हमे अपनी रीति रिवाजो की कद्र नही, संस्कार क्या हे, इन्हे आज हम वकबास कहते हे....
.
राज भाटिय़ा
.
जानकारियां
मोक्ष के लिए बर्लिन से हरिद्वार
हर की पौडी में गंगा के तट पर चार साल का एक नन्हा बालक अपने पिता की अस्थियां विसर्जित कर रहा है. पिता की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना के साथ.पुरी खबर पढने के लिये यहां किल्क करे
Post a Comment
नमस्कार,आप सब का स्वागत हे, एक सुचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हे, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी हे तो माडरेशन चालू हे, ओर इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा,नयी पोस्ट पर कोई माडरेशन नही हे, आप का धन्यवाद टिपण्णी देने के लिये
टिप्पणी में परेशानी है तो यहां क्लिक करें..
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
मैं कहता हूं कि आप अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में लिखें।उनको गरज होगी तो वे हमारी बात सुनेंगे। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा।*जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे तो हिंदी भाषा का दर्जा बढ़ेगा। महात्मा गांधी
अंग्रेजी का माध्यम भारतीयों की शिक्षा में सबसे बड़ा कठिन विघ्न है।...सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की
शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"महामना मदनमोहन मालवीय
1 November 2010 at 1:20 pm
बहुत सुन्दर प्रकरण। वैज्ञानिकता के नाम पर परम्पराओं की बलि दी जा रही है।
2 November 2010 at 4:31 am
जोभारतीय इन परंपराओं को भूल रहे हैं उन्हें मूर से सबक लेना चाहिये।बशुत अच्छी पोस्ट। धन्यवाद।
2 November 2010 at 11:38 am
.
बहुत लोगों को सबक मिलेगा इस पोस्ट से।
.
3 November 2010 at 7:47 am
कन्या पूजने वाले देश में अंतिम संस्कार बेटे के हाथ से ही क्यों ?
3 November 2010 at 7:48 am
कन्या पूजने वाले देश में अंतिम संस्कार बेटे के हाथ से ही क्यों ?
3 November 2010 at 1:53 pm
आपको समस्त परिवार सहित
दीपावली की बहुत बहुत हार्दिक शुभ-कामनाएं
धन्यवाद
संजय कुमार चौरसिया
3 November 2010 at 5:30 pm
is khabar ko main ek alag nazar se dekhta hoon....ek german ka vichaar ye ho sakta hai ki wahaan german sanskaaron ka apmaan hua hai...saamjhne ki baat ye hai ki jo vishwas insaan dil se maane aur apnaaye wohi saccha sanskaar hai
yun bhi is duniya ki sabse badi kamee yehi hai ki darm aur jaat insaan nahi chunta uspe thope jaate hai...mere hisaab se har vichaar, har dharm, har sankar ko jab barabari se apnaane ki chhoot hogi tab sabhi baraabar hinge...sabhi sacche honge
5 November 2010 at 7:48 am
आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
मैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ
5 November 2010 at 10:39 am
सुन्दर .दीप पर्व की हार्दिक बधाई।
6 November 2010 at 6:28 am
उत्तम पोस्ट शुभकामनाएं
_____________________________________
“बराक़ साहब का स्वागत
_____________________________________
7 November 2010 at 2:00 pm
सच बात है ....
हमारे रीती रिवाज़ और संस्कार हमें कई पाश्चात्य बुराइयों से बचाते हैं ...
बहुत अच्छी खबर ...
7 November 2010 at 4:22 pm
aapke is aalekh ko padh kar main bahut jyada hi prabhavit ho gai hun.aapne ise likh kar aur logo tak yah pahunche yah ek bhaut hi achha kaam kiya hai.
meri taraf se aapko bahut bahut badhai.
poonam
13 November 2010 at 1:06 pm
हो सकता है यह पोस्ट पढने के बाद कुछ लोगों के मन में अपने संस्कारों के प्रति जागरूकता पैदा हो !
श्रध्दा और विश्वास ही तो जीवन को सुन्दर बनाते हैं !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
15 November 2010 at 9:46 am
अपनी पम्पराओं की बलि चढ़ाने वालों को सोचने पर मजबूर करती है ये पोस्ट !
धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
9 December 2010 at 12:38 pm
):_
Post a Comment