर के लिये लेटे तो पता नही कब आंख लग गई ( नींद आ गई ) लेकिन पिछले दिनो की तरह से ही थोडी सी आहट पर भी मै झट से उठ बेठता, कब रात गुजर गई पता ही ना चला...

घर मै पहला दिन.....

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मां के चरणॊ मै
सुबह करीब ३,३० बजे मै दिल्ली पहुच गया, ओर आधे घंटे मै एयरपोर्ट से बाहर आ गया, वहा से सीधे टेक्सी पकड कर, रोहतक घर पर सुबह ६,३० पर घर पहुच गया था,अभी सभी सोये हुये थे, अन्दर जा कर देखा तो मां निठाल सी हड्डियो के पिंजर के रुप मे अपने बिस्तर पर पडी थी, जीवन की अंतिम सांसे गिनती हुयी, मेने पाव छुये... पता नही मां को मेरे आने का पता चला या नही, फ़िर मै काफ़ी देर मां के पास बेठा रहा,सारा समय जहाज मै भी नही सोचा ओर अब मुझे २४ घंटे हो गये थे, लेकिन नींद का नाम भी नही था आंखॊ मै,बस मां को देख कर दिल रो ही रहा था कि कहा तो मां मुझे लेने के लिये एयरपोर्ट आती थी..... ओर अब उठ कर प्यार भरा हाथ भी सर पर ना रख सकती है, क्या करुं मां जिस से तु फ़िर से ठीक हो जाये ? अरे मै तो तेरा पासपोर्ट भी बना चुका हुं, सोचा था थोडी ठीक होगी तो साथ ले जाऊगां, ओर फ़िर वहा कानून से खुद ही लड कर तुझे अपने पास ही रखूगां... लेकिन तु तो कही ओर जाने को तेयार बेठी है. जब भी मां के होठ हिलते तो ध्यान से देखता कही कुछ समझ मै आ जाये ?? लेकिन वहा सिर्फ़ कराह ही सुनाई देती, हि भगवान क्यो दुख दे रहा है तु मां को ? तेरे सारे वर्त, पुजा यही तो करती रही है, क्या यही फ़ल दे रहा है.....

दोपहर को ड्रा साहब आये, उन्होने बस मां का ध्यान रखने को ही कहा कि किसी भी समय कुछ भी हो सकता है, मां के शरीर पर मांस नाम मात्र ही बचा था,ओर शाम होते होते मां के हाथ पांव ठंडे होने शुरु हो गये, पडोस मे एक स्यानी (बुजुर्ग ) ओरत थी उन्होने मां को देख कर कहा की अब इन्हे नीचे उतार लो ... बस कुछ समय की ही मेहमान है, भाई ओर उस की वीवी ने सारी तेयारी कर ली, फ़िर ड्रा जी आये ओर उन्होने भी कहा कि बस कुछ ही घंटो की मेहमान है, आप सब ध्यान रखे, धीरे धीरे हाथ पांव ठंडे होने लगे तो हमारी छोटी भाभी बोली भईया अब नीचे उतार लो.... जब मै मां को उठाने लगा तो मेरा मन नही माना.... जो मां हमारे लिये आज तक खुद गीले मै सोती रही उसे नीचे फ़र्श पर केसे लिटा दुं, फ़िर पता नही क्यो मुझे लगा कि मां इतनी जलदी नही जाने वाली, ओर मेने सब को मना कर दिया कि मां की सांसे जब तक है, मै हर पल मां के सिरहाने बेठा हुं, ओर जब समय आयेगा तभी नीचे उतारेगे.

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उस दिन सारा समय मै मां के पास बेठा मां का हाथ पकडे रहा, सोचने लगा कि अब भगवान से क्या मांगू ? मां जिस अवस्था मै है ओर तडप रही है.... क्या अब मां की लम्बी उम्र मांग कर मां को दुखी तो नही कर रहा ? बस यही इंसान लाचार हो जाता है, जिस मां की एक आवाज ,एक बात इस घर मै हुकम होती थी, जो रानी की तरह रहती थी आज ....... दिल अंदर ही अंदर रॊ रहा था, है भगवान यह केसा समय ले आया तु मेरी जिन्दगी मै, जो अपनी ही मां की मोत चाहता है, अब केसे तुझ से प्राथना करुं कि ले ले मेरी मां के प्राण, उसे ज्यादा मत सता.....बस पता नही कब रात हो गई, मै मां के सिरहाने बेठा पता नही कितने युगो पिछे यादो मे खो गया, फ़िर मां को बुलाता, लेकिन मां की तो कराहने की आवाज ही आती, हाय... हाय करती.... ओर उस रात हम सब जागते रहे, ओर सुबह तक मां का शरीर फ़िर से गर्म हो गया, ओर कब मेरी आंख लग गई पता नही चला.

मेरी अकस्मात भारत यात्रा....

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मेरी अकस्मात भारत यात्रा....
आज १८ जुलाई का दिन , मै घर पर ही था कि सुबह सुबह फ़ोन बजा, इतनी सुबह फ़ोन हमारे यहां कभी नही आते, देखा तो भारत से था, एक मिस काल, मेने झट से वापिस फ़ोन किया, तो भाई कि बीबी बोली मेने ज्यादा ध्यान नही दिया, ओर सुबह सात बजे ओफ़िस चला गया, लेकिन आज कुछ अच्छा नही लगा, तो मै तीन बजे ही घर आ गया ओर दोवारा घर फ़ोन किया इस बार भाई से बात हुयी, काफ़ी देर तक बात हुयी, फ़िर फ़ोन रख दिया, फ़िर थोडी देर बाद फ़ोन मिलाया, फ़िर काफ़ी पूछता रहा, मां के बारे, एक एक बात पुछी, फ़िर फ़ोन काटा, ओर फ़िर अपने परिवारिक ड्रा से सलाह मांगी ( यहां ड्रा से ऎसी सलाह मांगनी मना है ओर ड्रा लोग बताते भी नही) लेकिन हमारा ड्रा तीस साल से एक ही है, ओर अच्छी जान पहचान है, उस से बात कर के तस्सली नही हुयी, फ़िर भाई को बार बार फ़ोन किया,इतना परेशान तो मै कभी नही हुया,

फ़िर सोचने लगा कि किसे फ़ोन करुं... यहां तो सभी मेरे जेसे ही अंजान है, फ़िर मुझे ताऊ ( राम पुरिया जी ) की याद आई, मेने झट से उन्हे फ़ोन मिलाया, लेकिन उन का मोबाईल बन्द, दुसरे ना० पर मिलाया वो भी बन्द, फ़िर मन ही मन बुदबुदाया अरे ताऊ कहा मर गया, आज तो मुझे तेरी सख्त जरुरत है, फ़िर समय देखा, ओर ताऊ के घर का ना० मिलाया सोचा ताई उठायेगी तो पहले तो माफ़ी मांगुगां, फ़िर ताऊ के बारे पुछूंगा, लेकिन ताई को पुकारुगां किस सम्बोधंन से?? ओर मेने ताऊ के घर का न० मिलाया, अरे बिना घंटी बजे ही उधर से ताऊ की आवाज आई, तो मेने ताऊ से सारी बात चीत की ,ओर उन्हे सारी बात बताई, फ़िर भाई को फ़ोन लगाया, फ़िर ताऊ को , फ़िर भाई को फ़िर ताऊ को.... फ़िर ताऊ से मांफ़ी मांगी की आज आप को तंग कर रहा हुं, फ़िर ताऊ राम पुरिया जी ने सलाह दी कि भाटिया जी अब देर मत करो , मत सोचो.... बस जल्द से जल्द घर पहुचो....

मेने ताऊ जी को बताया कि मै तो दोपहर से सीट ढुंढ रहा हुं, लेकिन छुट्टियो कि वजह से मुझे किसी भी हवाई जहाज मै जगह नही मिल रही, ओर अगर मिलती है तो हद से ज्यादा मंहगी, लेकिन मेने अपने भाई को बोल दिया कि मै कल या परसो सुबह तक हर हालात मै पहुच जाऊगां, मेने सभी एयर लाईन ओफ़िस को फ़ोन लगाया, इन्टर्नेट मै खुब ढुंढा.... लेकिन सब ओर से निराशा, ओर अगर टिकट मिलती है तो एयर ईंडिया कि ओर वो भी हद से मंहगी.... करुं तो क्या करूं ? फ़िर थक गया, रात के करीब दस बज गये,
सब सोने चले गये, मुझे नींद नही आ रही थी, फ़िर उठा... ओर इस बार फ़िर से सब जगह गया तो एक सीट मुझे Fin Air मै मिली, दाम तो ठीक ठाक था, ओर समय भी अन्य एयर लाईन से कम लग रहा था, दुसरी सीट मिली अरब अमीरात की, लेकिन इस एयर लाईन मै मै जाना नही चाहता था, फ़िर मेने फ़िन एयर की सीट चेक कि, समय चेक किया, सब जगह अच्छी तरह से देखा, ओर टिकट बुक कर दी, साथ मै होम बेंकिग से पेसे भी दे दिये, करीब ३,४ मिंन्ट बाद ही मुझे सीट मिल गई.


२० तारेख को जाना निश्च्य हुआ, ओर २१ की सुबह ३ ओर ४ के बीच भारत पहुचना था, सोम बार सुबह बच्चे मुझे एयर पोर्ट छोड आये, कहां तो सीधी फ़लाईट ७ घंटॆ मै भारत पहुच जाता हुं, ओर कहा इस बार १८ घंटे.. चलिये पहले हम फ़िन लेंड गये हवाई जहाज से, फ़िर कुछ समय फ़िन लेंड मै बिता कर( इस बीच मै शहर घुम आया) फ़िर वहा से मास्को होते हुये भारत पहुये,हमे जहाज मै ही इस बार एक फ़ार्म एक्स्ट्रा मिला, जो स्वाईन फ़लू का था, मेने क्या सब ने उसे भर, जब हम एयर पोर्ट पर उतरे ओर देख कर हेरान रह गये कि चारो ओर लोग मास्क लग कर घुम रहे है, ओर खुब पुछ ताछ हो रही है, मुझे यह सब पाखंड लगा, ओर है भी, क्योकि यह सब सिर्फ़ भारत मै ही है, एयर पोर्ट से बाहर निकते ही गंदगी के ढेर चारो ओर स्वागत करते है,अगर सरकार इस ओर ध्यान दे तो...., पीने का पानी गंदा, बोतल का पानी नकली, हर चीज मे मिलाबट, फ़िर एयर पोर्ट पर यह पाखंड नही तो क्या,दुध की बनी चाय पीते डर लगता है, पता नही कही हम जहर तो नही पी रहे, साफ़ पानी पीते डर लगता है, बोतल का पानी बदबू मार रहा होता है, लेकिन स्वाई फ़लू के डर दिखा कर करोडो रुपया खर्च कर के दिखावा जरुर करेगे, जिस का कोई लाभ नही, हम लोगो ने इसे एक बहुत बडा होवा बना दिया,जब कि वापसी मै किसी भी ऎयर पोर्ट पर ऎसी कोई ढाकोसले बाजी नही दिखी, कोई फ़ार्म नही भरा,कोई मास्क लगा आदमी नही दिखा........
दिल्ली एयर पोर्ट से टेकसी ले कर सीधे ६३० तक रोहतक घर पहुच गये .

क्रमश.....

जब दिल ही दगा दे जाये तो.....

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नमस्कार , मेने जब अपनी पहली पोस्ट( इस महीने की) लिखी ओर वादा किया कि कल से मेरी बाकी पोस्ट छोटी छोटी बातो नाम के ब्लांग पर प्रकाशित करूंगा.... ओर वो कल मेरे से बहुत दुर चला गया था, यनि दुसरे दिन सुबह जल्द उठा, ओर बच्चो को भी छुटिया थी, मुझे भी एक सप्ताह की ओर छुट्टी थी, आज बच्चो का अलग अलग कमरा करना था, थोडा काम कल रात को कर दिया था, बाकी छोटे मोटे काम मेने सुबह सुबह शुरु कर दिये, थोडी देर के लिये टेलीफ़ोन बन्द किया, ओर लाईन दुसरी तरफ़ से बनाई, फ़िर इंट्रनेट का कनॆकशन लगाया ओर चेक किया, एक तार बडॆ लडके के कमरे मै लेजानी थी, सोचा तारो का जाल नही दिखे इस लिये इस तार को भी छुपा कर ले जाये जाये ? बस इसी तार को ले कर उलझण मे था, इतनी देर मै बच्चे भी उठ गये, ओर तार को लगाने की पुरी तेयारी हो गई.

tujh se naraz nahi...

बस तभी मेरे को बहुत गर्मी लगने लगी, ओर थोडा चक्कर भी आया, तो मै अपने बेटे के बेड पर लेट गया, ओर पानी का गिलास गटक गया, लेकिन आराम नही आया, तो नीचे अपने बेड रुम मै आ गया, ओर खिडकी पुरी खोल दी ओर बीबी को बोला की अफ़्रिकन पंखे से मुझे हाथ से खुब हवा करो, लेकिन बेचेंनी बढती गई, इतना पानी पीने के वाबजुद मेरी जुबान सुखती गई, ओर हाथ पेरो की ताकत भी कम होने लगी, दिल घबराने लगा, तभी किसी आशिक कि तरह से हाथ दिल पर गया तो देखा की दिल पागलो की तरह से धडक रहा है, यानि बहुत तेज.... बीबी को आवाज दी... वो भी घवरा गई, थोडी देर तक दिल(छाती ) को हाथो से दबाता रहा.... लेकिन पसीने से तरबतर होता रहा, फ़िर धीरे धीरे लगा कि मेरी ताकत खत्म हो रही है.

फ़िर मेने बडॆ बेटे को आवाज दी कि जल्द से एमबुलेंस को फ़ोन मिला, बेटे ने एमबुलेंस को फ़ोन मिलाया... करीब तीन मिंट मे डा० ओर दो मिंट बाद एमबुलेंस ओर एक डा० ओर आ गया, अब तक मुझे दिखना धुंधला हो गया था, ओर सांस लेने मै काफ़ी कठिनाई हो रही थी, डा० ने सब से पहले चेक किया ओर मेरी हालात देख कर मुझे आक्सीजन लगा दी, जिस से मुझे फ़िर से सांस आनी शुरु हो गई,कुछ पुछते रहे ओर मेरे कई अलग अलग पास मांगते रहे, जिसे मेरे बेटे ने उन्हे दे दिया, फ़िर मुझे उठा कर एम्बुलेंस मै लेजाने लगे, तो मेने कहा कि मै पेदल चल सकता हुं, तो मै पेदल ही दो डा० ओ के सहारे एमबुलेंस तक गया, उस के बाद मेरी आंख खूली तो मै अस्पताल मै लेटा था, ओर बहुत सी मशीने लगी थी, मै करीब एक दिन एमर्जेंसी कमरे मै रहा, मेरे शरीर मै तारे ही तारे लगी थी, फ़िर आक्सीजन, फ़िर आई सी जी पता नही क्या क्या लगा रखा था, मेरी हल्की सी हरकत पर परियो सी सुंदर नर्स झट आ जाती थी, फ़िर शाम को बच्चे ओर बीबी मिलने आये, फ़िर डा आया ओर उस ने सारी बात मेरे बच्चो को समझाई कि कल इन्हे बिजली के झटके दिये जायेगे, ओर पेट मे नाल डाल कर भी चेक अप किया जायेगा, क्योकि दिल सही काम नही कर रहा, फ़िर मुझे समझाया गया किया सारा काम हम आप को बेहोश कर के करेगे, दुसरे दिन सुबह मुझे नाश्ता नही दिया गया, ओर मै इंतजार मै था कब .... लेकिन तभी एक हसीन सी नर्स नाश्ते की ट्रे ले कर आई ओर बोली लिजिये नाश्ता किजिये?? मुझे विशवास नही आया तो मेने उस से पुछा क्या यह नाश्ता मेरे लिये है ? तो बोली जी आप के लिये ही है, मुझे भुख नही थी लेकिन मेने मना नही किया, तभी ड्रा जी आ गये ओर कहा कि दवा से आप का दिल काबू मै आ गया, ओर ऎसा होता बहुत ही कम है, अब आप को ना तो झटके दिये जायेगे, ओर नही, पेट मे नाली डाली जाये गी? तबीयत ठीक हुयी तो मुझे दुसरे कमरे मै लेजाया गया.

आज यह लेख लिख रहा हुं, लेकिन आज इसे पोस्ट नही कर पाऊगां, आज शनि वार है, ओर तबीयत आगे से काफ़ी अच्छी हो गई है, लेकिन अब सारा दिन करे तो क्या करे, बच्चे मिलने आये थे तो उन के हाथ लेप ताप मंगवा लिया, ओर इस कबकत दिल का हाल आप को लिख दिया, असल मे मुझे भारत यात्रा के दोरान भी ऎसा ही एक दो बार हुआ था भारत मै, मेने सोच कि गर्मी है, फ़िर यहां आने के बाद भी हुया, लेकिन आखरी झटके ने हिला दिया, सारी चेकिंग के बाद डा ने कहा कि आप के दिन कि लेफ़्ट वाली दिवार काफ़ी मोटी है, ओर आप का खुन भी काफ़ी गाढा है, दिल कि दिवार मोटी होने की वजह से दिल अपना काम ठीक से नही कर सकता, उपर से खुन बहुत गाढा है, ओर अब सोम या मंगल बार तक मै यहां रहुंगा, ओर मुझे अलग अलग डोस दे कर देख रहे है कि कोन सी डोस सही रहेगी ( Marcumar ) इसे डा लोग अच्छी तरह से जानते है, यानि अभी हार्ड अटेक नही हुया लेकिन हो सकता था.

आज सोम बार की सुबह थी, मै करीब आठ बजे ऊठ गया, ओर नाश्ता वगेरा कर के ड्रा की इंतजार करने लगा, लेकिन आज शाम के चार बज गये ओर हमारे ड्रा जी नही आये, क्योकि मुझे उम्मीद थी की आज या कल मै घर वापिस चला जाऊंगा, तभी नर्स ने बताया कि ड्रा आ रहा है, थोडी देर बाद ही ड्रा ओर सहायक ड्रा दोनो हमारे कमरे मै आये, मेरे कमरे मेरे मेरे सिवा एक जर्मन था, पहले मुझे चेक किया, ओर कहा कि आप के फ़ेफ़डो मै पानी था हम ने उसे दवा से निकालने की कोशिश कि लेकिन अभी भी थोडा है, अगर नही निकला तो हम कल या परसो टोमोग्राफ़ी करेगे, दुसरा आप का खुन भी बहुत गाडा है, इसे भी दवा से पतला करना है, ओर जब तक हम आप की सेहत से बेफ़िक्र नही हो जाते तब तक आप को यहां रहना पडेगां, ओर आप का वजन भी रोजाना कम हो रहा है, फ़िर मै उदास सा फ़िर से बेड पर आ कर लेट गया.............

तभी हमारे मिलने जुलने वाले भी आते रहे, तो एक बुजुर्ग भारतीया ने कहा कि आप घर के लिये जल्दी मत मचाना, ड्रा को अपना सारा काम कर लेने देना, फ़िर मैने अलग अलग दवा खाई ओर रोजाना अलग अलग टेस्ट होते फ़िर अगले रोज ही ड्रा जी आये ओर बोले की आप की तबीयत केसी है ? मेने कहा पहले से अच्छा हुं, तो बोले की अब नाक से पतली पाईप लगाने की जरुरत भी नही दवा से आप के फ़ेफ़डो का पानी भी खत्म हो गया है, कल दोपहर के बाद आप घर जा सकते है, ओर उस के बाद सब बाते समझाई कि दवा खानी जरुर है ओर दिल का चेक अप साल मे कम से कम तीन बार करवाना जरुरी है, .... ड्रा के जाते ही मेने बच्चो को यह खुशखबरी सुनाई.

ओर कल १९/०८/०९ को शाम को घर पर आ गया, लेकिन कमजोरी बहुत हो गई है, ओर अभी दस पंद्रहा दिन घर पर ही आराम करुगा, कल परसो से फ़िर से अपनी पोस्टे पोस्ट करुंगा, आप सब का धन्यवाद जिन्होने मेरी मां के निधन पर मुझे सहारा दिया अपनी टिपण्णियो के सहारे....

आप मेरी मजबुरी समझ गये होगे इस लिये वादे के अनुसार अपनी पोस्ट या आप कि किसी की भी टिपण्णियो का धन्यवाद भी नही कर पाया, लेकिन अब कोशिश रहेगी कि मै अपनी सारी पोस्ट समय पर कर सकूं

मैं कहता हूं कि आप अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में लिखें।उनको गरज होगी तो वे हमारी बात सुनेंगे। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा।*जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे तो हिंदी भाषा का दर्जा बढ़ेगा। महात्मा गांधी अंग्रेजी का माध्यम भारतीयों की शिक्षा में सबसे बड़ा कठिन विघ्न है।...सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"महामना मदनमोहन मालवीय