तुम बिन........(सत्यम शिवम)
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Er. सत्यम शिवम
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कविता
तुम बिन तो हम हरपल उदास है,
हर खुशी पास है, पर जाने किसकी आश है।
वो तो लगता है भूला देगी मुझे,
पर मै कैसे कहूँ, कि साँस तो चल रही है,
लेकिन धडकन उनके पास है।
तुम बिन हर मोर पर तन्हाई है,
महफिल में भी जिंदगी से मिली रुसवाई है।
कमबख्त इश्क भी क्या चीज है,
बिन कहे किसी को दिल दे देता है,
और मिलती है जब प्यास राहों में,
तो दरिया के साथ समंदर भर लेता है।
हर दर्द को दिल में कैद कर,
गम का सैलाब जो बनता है,
आँखे बरसने लगती है,
तुम बिन तो वो कुछ ना करता है।
किनारे पे भी आके मौजे लौट जाती है,
मँजिल के करीब भी आके राही,
रास्ता भूल जाता है।
तुम बिन तूफान आता है, और जाता है,
सदिया आती है, और जाती है,
सब मौसम फलक पे छाती है,
पर दिल से तेरी सूरत कभी ना जाती है।
तुम बिन दिन को रात लिखते है,
अकेले में खुद से ही बात करते है,
पलकों में ख्वाबों का बसेरा होता है,
बस तुम बिन कभी भी ना,
जीवन में सवेरा होता है।
बस तुम बिन, इक तुम बिन, तुम बिन.........
हर खुशी पास है, पर जाने किसकी आश है।
वो तो लगता है भूला देगी मुझे,
पर मै कैसे कहूँ, कि साँस तो चल रही है,
लेकिन धडकन उनके पास है।
तुम बिन हर मोर पर तन्हाई है,
महफिल में भी जिंदगी से मिली रुसवाई है।
कमबख्त इश्क भी क्या चीज है,
बिन कहे किसी को दिल दे देता है,
और मिलती है जब प्यास राहों में,
तो दरिया के साथ समंदर भर लेता है।
हर दर्द को दिल में कैद कर,
गम का सैलाब जो बनता है,
आँखे बरसने लगती है,
तुम बिन तो वो कुछ ना करता है।
किनारे पे भी आके मौजे लौट जाती है,
मँजिल के करीब भी आके राही,
रास्ता भूल जाता है।
तुम बिन तूफान आता है, और जाता है,
सदिया आती है, और जाती है,
सब मौसम फलक पे छाती है,
पर दिल से तेरी सूरत कभी ना जाती है।
तुम बिन दिन को रात लिखते है,
अकेले में खुद से ही बात करते है,
पलकों में ख्वाबों का बसेरा होता है,
बस तुम बिन कभी भी ना,
जीवन में सवेरा होता है।
बस तुम बिन, इक तुम बिन, तुम बिन.........
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मैं कहता हूं कि आप अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में लिखें।उनको गरज होगी तो वे हमारी बात सुनेंगे। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा।*जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे तो हिंदी भाषा का दर्जा बढ़ेगा। महात्मा गांधी
अंग्रेजी का माध्यम भारतीयों की शिक्षा में सबसे बड़ा कठिन विघ्न है।...सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की
शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"महामना मदनमोहन मालवीय
12 February 2011 at 12:30 pm
एक दर्द का दरिया है और डूबते जाना है।
12 February 2011 at 7:01 pm
बहुत ही डुब के लिखी लगती हे यह कविता, धन्यवाद इस सुंदर कविता के लिये
13 February 2011 at 5:41 am
बहुत खूबसूरत ,धन्यवाद.
14 February 2011 at 8:29 am
दर्द की दास्तां अच्छे भाव। शुभकामनायें।
17 February 2011 at 2:24 am
बहुत सुंदर, किसी एक की जगह पर कितनी चीजें छूट जाती हैं।
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