घर मै पहला दिन.....
मां के चरणॊ मै
सुबह करीब ३,३० बजे मै दिल्ली पहुच गया, ओर आधे घंटे मै एयरपोर्ट से बाहर आ गया, वहा से सीधे टेक्सी पकड कर, रोहतक घर पर सुबह ६,३० पर घर पहुच गया था,अभी सभी सोये हुये थे, अन्दर जा कर देखा तो मां निठाल सी हड्डियो के पिंजर के रुप मे अपने बिस्तर पर पडी थी, जीवन की अंतिम सांसे गिनती हुयी, मेने पाव छुये... पता नही मां को मेरे आने का पता चला या नही, फ़िर मै काफ़ी देर मां के पास बेठा रहा,सारा समय जहाज मै भी नही सोचा ओर अब मुझे २४ घंटे हो गये थे, लेकिन नींद का नाम भी नही था आंखॊ मै,बस मां को देख कर दिल रो ही रहा था कि कहा तो मां मुझे लेने के लिये एयरपोर्ट आती थी..... ओर अब उठ कर प्यार भरा हाथ भी सर पर ना रख सकती है, क्या करुं मां जिस से तु फ़िर से ठीक हो जाये ? अरे मै तो तेरा पासपोर्ट भी बना चुका हुं, सोचा था थोडी ठीक होगी तो साथ ले जाऊगां, ओर फ़िर वहा कानून से खुद ही लड कर तुझे अपने पास ही रखूगां... लेकिन तु तो कही ओर जाने को तेयार बेठी है. जब भी मां के होठ हिलते तो ध्यान से देखता कही कुछ समझ मै आ जाये ?? लेकिन वहा सिर्फ़ कराह ही सुनाई देती, हि भगवान क्यो दुख दे रहा है तु मां को ? तेरे सारे वर्त, पुजा यही तो करती रही है, क्या यही फ़ल दे रहा है.....
दोपहर को ड्रा साहब आये, उन्होने बस मां का ध्यान रखने को ही कहा कि किसी भी समय कुछ भी हो सकता है, मां के शरीर पर मांस नाम मात्र ही बचा था,ओर शाम होते होते मां के हाथ पांव ठंडे होने शुरु हो गये, पडोस मे एक स्यानी (बुजुर्ग ) ओरत थी उन्होने मां को देख कर कहा की अब इन्हे नीचे उतार लो ... बस कुछ समय की ही मेहमान है, भाई ओर उस की वीवी ने सारी तेयारी कर ली, फ़िर ड्रा जी आये ओर उन्होने भी कहा कि बस कुछ ही घंटो की मेहमान है, आप सब ध्यान रखे, धीरे धीरे हाथ पांव ठंडे होने लगे तो हमारी छोटी भाभी बोली भईया अब नीचे उतार लो.... जब मै मां को उठाने लगा तो मेरा मन नही माना.... जो मां हमारे लिये आज तक खुद गीले मै सोती रही उसे नीचे फ़र्श पर केसे लिटा दुं, फ़िर पता नही क्यो मुझे लगा कि मां इतनी जलदी नही जाने वाली, ओर मेने सब को मना कर दिया कि मां की सांसे जब तक है, मै हर पल मां के सिरहाने बेठा हुं, ओर जब समय आयेगा तभी नीचे उतारेगे.
Maa.mp3 |
उस दिन सारा समय मै मां के पास बेठा मां का हाथ पकडे रहा, सोचने लगा कि अब भगवान से क्या मांगू ? मां जिस अवस्था मै है ओर तडप रही है.... क्या अब मां की लम्बी उम्र मांग कर मां को दुखी तो नही कर रहा ? बस यही इंसान लाचार हो जाता है, जिस मां की एक आवाज ,एक बात इस घर मै हुकम होती थी, जो रानी की तरह रहती थी आज ....... दिल अंदर ही अंदर रॊ रहा था, है भगवान यह केसा समय ले आया तु मेरी जिन्दगी मै, जो अपनी ही मां की मोत चाहता है, अब केसे तुझ से प्राथना करुं कि ले ले मेरी मां के प्राण, उसे ज्यादा मत सता.....बस पता नही कब रात हो गई, मै मां के सिरहाने बेठा पता नही कितने युगो पिछे यादो मे खो गया, फ़िर मां को बुलाता, लेकिन मां की तो कराहने की आवाज ही आती, हाय... हाय करती.... ओर उस रात हम सब जागते रहे, ओर सुबह तक मां का शरीर फ़िर से गर्म हो गया, ओर कब मेरी आंख लग गई पता नही चला.
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22 August 2009 at 8:09 pm
क्या कहे भाटीया जी.. बहुत अफसोसजनक.. दुखद..
22 August 2009 at 8:19 pm
मार्मिक रचना, आपने शब्दो के माध्यम से अपने इस रचना को एसा रचा है की पढने के बाद लगता है मै आपके जगह उस अनुभूति को महसुस कर रहा हूं।
22 August 2009 at 9:03 pm
We are feeling your pain Raj bhai sahab
:-(((
22 August 2009 at 9:20 pm
मां ऐसी ही होती है चाहे हम जितने बडॆ होजायें. उसकी कमी ताउम्र खलती रहेगी. पर क्या किया जा सकता है? प्रकृति के अपने नियम हैं. अब ढाढस धरें और अपने स्वास्थ्य का खयाल रखें.
रामराम.
22 August 2009 at 9:27 pm
बहुत अफसोसजनक और दुखद
22 August 2009 at 9:51 pm
आदरणीय राज भाई जी,
माँ .............माँ ऐसी ही होती है......
हफ़्ते में पाँच दिन उपवास रख लेती है किसके लिए ?
अपनी औलाद के सुख के लिए.....
माँ और पिता सृष्टि में साक्षात् भगवान् हैं...........
अगर इनसे विछोड़ा होता है तो बड़ा दुखदायी होता है...
माँ की याद में बहा हुआ एक एक आँसू चरणामृत से कम नहीं होता...
_____________ रुला दिया आपने.............
चलो , थोड़ी देर उस माँ के लिए प्रभु का ध्यान करें और उनके लिए
परम मुक्ति की कामना करें जिन्होंने हमारे लिए न जाने कितने त्याग
और उपवास किए होंगे............
ॐ शान्ति ! शान्ति ! शान्ति !
22 August 2009 at 9:59 pm
भाटिया जी, कुछ दुख ऎसे ही होते हैं जिन्हे शायद इन्सान मरते दम तक नहीं भुला पाता!!
22 August 2009 at 10:48 pm
बस इसी तरह हम याद करते रहेंगे और वे हमारे जेहन मे सदैव जीवित रहेंगे . उस माँ को प्रणाम ।
23 August 2009 at 1:33 am
शब्द नहीं है. बस, आँख नम है. आशा है मेरे भाव आप तक पहुँच जायेंगे.
23 August 2009 at 1:45 am
आप अंतिम समय माँ के पास रहे यह संतोषजनक है !
खासकर तब जब आप विदेश में रहते हों .
23 August 2009 at 4:21 am
ऐसे ही पल में अपनी दादीजी के साथ बिता चुका हूँ, पढ़कर तो और भी दर्द हो रहा है।
23 August 2009 at 4:35 am
अंतिम समय आप माँ के साथ रहे -सौभाग्यशाली हैं !
23 August 2009 at 4:54 am
राज भाई ..मैं भी अभी कुछ समय पहले ही इस वेदना को झेल चुका हूं, इसलिये आपका दर्द समझ सकता हूं...मां तो बस मां होती है...
23 August 2009 at 5:08 am
आपके इस दुख में हम भी सहभागी हैं।
श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभ कामनाएं-
आपका शुभ हो, मंगल हो, कल्याण हो |
23 August 2009 at 6:45 am
Apne priy ko apni aankhon ke saamne jaate dekhna kitna piida dayii hota hai mujhe maloom hai...Ishwar aap ko himmat de...
Neeraj
23 August 2009 at 6:56 am
ईश्वर अधिक से अधिक दिनों के लिये आपको आपकी माता का सानिध्य दे!
मैं भी इस प्रकार की स्थिति से गुजर चुका हूँ और मेरी माँ का स्वर्गवास मेरे देखते ही देखते हो गया था।
23 August 2009 at 8:27 am
मैं हमेशा से कहता रहा हूँ माँ जैसा कोई नही। और माँ का चले जाना बहुत दुख देता है। पर कुछ चीजें अपने वश से बाहर होती है। मेरे जैसे भावुक इंसान के लिए और कुछ कह पाना मुश्किल है। माँ की आत्मा को शांति और आपको हिम्मत मिले बस यही भगवान से माँगता हूँ।
23 August 2009 at 11:57 am
जीवन का एक बड़ा कठिन और अजीब मोड़ होता है यह . शब्द काम नहीं आते
23 August 2009 at 3:03 pm
आदरणीय भाईसाहब
प्रभु का आपके साथ आशिष था के मॉ जी के अन्तिम समय मे आप साथ थे। मॉ का चला जाना किसी भी सन्तान के लिये बडी ही हृदयविदारक घटना है। पर मॉ शब्द मे इतनी शक्ती है की वो अपनी सन्तान को हर दुखद बात से लडने की ममतव्य शक्ती प्रदान करती है। ईश्वरिय कार्यो मे हम सभी नतमष्तक है।
आज जबकी उनका नश्वर शरीर इस दुनिया मे नही है पर उनका दिव्य आशिष आपके परिवार के साथ है। मॉ ही है जो इस दुनिया मे सघर्ष करने का होसला देती है। हमारे सारे दुखो को, तकलिफो को अपने ममतामयी ऑचल मे समेट लेती है। ऐसी स्नेहमयी ममतामयी मॉ को खो देने के बाद जीवन मे कितना विराना, सूनापन आ जाता है यह मै स्वय महसुस कर चुका हू।
माता जी की प्रेणा उनके आदर्श कदम कदम पर आपको सम्बल प्रदान करगे । अपना ख्याल रखे।
आपका अपना ही
महावीर बी सेमलानी "भारती"
23 August 2009 at 6:59 pm
मन भर आया पढ़कर दास्तां दुखभरी।
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