दादी मां
आईये आप कॊ एक दादी मां की बात बतायें.....
दिल्ली से रोहतक जाने के लिये एक बुढिया दादी मां जो करीब नव्वे साल के करीब थी, ओर पतला सा शरीर ओर बेचारी से चला भी मुश्किल जा रह था, बच्चो ने शायद मना कर दिया, सो दादी मां अकेली ही दिल्ली बस स्टेंड पर खडी, जब भी बस आये तो दादी मां बस के पिछे भागे उसे पकडने के लिये, फ़िर भीड मे वह बेचारी बस मे ना चढ सके बहुत देर से ऎसा हो रहा था, ओर एक नोजवान ने जब देखा की बुढिया दादी मां इस उम्र मे तो बस नही पकड सकती. तो उसने बस आने पर बुढिया दादी मां को गोद मे उठा कर बस मे बिठा दिया.
अब दादी मां बहुत खुश हुयी, ओर उस नोजवान के सर पर हाथ फ़ेर कर आशिर्वाद ओर दुआ देने लगी...
बोली बेटा तेरा भगवान भला करे मे तो बहुत देर से बस मे चढने की कोशिश कर रही थी, तेरी मदद से बस मे चढ गई, जीते रहो, खुब खुशियां मनाओ बेटा, जेसे तुम ने मुझे उठा कर बस मे बिठाया, वेसे ही भगवान तुम्हे उठाये, जुग जुग जीयो मेरे लाल......
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23 September 2008 at 5:31 pm
रोहतक की दादी कुछ भी कह सकै..
सब माफ..
अपणा हरियाणा सै ई इसा..
23 September 2008 at 5:31 pm
bechaari dadi maa khush hokar kya bol gayin.....
hansa hi diya bus me baithkar
23 September 2008 at 6:35 pm
भाटिया जी, ऐसे ही तो नहीं सब कहते फिरते कि इस देश की बहुत सी बातें निराली हैं। वैसे उस अनजान युवक को हम सब भी अपना आशीर्वाद नेट के ज़रिये भेजना चाह रहे हैं..........निसंदेह जिस युवक के ऐसे संस्कार हैं, उस का ऊंचा उठना तो बिल्कुल तय ही है।
आपने बहुत बढ़िया नरेशन की है, भाटिया जी।
23 September 2008 at 7:54 pm
उस अम्मा के आशीर्वाद में भावनाएं क्या हैं ?
वो कह रही है की जैसे तुने मेरी मदद की वैसे ही
जरुरत लगने पर तुमको सहायता मिले ! इसीलिए तो
इसको हरयाना कहते हैं ! बहुत रोचक किसा ! और इसीलिए
हरयानावियों की हर बात में ह्यूमर छुपा होता है ! धन्यवाद !
23 September 2008 at 9:33 pm
ताऊ भी आजकल लट्ठ चलाना छोड कर दिमाग चलाने लग गये है,इसलिये उनकी हर बात से सहमत हु
23 September 2008 at 10:02 pm
ha ha ! :-)
23 September 2008 at 11:18 pm
दादी के दर्द को देिखए। शब्दों में क्या रखा है।
दादी की दुआएं आपको बहुत ऊपर ले जाएगी।
24 September 2008 at 5:32 am
' it is always said ke bde budhon ka aaserwad hmesha kaam aata hai, or kabhee un ke bddua nahee laine chaheye, enjoyed reading this story"
Regards
24 September 2008 at 9:34 am
अब मामला समझा। तो दादी मां की मदद करनेवाले वे नौजवान अपने रामपुरिया ताऊ थे। लेकिन भैया वे तो बड़े चालाक निकले, आशीर्वाद उनको मिला था और भगवान से जुड़वा भाई को उठवा दिए :)
24 September 2008 at 12:44 pm
बेचारा नौजवान।
24 September 2008 at 2:50 pm
हा हा हा !! ये तो लेने के देने पड गये!!
24 September 2008 at 2:51 pm
हा हा हा !! ये तो लेने के देने पड गये!!
25 September 2008 at 9:31 am
भई आपकी पोस्ट पढ़ते हुए हमें तो लगातार एक गाना सुनते रहे जो आपका ब्लॉग ही बजा रहा था
सो वही सही .................. जीना इसी का नाम है.
25 September 2008 at 5:21 pm
ऐसे नौजवान देश में हो जाए तो देश स्वर्ग हो जाए.
26 September 2008 at 10:16 am
हा हा...बड़ी मज़ेदार दादी हैं!
26 September 2008 at 9:01 pm
भाटिया साहब माफ़ कीजियेगा कुछ दिनों से नेट में नहीं आ सका ..इतने कम वक्त में कितना कुछ बदल गया है ..आप भी नए कलेवर में ....लेकिन बदलाव अच्छा है ...अपना ख्याल रखियेगा ...
28 September 2008 at 2:53 am
हा हा। इसे कहते हैं होम करते में हाथ जलना।
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