छोटी सी बात लेकिन असर बहुत ज्यादा
अभी कुछ दिन पहले मै भारत मे था, किसी रिश्ते दार के संग कार मे दिल्ली की किसी सडक पर जा रहे थे, सडक काफ़ी व्यस्थ थी, कुछ आगे जा कर् रेड लाईट थी, सब लोगो ने आगे निकलने के लिये कारे, स्कुटर, बसे यानि जिस के पास जो था, सटा कर खडे थे, तभी कही से एमबुलेंस के सायरन की आवाज आई. मैने अपने रिश्ते दार से कहा कि जल्द से जल्द जगह दो इसे आगे निकलना हे, लेकिन जगह केसे बने? तो मेरे रिश्तेदार ने कहा कि यहां यह सब आम हे, यह बजती रहे कोई भी इसे जगह नही देगा..... मैने उन से कहा अगर उस जिन्दगी की जगह आप का कोई अपना होता तो क्या आप फ़िर भी इसी तरह से अडे रहते? अब रिश्ते दार की शकल देखने की थी, तो मैने कहा, अब हम सब को इन बातो से सुधरना चाहिये, ओर मैने उन से कहा कि आप अपनी कार पर एक नारा लिख कर लगाये*** कृप्या ऎम्बूलेंस ओर फ़ायर बिर्गेड को जगह दे, शायद आगे आप का कोई अपना भी हो सकता हे, जिसे मदद की सख्त जरुरत हे, आप के हाथ मे हे उन की जिन्दगी,***
ओर उन्होने घर जा कर सब को बताया ओर कसम खाई की आगे से वो चाहे कितना लेट हो जाये , लेकिन जगह जरुर देगे, तो आप भी तेयार हे, मेरे साथ, तो इस नारे को प्रिंट कर के अपनी कार, ट्रक, बस या जहां जगह मिले जरुर लगाये.
धन्यवाद
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10 December 2010 at 6:21 pm
जगह अवश्य देना चाहिये, सामाजिक दायित्व है।
11 December 2010 at 3:12 am
बहुत सही सीख दी आपने। आए दिन जब सड़क पर ऐसा देखत हूं तो मन करता ऐसे लोगों को उतर कर ...बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
विचार-मानवाधिकार, मस्तिष्क और शांति पुरस्कार
11 December 2010 at 3:56 am
आप एक संवेदनशील आदमी है.आपके विचार उत्तम और वन्दनीय हैं.आपके विचारों से सहमत हूँ.
11 December 2010 at 5:40 am
मेरे देश में यह भी एक कमी है।
11 December 2010 at 5:45 am
ये तो सब के लिये एक अच्छा सन्देश है। आपने सही राह सुझाई अपने रिश्तेदार को इससे औरों को भी एक नसीहत मिली। बधाई इस नेक काम के लिये।
11 December 2010 at 1:29 pm
सब के लिये एक अच्छा सन्देश है। धन्यवाद।
11 December 2010 at 2:00 pm
बात तो आपकी सही है पर यहां ताऊ लोग एक काम और भी करते हैं. जब एंबुलेंस खाली जा रही हो यानि कोई मरीज ना हो तब भी आगे निकलने के लिये एंबुलेंस का सायरन बजाया करते हैं.:)
तो कुल मिलाकर भेडिया आया वाली कहावत है. बस किसी तरह काम चल रहा है ऊपर वाले की कृपा से.
रामराम.
11 December 2010 at 6:27 pm
कार के पीछे तो नहीं लेकिन मन के भीतर यह नारा जरूर खुदा रखा है। यथा संभव पालन भी करते हैं।
@जब एंबुलेंस खाली जा रही हो यानि कोई मरीज ना हो तब भी आगे निकलने के लिये एंबुलेंस का सायरन बजाया करते हैं.:)
सम्भव है कि खाली एंबुलेंस किसी मरीज के घर उसे इमर्जेंसी में लेने जा रही हो। इसलिए एंबुलेंस की तलाशी लेकर रास्ता देने की मानसिकता ठीक नहीं है।
12 December 2010 at 4:06 am
12 December 2010 at 4:28 am
@सम्भव है कि खाली एंबुलेंस किसी मरीज के घर उसे इमर्जेंसी में लेने जा रही हो। इसलिए एंबुलेंस की तलाशी लेकर रास्ता देने की मानसिकता ठीक नहीं है।
हम तो खुद एंबुलेंस चलाते हैं और दिन भर मरीजों की बजाये डाक्टरों को भी ड्य़ुटी के लिये एंबुलेंस द्वारा घर से लाया पहुंचाया करते हैं. और उस समय भी जबरन सायरन बजाया करते हैं. वैसे हर बात के दो पहलू होते हैं, कहीं गधा ऊपर तो कहीं नीचे.
वैसे महामहिम मेरे कमेंट में लिखा है "जब एंबुलेंस खाली जा रही हो यानि कोई मरीज ना हो तब भी आगे निकलने के लिये एंबुलेंस का सायरन बजाया करते हैं.:)"
यहां हूजूर ने यानि कोई मरीज ना हो पर गौर नही किया, जिसके अभाव में मनचाहा अर्थ निकाल लिया गया है. उम्मीद है आपकी निगाह में मेरे कमेंट के उपरोक्त अति महत्वपूर्ण छूटे हुये शब्द भी आगये होंगे जिनको गौण कर के आपश्री ने मेरे कमेंट की असली आत्मा ही मार डाली है. बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं.
रामराम
13 December 2010 at 1:08 am
सही कहा है आपने!
एम्बुलेंस से किसी की जिन्दगी जुड़ी होती है!
13 December 2010 at 10:24 am
ये सभी आदतें और इस तरह की सोच अपने देश में आने में अभी वक़्त लगेगा ... पर संवेदनाएँ रहनी चाहिएं ....
14 December 2010 at 7:30 am
बात बिल्कल सही है पर कई बार अम्बुलांस खाली होने पर भी सायरन बजाते है
16 December 2010 at 8:11 am
aapne to hamare man ki baat likh di
ek accha priyas
16 December 2010 at 3:54 pm
पता नहीं कब दुसरे का कष्ट हम समझने लग पाएंगे
3 November 2016 at 4:13 am
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