तुझे पा लिया……(सत्यम शिवम)
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Er. सत्यम शिवम
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कविता
तुमको कभी ऐसे पाऊँगा,
तुझमे ही मै खो जाऊँगा,
मर जाऊँगा,मिट जाऊँगा,
पर अब जुदा हो ना पाऊँगा।
जैसे छायी हो रात की कालिमा,
वैसे ही मै तुझमे समा के,
खुद को करुँगा लालिमा।
मेरी आत्मा,परमात्मा से,
मिल के जो सुख पायेगी,
मै कैसे कहूँ,क्या नाम दूँ,
शब्दों में कैसे व्यक्त करुँ?
उस मधुर मिलन की कामना।
जो बीत गया उसे भूल कर,
अंदर की आँख को खोल कर,
मन के दीपक की ज्योत जला,
तेरे चरणों में मन को लगा।
चाहूँगा मै तुझे ऐसे प्रभु,
जैसे मौत की शय्या पे पड़ा,
कोई चाहता हो जीने की लालसा।
चाहत मेरी ऐसे पूर्ण हो,
मधुबन में जैसे कोई जीर्ण हो,
हो लालसा मद्भाल की,
हो कामना बस प्यार की,
मधुशाला में भी जो रहे,
बन के प्याले की मद्लालसा।
अब तु रहेगा,मै रहूँगा,
और बस चाहत रहेगी,
तेरे साथ मै,मेरे पास तु,
बन के ख्वाहिश बस साथ चलेगी।
तु नैनों में बस जायेगा,
हर जगह तु ही नजर आयेगा,
हिन्दू भी तु,मुसलिम भी तु,
इसा भी तु कहलायेगा।
राजा भी तु,प्रजा भी तु,
शासित भी तु,शासक भी तु,
सुख दुख का सारा खेल तु,
सब भेदभाव मिट जायेगा।
मन स्वच्छंद उड़ता हुआ,
तब अपनी मँजील पायेगा।
सब को भूला,तु जो मिला,
बस तुझमे ही अब नेह लगा,
सब कष्ट मेरे अब मिट रहे,
जैसे पा लिया हो अमृत की थालसा।
तु साथ है,अब क्या प्यास है,
तु पास है,ये मेरी साँस है,
अब मै रहूँ तुझमे कहूँ,
तुझे पा लिया,तुझे पा लिया,
तुझको तो अब मै पा लिया।
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मैं कहता हूं कि आप अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में लिखें।उनको गरज होगी तो वे हमारी बात सुनेंगे। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा।*जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे तो हिंदी भाषा का दर्जा बढ़ेगा। महात्मा गांधी
अंग्रेजी का माध्यम भारतीयों की शिक्षा में सबसे बड़ा कठिन विघ्न है।...सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की
शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"महामना मदनमोहन मालवीय
18 February 2011 at 6:03 am
जो बीत गया उसे भूल कर,
अंदर की आँख को खोल कर,
मन के दीपक की ज्योत जला,
तेरे चरणों में मन को लगा।
बहुत सुन्दर सार्थक सन्देश दिया है सत्यम जी ने। धन्यवाद।
18 February 2011 at 7:18 am
पूर्ण समर्पणीय आनन्द।
18 February 2011 at 7:55 am
वाह जी एक बहुत सुंदर ओर पुर्णतया समर्पित रचना, धन्यवाद
18 February 2011 at 2:22 pm
सब को भूला,तु जो मिला,
बस तुझमे ही अब नेह लगा,
सब कष्ट मेरे अब मिट रहे,
जैसे पा लिया हो अमृत की थालसा।
बहुत सुंदर.
19 February 2011 at 6:09 am
सार्थक संदेश ,बधाई
21 February 2011 at 3:04 am
पूर्ण समर्पणीय आनन्द। धन्यवाद|
21 February 2011 at 7:06 am
राजा भी तु,प्रजा भी तु,
शासित भी तु,शासक भी तु,
सुख दुख का सारा खेल तु,
सब भेदभाव मिट जायेगा।
Sundar abhivyakti hai ... Uski sharan mein jaane se sab kuch apne aap hi mil jaata hai ...
24 February 2011 at 6:27 pm
जो बीत गया उसे भूल कर,
अंदर की आँख को खोल कर,
मन के दीपक की ज्योत जला,
तेरे चरणों में मन को लगा।
bahut sundar man ko chhoo gayi .
6 June 2012 at 3:10 am
शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
सूचनार्थ
3 November 2016 at 4:08 am
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