छोटी छोटी बाते... अर्थ बहुत गहरे
पिछले शुक्र बार को बच्चे बोले की उन के दोस्त ने एक पार्टी रखी है, वहा जरुर जाना है, ओर दोनो भाई तेयार हो गये, मेने उन्हे कहा कि तुम दोनो को छोड आता हुं, ओर जब भी पार्टी खत्म हो मुझे फ़ोन कर देना मे तुम्हे लेने आ जाऊंगा,बच्चे बोले पापा हम अब कार चला सकते है, हम चले जायेगे, तो मेने कहा अभी तुम्हे बर्फ़ के मोसम मै चलाने मै मुश्किल होगी, तो बच्चे थोडा उदास हो गये, तो मेने कहा जाओ लेकिन बहुत ध्यान से.... ओर जिस का डर था वो ही हुया, कार फ़िसली ओर अगले हिस्से मै राईट साईड मै कार ठुक गई,दुसरे दिन सुबह जब मे हेरी के संग निकला तो देखा, कार को देखने मै लगा कि ज्यादा नुकसान नही हुआ है,बच्चे भी कुछ देर बाद उठ गये तो बच्चो ने सारी बात बताई, ओर बताया कि कार तो चलती है बस थोडा ही फ़र्क पडा है.
दुसरे दिन मेने घर से करीब ६० किलो मीटर दुर जाना था, जब कार चलाई तो हेरान हुआ कि बच्चे केसे इस को घर तक ले आये, क्यो कि स्टेरिंग तो बहुत मुश्किल से घुम रहा है, ओर नयी कार होने के कारण मेने इस का डबल बीमा करवा रखा है, इस लिये इस तरफ़ तो कोई फ़िक्र नही.
आज सुबह मेने अपने बीमे वाले को फ़ोन किया, ओर सारी बात बताई, तो उन्होने ने मुझ से पुछा कि क्या कार चल सकती है, तो मेने कहां हां लेकिन आप के रिश्क पर, तो अब उन्होने एक वर्क शाप से मेरी कार को लेजाने के लिये एक गाडी भेजी, ओर जब तक मेरी कार ठीक नही होती या मुझे नयी कार नही मिलती, तब तक के लिये एक नयी कार उपलब्ध करवाई, जब मेने पुछा कि इन सब का खर्च कोन देगा तो उन्होने बताया कि जर्मन मै नयी कार खरीदने पर आप को यह सब सहुलियत उम्र (११,१२ साल) मिलती है कार कम्पनी की ओर से.सभी कम्पनियो से नही बस कुछ बडी कम्पनियो की ओर से.
अभी थोडी देर मै वो मेरी कार को ऊठा कर ले जायेगे, ओर उस के स्थान पर मुझे दुसरी कार दे जायेगे, ओर जब मेरी कार ठीक हो जायेगी तो मेरी कार को छोड जायेगे, ओर अपनी कार ले जायेगे, लेकिन अपने देश मै सुना है गारंटी सिर्फ़ पेपरो पर ही मिलती है, क्यो नही हम इन लोगो से लेना चाहे तो ऎसी अच्छी बाते ग्रहण करे, अपने देश ओर अपने देश बासियो के प्रति ईमान दारी से रहे.
मेरे दोस्त ने नयी कार ली दिल्ली मै उस की सर्विस करवाने से डर रहा है, कही पुर्जे ना निकाल ले..... तो क्या ऎसी बातो से हम सच मै अमीर बन सकते है?? तो क्यो नही हम अगर नकल ही करना चाहते है इन युरोप वालो की तो अच्छी बातो की नकल करे....ऎसी बहुत सी बाते है जो रोजाना हम देखते है, लेकिन कहते डरते है कि कोई इस बात को गलत ना समझे, वर्ना तो बहुत सी बाते है जो है तो छोटी छोटी लेकिन उन के अर्थ बहुत गहरे है,
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15 March 2010 at 11:28 am
देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर...
laddoospeaks.blogspot.com
15 March 2010 at 11:59 am
कल अपने सर से बातें हो रही थी। उन्होंने भी कई किस्से सुनाए विदेशियों के काम के प्रति समर्पण के।
15 March 2010 at 12:45 pm
आप सही कह रहे हैं .. अच्छी बातों का नकल कोई नहीं करता .. चाहे वह हमारी अपनी सभ्यता संस्कृति की हो .. या फिर विदेशियों की .. आज सब अपने सुख सुविधा के लिए काम करना चाहते हैं .. दूसरों की चिंता कौन करता है ??
15 March 2010 at 12:55 pm
भाटिया जी,
अभी यह हालत है कि लोग यहाँ कार का बीमा तृतीय पक्ष का और नयी कार का पूरा बीमा कराते हैं। उस में एक्सीड़ेंट के कारण तीसरे पक्ष को हुई शारीरिक हानि शामिल होती है और कुछ हद तक संपत्ति की हानि सम्मिलित होती है। कार की जो हानि होती है वह कार के डेप्रिसिएशन के हिसाब से मिलती है। किसी भी दुर्घटना में कार को हुई हानि के पहले पाँच सौ रुपए बिलकुल नहीं मिलते हैं। इस का कारण है कि लोग बीमे का प्रीमियम नहीं देना चाहते। मोटर इंश्योरेंस भारत में घाटे का सौदा है। मोटर इंश्योरेंस से सभी बीमा कंपनियों को हानि होती है। जिस की भरपाई वे अन्य बीमा व्यवसाय से करते हैं। इस का मुख्य कारण अधिक दुर्घटनाएँ होना है जो अप्रशिक्षित चालकों, ट्रेफिक नियमों की जानबूझ कर अवहेलना करने आदि के कारण होती है।
15 March 2010 at 12:55 pm
जी हाँ बस yahan यही कुछ सिस्टम की खूबियाँ हैं जो भारत जाने मैं डर पैदा करती हैं :).
15 March 2010 at 1:00 pm
भारत में जब तक वाहन मालिकों/चालकों के लिए सख्त कानून न होंगे और उन की पालना न कराई जाएगी तब तक बीमा कंपनियाँ इसी तरह घाटे में रहेंगी और अधिक सुविधाएँ उपलब्ध नहीं करा पाएँगी।
15 March 2010 at 1:08 pm
आदरणीय नमस्कार
यह सुविधा भारत में गिने-चुने शोरूम और सर्विस सेंटर द्वारा दी जाती है जी। अब थोडा-थोडा बाजार पर इसका प्रभाव पड रहा है, वो भी केवल बिजनेस काम्पीटिशन के कारण।
यहां दिल्ली में पीरागढी चौक पर मारुती कम्पनी का शोरुम है जो पहले पास्को का था और अब डी डी मोटर्स का है। इसमें यह सुविधा दी जाती है कि जबतक आपकी गाडी सही नही होती तबतक ये लोग एक पुरानी गाडी (छोटी कार) मुफ्त में उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा जब मैं सर्विस के लिये अपनी कार इनके पास छोड कर जाता हूं तो ये मुझे 5 किमी तक अपने ड्राईवर और कार से मेरे गंतव्य तक पहुंचाने की सुविधा भी देते हैं और घर से कार सर्विस सेंटर तक (अगर 10-15 किमी है तो) लाने- ले जाने के लिये ड्राईवर भी भेज देते हैं।
प्रणाम स्वीकार करें
15 March 2010 at 1:09 pm
आपने सही कहा है जी
नकल करनी है तो इन बातों की करनी चाहिये
प्रणाम
15 March 2010 at 1:27 pm
इसलिए मै कहता हूँ की विदेशियो से उनकी अच्छाईयाँ भी सीखनी चाहिए -केवल अपसंस्कृति नहीं !
15 March 2010 at 1:36 pm
वे सच में व्यापार करना जानते हैं और हम अब व्यापारियों के कारण डरने लगे हैं। लेकिन ऐसी व्यापारिक मानकिसता अब यहाँ भी आती जा रही है। डर का तो कोई इलाज कहीं भी नहीं है। कहीं तो हमें विश्वास करना ही पड़ेगा।
15 March 2010 at 1:36 pm
एक दम सही ,संगीता जी नें सही कहा है.
15 March 2010 at 3:02 pm
इन्सान की ये प्रकृ्ति है कि वो अच्छाई बेशक सीखे न सीखे लेकिन बुराई बहुत जल्दी सीख लेगा...और यहाँ अपने देश में तो ये बात पूरी तरह से लागू होती है!
15 March 2010 at 3:10 pm
Bilkul khari baat kahi sir..
15 March 2010 at 4:23 pm
हमारे यहां तो यह सुबिधा सपने मे भी नही मिल सकती
15 March 2010 at 4:43 pm
यही तो रोना है...यहाँ काम के प्रति समर्पण भाव किसी में नहीं है...सबलोग शोर्ट कट में लगे होते हैं ...ये सारी बातें सीखनी चाहिए विदेशियों से
15 March 2010 at 4:52 pm
यहां लूटमार के चांस पहले देखे जाते हैं, अगर वो चांस नही हों तो इमानदारी की बात सोची जाती है. तो क्या तो कार कंपनी और क्या बीमा कंपनी?
रामराम
15 March 2010 at 5:08 pm
आदत बदलने में समय लगता है
15 March 2010 at 7:07 pm
बहुत प्रेरक बात है। हिन्दुस्तान को वहाँ तक पहुँचने में अभी समय लगेगा। शायद बहुत ज्यादा।
15 March 2010 at 7:14 pm
achi lgi prerk bate .
15 March 2010 at 9:16 pm
द्विवेदी जी ने यहाँ की सही स्थिति बतला ही दी है और आपने वहाँ की ।
16 March 2010 at 2:34 am
नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें ....
शुभ हो ...!!
16 March 2010 at 3:57 am
राज जी,
आप कार की सर्विस में धोखाधड़ी की बात कर रहे हैं...मेरठ में मारूति के एक डीलर ने छह महीने पुरानी चली कार ब्रैंड न्यू बुकिंग कराने वाले को चेप दी थी...खुलासा होने पर बवाल तो काफी हुआ लेकिन डीलर की डीलरशिप फिर भी बरकरार रही...
जय हिंद...
16 March 2010 at 4:27 am
बिलकुल सही बात है हम बुरी बातें तो सीख लेते हओं मगर अच्छी नही। आपको नव संवत्सर की मांगलिक शुभकामनाएँ.
16 March 2010 at 8:47 am
अच्छी बात तो अच्छी ही होती है चाहे वह यूरोपियन्स से मिले या किसी और से।
16 March 2010 at 12:02 pm
अच्छी बातें सीख लेनी चाहिए
16 March 2010 at 7:36 pm
sahi gyaan jahan mile haasil karna chahiye ,prernadayak .
17 March 2010 at 8:00 pm
सर, क्या उम्दा बात कही है आपने.. मजा आ गया..
18 March 2010 at 2:27 am
अभी थोडी देर मै वो मेरी कार को ऊठा कर ले जायेगे, ओर उस के स्थान पर मुझे दुसरी कार दे जायेगे, ओर जब मेरी कार ठीक हो जायेगी तो मेरी कार को छोड जायेगे, ओर अपनी कार ले जायेगे, लेकिन अपने देश मै सुना है गारंटी सिर्फ़ पेपरो पर ही मिलती है, क्यो नही हम इन लोगो से लेना चाहे तो ऎसी अच्छी बाते ग्रहण करे, अपने देश ओर अपने देश बासियो के प्रति ईमान दारी से रहे.
आपकी चिंता सही है। हमारी चिंता में भय अधिक है। भय से चिंता और चिंता से भय को अगर हम मुक्त करा सकें तो हमार विकास तेज हो सकता है।
18 March 2010 at 2:28 am
अभी थोडी देर मै वो मेरी कार को ऊठा कर ले जायेगे, ओर उस के स्थान पर मुझे दुसरी कार दे जायेगे, ओर जब मेरी कार ठीक हो जायेगी तो मेरी कार को छोड जायेगे, ओर अपनी कार ले जायेगे, लेकिन अपने देश मै सुना है गारंटी सिर्फ़ पेपरो पर ही मिलती है, क्यो नही हम इन लोगो से लेना चाहे तो ऎसी अच्छी बाते ग्रहण करे, अपने देश ओर अपने देश बासियो के प्रति ईमान दारी से रहे.
आपकी चिंता सही है। हमारी चिंता में भय अधिक है। भय से चिंता और चिंता से भय को अगर हम मुक्त करा सकें तो हमार विकास तेज हो सकता है।
18 March 2010 at 5:42 pm
...आपकी बातें भले ही छोटी-छोटी हैं लेकिन प्रभावशाली व अनुसरण योग्य हैं, धीरे-धीरे इंडिया में भी सुधार आने की संभावना है!!!
19 March 2010 at 9:29 am
बातें छोटी पर मतलब बड़े..!!
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"शब्द-शिखर" पर - हिन्दी की तलाश जारी है
20 March 2010 at 6:19 pm
aapane bilkul sahi kaha hai,chhotichhoti baatien kabhibadi badi, badi seekh de jaati hain.
poonam
22 March 2010 at 8:06 pm
aapki ghatna bahut dilchsp lagi ,aap sahi kahe hum achchhi baate kyo nahi sikhte ,kyo galat baat ko badhawa dete hai tarakki ke naam par .sundar lekh
23 March 2010 at 12:20 pm
आपने सही कहा भाटिया जी ... अपनी ज़िम्मेवारी के प्रति, जागरूकता के प्रति अभी हम भारतीय बहुत पीछे हैं ... बहुत कुछ सीखना बाकी है ....
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