घर मै दुसरा ओर तीसरा दिन...
घर मै दुसरा दिन...
आज सुबह चार बजे मां को देखा तो सांसे चल रही थी, ओर शरीर भी गर्म था, फ़िर कुछ समय मै लेटा तो पता नही कब नींद आ गई, जब उठा तो मां की हाय हाय सुन रही थी, शायद मां दर्द से तडप रही थी, ओर हम सब कुछ भी नही कर पा रहे थे, दवा भी तभी दे जब मां कुछ खा पी रही हो, मां ने तो एक महीने से खाना पीना छोड दिया था, बस चम्मच से ही थोडा बहुत पानी पी रही थी, वो सारा दिन भी मै मां के सिरहाने बेठा रहा, एक बार मां ने बहुत मध्दिम सी आवाज मे कहा राज तु आ गया अच्छा किया.ओर मै मां के हाथो को सहलाता रहा,कभी मुंह मे गंगा जल दे रहा था, लेकिन गंगा जल का रंग बिलकुल पीला था, यानि बहुत गंदा, लेकिन हमारी हिन्दू नीतियो के सामने कई बार ऎसे मोको पर चुप रहना पडता है,जिस समाज मै रहना है उस के साथ ताल मेल बिठाना भी जरुरी है.
फ़िर सारा दिन मिलने जुलने वाले , हाल चाल पुछने वाले आते जाते रहे, सभी से बात करते सुनते दुख बंटता गया, ओर फ़िर रात आई मै दिन मे आज कुछ सो गया था, इस लिये रात को सब ने जागने का प्रोगराम बनाया कि बारी बारी से जागे गै, ओर बाते करते करते रात के दो तीन बज गये, मां की हालात देखी नही जा रही थी, ओर मां के ठीक होने के कोई आसार नही नजर आ रहे थे बस सभी भगवान से यही प्राथना कर रहे थे कि है भगवान इन्हे अब ज्यादा मत तडपाओ, इन्हे मुक्ति देदो.....फ़िर थोडी देर के लिये सब सो गये, लेकिन थोडी सी आहट पर हम सब जाग जाते. ओर किसी तरह से यह दिन भी निकला.
अब अडोसी पडोसीयो से घर के बारे कई बातो की खुसर पुसर भी कानो मे पढने लगी, लेकिन मै मां की हालत देख कर बहुत परेशान था, ओर सब कुछ सुन कर, जान कर भी चुप रहा, जेसे कोई नालायक बेटा हो.... मां के ऊपर कितना कुछ बीता लेकिन मां ने कभी मुझे नही कहा, क्यो? यह सवाल मां से करना चाहता था ? लेकिन मां तो बोल ही नही पा रही थी, बोल मां एक बार तो बता क्या यह सब बाते जो मुझे सुनाई दे रही है सच है ? इतना बेबस कभी ना हुआ था, अगर आज मां अच्छी हालात मै होती तो... मै मां की बेज्जती का बाद्ला तभी ले लेता..... लेकिन अब मुझे भी अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था, लेकिन करुं क्या समझ मै नही आ रहा था, भाई से एक दो बार सवाल किया तो वो खामोश हो जाता... क्या करुं इस समय बस अपने आप मे ही उलझता गया, ओर सारा गुस्सा पीता गया.
लोग कहते है कि बेटा हो तो स्वर्ग मै जगह मिलती है, बेटे मां बाप की सेवा करते है, तो कोई कहता बेटी मां बाप की सेवा करती है? क्यो हम आपस मै झुठ बोलते है, सेवा बस अच्छे बच्चे ही करते है, नालायक बस दिखावा करते है, सेवा नही, नालाय्क चाहे बेटा हो या बेटी वो मां बाप की बेज्जती ही करते है, उन के पेसॊ पर ऎश तो करते है उन्हे गालियां भी निकालते है, मत मांगो अपने लिये बेटा या बेटी मांगो तो अपने लिये अच्छे बच्चे वो किसी भी रुप मै क्यो ना हो, जो कम से कम मां बाप की सेवा ना करे लेकिन उन्हे वक्त से पहले लज्जित कर के मोत के मुंह मै ना धकेले....... मेरा इन दो दिनो मे सोच सोच कर बुरा हाल हो गया था, ओर फ़िर सामने मेरे नाटक होता जेसे सब श्रवण ही थे??
पता नही कब सोचते सोचते नींद मै चला गया....................
ओर फ़िर तीसरा दिन...
मुझे सुबह जल्दी जगाने की आदत है, रात को चाहे कितनी भी देर से सोऊ, सुबह ५,३० पर मेरी आंख खुली सब सोये थे, मैने दांत साफ़ किये पानी पिया, दो तीन चम्मच पानी मां के मुंह मै डाले, आज मां अन्य दिनो से थोडी शांत थी, मेने मां को बुलाया तो मां थोडा गरदन को हिलाया, फ़िर मेने मां के सर पर हाथ फ़ेरा, लग रहा था कि आज मां को दर्द कम होगी फ़िर १०,१५ मिंट मै बाहर घुम आया, ओर फ़िर आ कर मां के पास बेठ गया, आज मां से मेने अपने दोनो बेटो की आवाज भी मां के कानो तक मोबाईल से पहुचाई, पता नही मां मै कहां से हिम्मत आई कि बिलकुल साफ़ शब्दो मे अपने पोतो का नाम पुकारा, फ़िर एक शांति सी छा गई, फ़िर सारा दिन आने जाने वालो का तांता लगा रहा, मां की जान पहचान बहुत थी, क्योकि सभी के दुख को मां अपना दुख समझती थी, सभी को नेक सलाह देन, मदद देना मां का पहला काम था, ओर मां को देख कर सभी यही कहते है कि है भगवान तु यह केसी बेइंसाफ़ी कर रहा है, जो ओरत आज तक सब के दुख बांटती रही, अपना पराया ना देख कए सब की मदद करती रही तु उस के साथ यह सब क्यो कर रहा है??
अब सारा दिन मां के सिरहाने बेठा रहता, कभी कभी भाई से मां के बारे पुछता तो सही जबाब ना मिलता, मां की कोई आखरी इच्छा जो मां ने कभी बताई हो, लेकिन भाई हर बात को टाल जाता, दवा के बारे पूछता तो कभी कोई जबाब तो कभी कोई जबाब, फ़िर मेने डा के पास लेजाना चाहा तो हमारे मित्र डा जी ने साफ़ मना कर दिया कि इन्हे लेजाना बेकार है, अब इन्हे आराम से यही रहने दे, मै सारा दिन मां के सिरहाने बेठा रहता, ओर हार आने जाने वाले से मां की एक एक बात जानना चाहता, भगवान से यही कहता है भगवान एक बार सिर्फ़ एक बार मां मेरे से कोई भी बात कर ले बस एक बार.......मेरी मां मुझ से बात कर ले, मै मां से उस की आखरी इच्छा ही पुछ लुं....
मै मां के पास बेठा रहता था, ओर मां का हाथ थोडी थोडी देर बाद पकड लेता, ओर आज की रात मां का हाथ थोडा ठंडा लगा, लेकिन सभी कहे नही गर्म है, लेकिन बार बार जब भी मां के हाथ पांव छुता तो मुझे थोडे ठंडे लगे..मेने सब को कह दिया कि आज की रात कुछ होने वाला है, रात बारी बारी से जागने की सलाह बनी... लेकिन आज फ़िर रात का एक बज गया, फ़िर सभी लोग धीरे धीरे अपने घर चलेगे,युही कब रात के तीन बज गये पता ही नही चला, हम सब भी थोडी देर के लिये लेटे तो पता नही कब आंख लग गई ( नींद आ गई ) लेकिन पिछले दिनो की तरह से ही थोडी सी आहट पर भी मै झट से उठ बेठता, कब रात गुजर गई पता ही ना चला...
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23 August 2009 at 6:15 pm
दर्दभरी दास्ताँ
23 August 2009 at 6:19 pm
बहुत याद आते है जाने वाले...ईश्वर माताजी को शान्ति प्रदान करे...और आपको सहनशक्ति....
23 August 2009 at 6:22 pm
राज जी,आप की आपबीती पढ़ते हुए पता नहीं क्युं रह रह कर मुझे अपने पिता याद आ रहे थे.....मैं जानता हूँ और शायद महसूस भी काफी हद तक कर सकता हूँ कि ऐसे समय में मन में कैसा अथाह पीड़ा उठती रहती है...यही वह समय होता. जब हम एकदम लाचार और बेबस हो जाते हैं.....
23 August 2009 at 6:23 pm
पढ़कर भावुक हो गया हूँ आँखों में आंसू आ गए है सचमुच माँ से बढ़कर कोई नहीं है . ईश्वर के विधान के अनुसार सभी को एक दुनिया से जाना पड़ता है मात्र उनकी स्म्रतियाँ हमारे दिलो में रह जाती है. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और आपको यह दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करें
23 August 2009 at 6:31 pm
भाई साहिब, हौसला रखिये ---परमात्मा आप सब को यह गहरा सदमा सहने की शक्ति प्रदान करे।
23 August 2009 at 6:36 pm
भाटिया जी, यही दर्द एक दिन हर पुत्र को झेलना पडता है. हमने भी झेला है. ईश्वर माताजी की आत्मा को शांति दे. और आप परिजन धैर्य धारण करें.
रामराम.
23 August 2009 at 6:53 pm
अपनी अपनी माँ से कहता हर व्यक्ति संसार का
मैं आकण्ठ ऋणी हूँ माता ! तेरे अनुपम प्यार का
तुमने मुझको जनम दिया माँ, ये दुनिया दिखलाई
तेरे आँचल में गूंजी मेरे शैशव की शहनाई
तेरी गोद में खेले मेरे बचपन और तरुणाई
तेरी ममता की छाया में मैंने प्रौढ़ता पाई
साँस साँस से मैं कृतज्ञ हूँ तेरे लाड़ दुलार का
मैं आकण्ठ ऋणी हूँ माता ! तेरे अनुपम प्यार का
बेशक मुझको याद नहीं अब मैंने तुमको कितना सताया
कभी बीमारी, कभी शरारत, रोज़ नया उत्पात रचाया
कितने दिन का चैन हर लिया, कितनी रातें तुम्हें जगाया
फ़िर भी तुम गीले में सोयीं और मुझे सूखे में सुलाया
मैं ना क़र्ज़ चुका पाऊंगा माँ तेरे उपकार का
मैं आकण्ठ ऋणी हूँ माता ! तेरे अनुपम प्यार का
_____आदरणीय राज भाईजी,
माँ की आशीष सदा आपके साथ हैं और रहेंगी.........
__________जय गणेश !
23 August 2009 at 7:03 pm
बस यहीं पर बस नहीं चलता है
23 August 2009 at 7:47 pm
ऐसे ही कई मौकों पर मानव अपने आप को बेहद असहाय महसूस करता है
दुखद क्षण
23 August 2009 at 8:00 pm
बहुत शिद्दत से माँ को याद कर रहे हैं,
ऎसा लग रहा है कि, मैं आपके साथ साथ लगा हुआ हर पल का साक्षी हूँ ।
23 August 2009 at 8:17 pm
भाटिया जी, ईश्वर की इच्छा के आगे किस की मर्जी चली है!!!
आप थोडा धीरज रखें!!
23 August 2009 at 8:38 pm
कल मैं बाहर था। आज दोनों कड़ियाँ पढ़ीं। हम मन से यह स्वीकार कर लेते हैं कि जो आया है वह एक दिन जाएगा। लेकिन जाने की प्रक्रिया हमेशा दुखःद होती है। आप ने जो कष्ट के क्षण बिताए उन में लोग अपने को देखेंगे। इस का विवरण पढ़ना भी इतना कष्टप्रद है कि इस से पलायन की इच्छा होने लगती है।
23 August 2009 at 9:16 pm
राज जी मेरी माताजी का भी 2001 मे 8 अगस्त को तथा पिताजी का 2003 मे 28 अगस्त को स्वर्गवास हुआ था । आप हैं,अलबेला जी हैं इस माह निरंतर अपने बुजुर्गों को याद कर रहे हैं । मुझे ऐसा लग रहा है कि सम्वेदना के तार हम सब को कहीं न कहीं जोड़े हुए है । यह भावना सम्पूर्ण जगत में व्याप्त हो इस कामना के साथ । अपने स्वास्थ्य का खयल रखियेगा । -शरद कोकास ,दुर्ग ( छत्तीसग़ढ़)
23 August 2009 at 9:35 pm
राज जी
अपनी लेखनी को इस बारे में जल्द विराम दें . एक मान्यता है ज्यादा याद कराना दिवंगतों को कष्ट देता है
24 August 2009 at 7:17 pm
कोई शब्द नहीं..बस पढ़ रहा हूँ.
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