feedburner

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

४,५,६ ओर फ़िर अन्तिम दिन...

.

चोथा दिन....
सुबह करीब ५ बजे छोटी भाभी मां को देखने गई तो, उसे कुछ आजीब सा लगा, उस ने जल्दी से मुझे ओर भाई को जगाया, मेने ध्यान से मां को देखा तो आंखो मे आंसू वह रहे थे, फ़िर मेने मां के सर पर हाथ रखा जो गर्म था, तभी मेने हाथ पकडा तो बिलकुल ठंडा लगा ओर हम ने जल्दी से ड्रा को बुलाया, ड्रा जी ने कहा बस अब जो करना हो कर लो इन का अंतिम समय आ गया, ओर ड्रा जी ने एक शीशा नाक के पास लगा कर देखा था, भाभी जल्दी से एक बुजुर्ग ओरत को बुलाने चली गई जिस ने पहले भी हमारी बहुत मदद की थी, मै पहले तो बहुत घबरा गया, भाई मेरे से भी ज्यादा घबरा गया, फ़िर मेने हिम्मत कर के, अपने ऊपर काबू कर के मां को ऊठा लिया ओर भाई को जोर से कहा चल मेरी मदद कर ओर भाई ने मां के दोनो पेर पकड लिये ओर जल्द से हम ने मां को उस जगह जमीन पर लिटा दिया, जहां पिता जी ने प्राण छोडे थे, ओर मेने अपने घुटने ( गोडे) पर मां का सर रख लिया, ओर साथ मै ही दिया भी जला दिया, इतने मै वो बुजुर्ग पडोसन भी आ गई, ओर उस ने मां का मुयाना किया तो कहा कि अभी कुछ सांसे बाकी है, ओर उस बुजुर्ग ओरत ने मां के मुंह मे गंगा जल डाला ओर फ़िर हम सब गायत्री मंत्र का जाप करने लगे, कुछ देर बाद भाई ने भी अपना घुटना मां के सर के नीचे दिया, मां की आंखो मे कुछ ओर आंसू आये ओर हम सब को छोड कर चली गई.....मै तो रॊ भी नही पाया एक दम से चुप सा हो गया.

उस समय मुझे ऎसा लगा कि इस भरे संसार मै मेरे ऊपर से एक घने पेड की छाया मुझ से छीन गई.........मै भरी दोपहरी मै...... किसी धुप वाली जगह पर खडा हुं, दिल अन्दर ही अन्दर रो रहा था, लेकिन आंखो मे आंसु नही थे, फ़िर सभी जान पहचान वालो को रिशते दारो को फ़ोन किया ओर आग्रह किया कि वो भी सभी जान पहचान वालो को बता दे,फ़िर बाकी की तेयारी सब करनी शुरु कर दी, मोहल्ले वाले भी सभी इकट्टे हो गये ओर सभी लोगो ने हम दोनो भाई की मदद करनी शुरु कर दी, मुझे सभी ने बेठे रहने की इच्छा जता दी कि भाईया आप बेठे, अंकल आप बेठे

फ़िर चिता देने के बारे बात हुयी तो मेने मना कर दिया कि मै मां को चिता नही दुंगा, जिस मां ने हमे हमेशा सर्दी गरमी से बचाया मै उसे केसे चिता के हवाले कर दुं, ओर भी भाई ने इसे करने की बात मान ली, ओर बाजार से सारा समान भी ले आया, ओर अपने नाप के कपडे भी, फ़िर पंडित जी आये, ओर उन्होने कहा कि चिता तो आप ही देगे, मेरे मना करने पर पंडित जी ओर बहुत से लोगो ने मुझे समझाया तो मुझे इस कार्य के लिये तेयार होना पडा, ओर फ़िर भाई के नाप वाले कपडे ही मुझे पहनाने पडे, जो काफ़ी तंग थे, पाय्जाम तो बेठते ही फ़ट गया. फ़िर दोपहर तक सारे रिशते दार ओर जानपहचान वाले, अडोसी पडोसी इकठ्ठे हो गये, ओर हम सब मिल कर मां की अर्थी को ले कर शमशान घाट की ओर चल पडे,वहां पंडित जी ने सारी रशमे निभाई, पुजा कि ओर फ़िर मां को आखरी प्रणाम कर के उन्हे चितां दे दी, लेकिन चिता देते समय मेरा रोना फ़ुट गया लेकिन सभी साथी लोग मुझे सहारा दे रहे थे समझा रहे थे ओर फ़िर मै वहां काफ़ी देर वेठा रहा, फ़िर सभी ने मुझे अपने साथ लिया, फ़िर पंडित जी ने हम दोनो भाईयो कि तरफ़ से सब का धन्यवाद किया, ओर चाय नास्ता कर के जाने को कहा, ओर साथ ही चोथे का समय भी बता दिया, फ़िर मेरे से कुछ जरुरी पुजा करवाई ओर कुछ नगद पेसे ले कर ( दक्षिणा )ले कर अगले कार्य कर्म के बारे बता दिया, फ़िर हम सब घर वापिस आ गये, ओर आज पहली बार यह घर मुझे बेगाना लगा

लेकिन अब यह घर मुझे बेगाना सा लग रहा था, मां की हाय हाय अब भी सुनाई दे रही थी कानो मे, बेठ बेठा ऊठा कर कभी मां को पानी पिलाने के उठता, लेकिन फ़िर वापिस बेठ जाता,फ़िर चाय बगेरा सब को पिलाई, खुद भी पी..... फ़िर आगे के कार्य कर्मो के बारे मै अपने से बडॆ लोगो से राय मांगी कि क्या क्या करना होता है ? फ़िर उस के हिसाब से मेने कमर कस ली, कहां तो मुझे गर्मी बहुत लगती थी, ओर कहा मां को शांति मिले इस लिये सभी काम खुद करने लगा, पुजा के लिये समान लाना, आने जाने वालो के लिये भोजन का इंतजाम करना, चोथे के लिये हलवाई बिठना, ओर जो लोग आज आये थे उन सब के लिये खाने का इंतजाम करना, ओर चोथे तक मै खुब घुमा गर्मी मै घुमा,ओर भगवान से यही प्राथना करता था, है भगवान मुझे अभी बिमार मत करना, ....

आज रात को भी नींद नही आई, बस युही सोचता रहा मां के बारे, पिता जी के बारे, भाई के बारे, उस के बच्चो के बारे..... दिमाग फ़टने को आ गया लेकिन कुछ भी सही सोच ना पाया, किसी भी फ़ेसले पर पहुच पाना कठीन था, ओर आज मेने पहली बार सर दर्द की गोली खाई ओर कब नींद आ गई पता नही.
पांचवा दिन...
पांचवा छटा ओर बाकी दिन.....
आज के दिन बहुत से अडोसी पडोसी मिलने जुलने आये, कई रिशतेदार भी दोबारा आये, ओर फ़िर पंडित जी ने भी काफ़ी समान लिख वाया वो सब मेने खुद ही इकट्टा किया, पसीने के मारे बुरा हाल गर्मी ने भी मुझ से गिन गिन कर बदले लिये, लेकिन मेने हिम्मत नही हारी, हां अब मेने खुब सारी शिकंजबी पीनी शुरु कर दी थी, या फ़िर पानी मै नींबू डाल कर पीता था, यह पांचवा दिन भी युही बीत गया, जब भी घर से जाता तो मुंह से निकला अच्छा मां मै बाजार जा रहा हुं, लेकिन फ़िर याद आ जाता कि ......

(मुझे तो पता नही था, जिस दिन मां को चिता दी उसी दिन कुछ जल चढाने, या छींटे मारने जाना था, मां की चिता पर, लेकिन मुझे रात सोने के समय यह पता चला, तब करीब रात के बरह बज गये थे, तो मेने भाई को कहा चलो अब चल पडते है, लेकिन सब ने रोक लिया) आज शाम को मेने याद रखा, ओर शाम चार बजे मै ओर मेरे भाई का लडका मां की चिता पर जा कर पानी के छींटे मार आये, हम दोनो को पता नही था कि क्या ओर कोन सा मंत्र पढना है, बस हम ने अपनी समझ से ही मां कॊ प्रणाम किया, कुछ जल छीडकां, ओर वापिस घर आ गये...

आज भी नींद आंखो से कोसो दुर थी... पता नही कब सो गया...

तेहरवां दिन ...
आज बहुत ही जल्द मेरी आंख खुल गई,शायद चार बजे, मेने दांत साफ़ किये थोडा पानी पिया, ओर फ़िर नहाने चला गया, नह कर निकला तो , थोडी देर मै पंडित जी आ गये, राम राम करने के पश्चात मेने उन्हे सारा समान सोंपा
आज मां को गये द्स दिन हो चुके थे,फ़िर पंडित जी ने आटे के दिये मंगवये, हां सब से पहले रेता मंगवाई, कुछ रेता को फ़र्श पर डाल कर उस पर स्वास्तिक का निशान, आटे से बनाया, फ़िर कुछ लिखा, फ़िर मेरे से कई पिंड बनबाये,अब याद नही शायद २४ या फ़िर कम या ज्यादा, फ़िर दिये जलाये कुछ दियो मे कच्ची लस्सी ( दुधिया पानी ) जेसा भी भरा, फ़िर काफ़ी देर तक मंत्र पढते रहे, ढुप बत्ती भी करते रहे ओर मै उन के बाद उन के पीछे उसी मंत्र को दोहरा रहा था, फ़िर पडितं जी ने एक एक पिंड को पुजना शुरु करवाया, इन सब बातो मे काफ़ी समय लग गया, फ़िर पडित जी ने हवन करना शुरु किया,

मेने भाई को ओर उस के लडके को पहले ही समझ दिया कि हवन समाग्री एक ही स्थान पर मत डाले, ओर पडितं जी ने श्लोक पढने शुरु किये हओ हवन को अग्नि दी, लपटे खुब ऊंची उठी गर्मी तो बहुत थी, लेकिन आज इस हवन से मुझे गर्मी कम , प्यार ज्यादा मिला, ओर कई दिनो से खराब तबीयत काफ़ी हद तक ठीक हो गई, हवन भी काफ़ी देर तक चला, फ़िर पडितं जी ने आखरी मंत्र ओर शलोक पढे ओर हम सब को खडे होने का संकेत किया, फ़िर पडिंत जी ने अपनी दक्षिणा मांगी, वा अन्य समान मांगा, मेने बिना आना कानी किये, पडितं जी को उन की दक्षिणा ओर उन का समान उन्हे दे दिया, ओर पडितं जी खुशी से विदा ले कर चलेगये,
फ़िर सब ने चाय पी, को नाश्ता किया.

अब मेरे यहां के सारे काम पुरे हो गये थे, ओर रुकने का सवाल ही बाकी नही था,एक काम शुधि करण रह गया था , जो मेने पंडित जी से पुछ लिया कि क्या यह कर्म मै अपने घर जा कर कर सकता हुं ? तो पंडित जी ने कहा कि १६ दिनो के बाद इस साल मे कभी भी किसी भी दिन कर सकते हो, ओर भाई ने कहा कि भईया मै यहां कर लूंगा, लेकिन मेने कहा तुम करो लेकिन मै वहा इसे जरुर करूंगा, लेकिन आते ही पहले मै बिमार पड गया, ओर फ़िर अस्पताल चला गया, अब हम इस कर्म को यहां सितम्बर मै दुसरे सप्ताह करेगे,

मां कि अस्तिया व्यास नदी मै बहा आया था, जहां रास्ते मै मुझे वत्स शर्मा जी मिले, बिलकुल ऎसे जेसे हम पहली बार नही बल्कि कई बार पहले भी मिल चुके हो, उन्होने बहुत प्यार ओर सम्मान दिया, बहुत अपना पन दिया... बाते तो बहुत सी थी लेकिन समय की नाजुकता को देख कर उन्ह से भी भीगे मन से इजाजत लेनी पडी,

मेरी इस दुख भरी यात्रा से किसी का दिल दुखे तो माफ़ करे, बाते तो बहुत सी है लेकिन अब इस लेख को मै आज यही खत्म कर देता हुं.....
आप सभी का धन्यवाद जिन्होने मेरे इस सब लेखो को पढा, मुझे हिम्मत दी, मेरे आंसू पोछे
हां उस से अगले दिन यानि ३ सितमबर को मै सुबह सुबह भारत से चला ओर शाम ६ बजे अपने बच्चो ओर अपनी बीबी के पास था, यह सब मुझे लेने मुनिख एयर पोर्ट पर आये हुये थे

21 टिपण्णी:
gravatar
dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...
24 August 2009 at 5:51 pm  

om shanti shanti shanti

gravatar
अविनाश वाचस्पति said...
24 August 2009 at 5:51 pm  

आंसू आ गए हैं पढ़ कर। पर एक बात यह कि कोई भी ब्‍लॉगर जब किसी ब्‍लॉगर को मिलता है तो उसे ऐसा कभी महसूस नहीं होता कि वे पहली बार मिल रहे हैं। इस इंटरनेटीय संबंध की यह गर्माहट सदा बनी रहेगी, ऐसा विश्‍वास है। आप हौसला रखिए राज साहब। जब भी दिल्‍ली की ओर रूख करें तो बतलाइयेगा, आपने मिलने की तमन्‍ना रहेगी, वैसे ऐसा नहीं लग रहा है कि आपसे पहली बार मिलना होगा। आपसे इतनी बार तो मिलते रहे हैं, मिलते रहेंगे। यह सफर जारी रहेगा। शुभ वर्तमान।

gravatar
महेन्द्र मिश्र said...
24 August 2009 at 6:00 pm  

आप हौसला रखिए राज साहब....

gravatar
रंजन (Ranjan) said...
24 August 2009 at 6:37 pm  

आपके दुखः में हम भी शरीक है..

gravatar
डॉ महेश सिन्हा said...
24 August 2009 at 6:39 pm  

ॐ शांति शांति शांतिही. प्रभु आपको और आपके परिवार को स्वस्थ रखें

gravatar
Udan Tashtari said...
24 August 2009 at 7:25 pm  

ईश्वर माँ की आत्मा को शांति दे. ॐ शांति शांति शांतिही.

श्रृद्धांजलि!!

gravatar
Anonymous said...
24 August 2009 at 8:00 pm  

आपके दुखः में हम भी शरीक है.
हौसला रखिए

gravatar
Unknown said...
24 August 2009 at 9:23 pm  

माँ !
परम पिता परमात्मा आपको अपने सान्निध्य में स्थान दें
यही प्रार्थना..................
श्री राम !
सतनाम !
राधा स्वामी
ॐ शान्ति शान्ति शान्ति

gravatar
Gyan Darpan said...
25 August 2009 at 4:43 am  

आपके दुखः में हम भी शरीक है | ईश्वर माँ की आत्मा को शांति दे

gravatar
seema gupta said...
25 August 2009 at 5:38 am  

बहुत भावुक कर गयी आपकी ये पोस्ट सारा चित्र जैसे आँखों के आगे जीवित हो गया.....इश्वर माता जी की आत्मा को शांति दे और आपको होंसला...

regards

gravatar
ताऊ रामपुरिया said...
25 August 2009 at 6:49 am  

बहुत मार्मिक और भावुक चित्रण किया है आपने आपबीती का. धैर्य धारण करिये. विधी का विधान अटल है. ईश्वर माताजी की आत्मा को शांति दे.

रामराम.

gravatar
नीरज गोस्वामी said...
25 August 2009 at 10:00 am  

इश्वर माँ की आत्मा को शांति दे....और आपको गम सहने का हौसला...
नीरज

gravatar
Anonymous said...
25 August 2009 at 12:34 pm  

मृत्यु एक सरिता है जिसमें श्रम से कातर जीव नहाकर
फिर नूतन धारण करता है काया रूपी वस्त्र बहाकर
अगर माँ के प्रति आपकी श्रद्घा निष्कलंक है तो आप कभी भी उन क्षणों में उन्हें पुकारिए जिन क्षणों में बचपन से उन्हें पुकारते रहे ,तो आपको उनकी उपस्थिति का पूरा आभास होगा .
मेरी मम्मी को देह त्यागे आठ साल हो गये पर मैं आज भी उन्ही से कहती हूँ कि मुझे सवेरे ३ बजे ,....बजे , ....बजे उठा देना और आज भी वे मुझे एकदम सही समय पर उठा देती हैं ,अब तो वो मेरे ज्यादा नजदीक हैं

gravatar
रंजू भाटिया said...
25 August 2009 at 12:42 pm  

ईश्वर माता जी की आत्मा को शान्ति दे ..माँ की कमी कभी पूरी नहीं की जा सकती है

gravatar
गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...
25 August 2009 at 2:51 pm  

प्रभू माँजी की आत्मा को शांति दे। माँ की कृपा आपके पूरे परिवार पर बनी रहे।

gravatar
Arvind Mishra said...
25 August 2009 at 7:58 pm  

आपने यह हमसे साझा किया जी हल्का हो गया होगा -हम हिन्दू इस पूरे अनुष्ठान -संस्कार से जीवन में रूबरू होते हैं ! माँ को श्रधांजलि !

gravatar
Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...
25 August 2009 at 8:03 pm  

ईश्वर माता जी की आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें!!!

gravatar
दिलीप कवठेकर said...
30 August 2009 at 7:23 pm  

मां की क्षति सबसे बडी क्षति है. दिल भारी हो गया मेरा, तो आपका क्या हाल हुआ होगा. ईश्वर उनकी आतमा को शांति दें और आपको इस दुख में संबल दे.

gravatar
Smart Indian said...
1 September 2009 at 2:51 am  

भाटिया जी, आपके दर्द को महसूस भी कर सकते हैं और आपके दुःख में साथ भी हैं। पढ़कर ऐसा महसूस हुआ जैसे कि वहां मौजूद हों। ईश्वर माँ की आत्मा को शांति दे।

gravatar
दिगम्बर नासवा said...
1 September 2009 at 10:30 am  

ईश्वर माता जी की आत्मा को शान्ति दे.... मां की क्षति सबसे बडी क्षति है .....

gravatar
दिगम्बर नासवा said...
1 September 2009 at 10:38 am  

ईश्वर माता जी की आत्मा को शान्ति दे.... मां की क्षति सबसे बडी क्षति है ....

Post a Comment

Post a Comment

नमस्कार,आप सब का स्वागत हे, एक सुचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हे, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी हे तो माडरेशन चालू हे, ओर इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा,नयी पोस्ट पर कोई माडरेशन नही हे, आप का धन्यवाद टिपण्णी देने के लिये

टिप्पणी में परेशानी है तो यहां क्लिक करें..
मैं कहता हूं कि आप अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में लिखें।उनको गरज होगी तो वे हमारी बात सुनेंगे। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा।*जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे तो हिंदी भाषा का दर्जा बढ़ेगा। महात्मा गांधी अंग्रेजी का माध्यम भारतीयों की शिक्षा में सबसे बड़ा कठिन विघ्न है।...सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"महामना मदनमोहन मालवीय