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मैं कहता हूं कि आप अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में लिखें।उनको गरज होगी तो वे हमारी बात सुनेंगे। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा।*जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे तो हिंदी भाषा का दर्जा बढ़ेगा। महात्मा गांधी
अंग्रेजी का माध्यम भारतीयों की शिक्षा में सबसे बड़ा कठिन विघ्न है।...सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की
शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"महामना मदनमोहन मालवीय
23 January 2009 at 2:14 am
छिः छिः क्यों यह तो सहज मानवीय जुगुप्सा है !
23 January 2009 at 3:45 am
यो मेरा मट्टा के देखण लाग रया सै?
रामराम.
23 January 2009 at 4:15 am
ऐसे ऐसे ही दिवाने, वरना नही पड़ते ये कपड़े खुलवाने...
23 January 2009 at 4:45 am
Maa tujhe pranam
23 January 2009 at 6:58 am
इतनी ही छी छी थी तो यहाँ छापी ही क्यों?
23 January 2009 at 7:01 am
होता है चलता है दुनिया है|
23 January 2009 at 11:53 am
मन क्यों बहका रे बहका?
---आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें
23 January 2009 at 4:44 pm
IS CHITRA MAI KOI KHARAAB BHAAV NAHE HAI. AGLAA SHRADHHA KE SAATH NIHAAR RAHAA HAI. LEKIN AAP ISE KAHAAN SE KYU LAAYE HAI JEE. DUNIYAA MAI BAHUT KUCHH BAHUT TARAH SE HOTAA RAHTAA HAI
23 January 2009 at 10:05 pm
अब इन्हें क्या कहूँ...?
26 January 2009 at 9:59 pm
कोई देख लेगा राज भाई??
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