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तुम बिन........(सत्यम शिवम)

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तुम बिन तो हम हरपल उदास है,
हर खुशी पास है, पर जाने किसकी आश है।
वो तो लगता है भूला देगी मुझे,
पर मै कैसे कहूँ, कि साँस तो चल रही है,
लेकिन धडकन उनके पास है।

तुम बिन हर मोर पर तन्हाई है,
महफिल में भी जिंदगी से मिली रुसवाई है।

कमबख्त इश्क भी क्या चीज है,
बिन कहे किसी को दिल दे देता है,
और मिलती है जब प्यास राहों में,
तो दरिया के साथ समंदर भर लेता है।

हर दर्द को दिल में कैद कर,
गम का सैलाब जो बनता है,
आँखे बरसने लगती है,
तुम बिन तो वो कुछ ना करता है।

किनारे पे भी आके मौजे लौट जाती है,
मँजिल के करीब भी आके राही,
रास्ता भूल जाता है।

तुम बिन तूफान आता है, और जाता है,
सदिया आती है, और जाती है,
सब मौसम फलक पे छाती है,
पर दिल से तेरी सूरत कभी ना जाती है।

तुम बिन दिन को रात लिखते है,
अकेले में खुद से ही बात करते है,

पलकों में ख्वाबों का बसेरा होता है,
बस तुम बिन कभी भी ना,
जीवन में सवेरा होता है।

बस तुम बिन, इक तुम बिन, तुम बिन.........

5 टिपण्णी:
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प्रवीण पाण्डेय said...
12 February 2011 at 12:30 pm  

एक दर्द का दरिया है और डूबते जाना है।

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राज भाटिय़ा said...
12 February 2011 at 7:01 pm  

बहुत ही डुब के लिखी लगती हे यह कविता, धन्यवाद इस सुंदर कविता के लिये

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डॉ. मनोज मिश्र said...
13 February 2011 at 5:41 am  

बहुत खूबसूरत ,धन्यवाद.

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निर्मला कपिला said...
14 February 2011 at 8:29 am  

दर्द की दास्तां अच्छे भाव। शुभकामनायें।

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वर्षा said...
17 February 2011 at 2:24 am  

बहुत सुंदर, किसी एक की जगह पर कितनी चीजें छूट जाती हैं।

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