जनाब क्या खायेगे? चलिये खुद ही देख ले क्या क्या मिलता है यहां
यह मुझे Mohan Vashisth जी ने मेल से भेजी ओर मेरे दिल को छुगई, मेने इसे आगे मेल करने कि व्जाय इस की पोस्ट बना दी..,,
आज सभी फ़ोटो गायब हो गये जी.... पता नही कहां
जाना जो खाना खाते हो वो पसंद नहीं आता ? उकता गये ?
............ ... ........... .....थोड़ा पिज्जा कैसा रहेगा ?
नहीं ??? ओके ......... पास्ता ?
नहीं ?? .. इसके बारे में क्या सोचते हैं ?आज ये खाने का भी मन नहीं ? ... ओके .. क्या इस मेक्सिकन खाने को आजमायें ?दुबारा नहीं ? कोई समस्या नहीं .... हमारे पास कुछ और भी विकल्प हैं........
ह्म्म्मम्म्म्म ... चाइनीज ????? ??
ओके .. हमें भारतीय खाना देखना चाहिए .......हमारे पास अनगिनत विकल्प हैं ..... .. टिफिन ? मांसाहार ?
या केवल पके हुए मुर्गे के कुछ टुकड़े ?
आप इनमें से कुछ भी ले सकते हैं ... या इन सब में से,
थोड़ा- थोड़ा ले सकते हैं ...
अब शेष बची मेल के लिए परेशान मत होओ....
मगर .. इन लोगों के पास कोई विकल्प नहीं है ..इन्हें तो बस थोड़ा सा खाना चाहिए ताकि ये जिन्दा रह सकें .......... इनके बारे में अगली बार तब सोचना जब आप किसी केफेटेरिया या होटल में यह कह कर खाना फैंक रहे होंगे कि यह स्वाद नहीं है !!
ही नहीं जाती.........अगर आगे से कभी आपके घर में पार्टी / समारोह हो और खाना बच जाये या बेकार जा रहा हो तो बिना झिझके आप ००००० (केवल भारत में )पर फ़ोन करें - यह एक मजाक नहीं है - यह चाइल्ड हेल्पलाइन है । वे आयेंगे और भोजन एकत्रित करके ले जायेंगे
लिए दुनिया की सबसे अच्छी जगह बनाने में सहयोग कर सकें -
'मदद
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28 February 2010 at 8:00 pm
आदरणीय राज साहब,
क्या कहना! लाजवाब और मार्के का संदेश दिया है आपने। हुड़दंग के मौकों पर कभी कभी संजीदगी कितनी भली लगती है सर। बहुत बहुत आभार और बहुत बहुत बधाई महापर्व पर।
28 February 2010 at 8:39 pm
bahut hi laazwaab ,holi ke parv par bahut hi badhai ,holi mangalmaya ho .
28 February 2010 at 9:04 pm
जरुरी संदेश...देखा था.
ये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
खुशी की हो बौछार,चलो हम होली खेलें.
आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.
-समीर लाल ’समीर’
28 February 2010 at 10:28 pm
सुंदर ई-मेल है, मुझे भी मिला है। पर हमें तो यह आदत बहुत पहले से है कि खाने का बरतन खाने के बाद बिलकुल चमकता हो।
28 February 2010 at 11:29 pm
सुन्दर सन्देश
चित्र खुल नही रहे हैं
1 March 2010 at 4:18 am
बहुत अच्छा सन्देश है। एक संस्था जालन्धर मे भी थी जो लोगों का बचा खुचा खाना इकट्ठा करते थी बाद मे पता चला कि वो उसे पशू डायरी मे बेच देते थे। उस आदमी का बहुत बडा कारोबार था ये। इनका प्रयास अच्छा है मगर इनके नाम का कोई और फायदा न उठाये ये ध्यान रखना होगा इन्हें। आपको व परिवार को होली की शुभकामनायें।
1 March 2010 at 6:10 am
शुभ होली.
2 March 2010 at 5:49 am
Chitr nahin dikhe?/
achchha sandesh hai.
holi ki shubhkamnayen.
6 March 2010 at 1:17 pm
अच्छा संदेश है और बहुत ही अच्छी बात है .... हर शहर में ऐसा कुछ हो सके तो कितना अच्छा हो ...
6 March 2010 at 7:34 pm
समाज के जिस वर्ग का ज़िक्र है, क्या उसकी मदद का यही उपाय है?
6 March 2010 at 9:15 pm
शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' जी आप की बात ,आप का सवाल बहुत सही ओर उचित लगा, यह एक उपाय है जो उचित नही, लेकिन जब भी कोई उचित उपाय करता है तो उस मै भी कुछ समय बाद गरीबो ओर ऎसे लोगो को नजर आंदाज कर के, अपना पेट ओर अपना बेंक भरने मै लग जाते है
7 March 2010 at 6:56 am
उत्तम सन्देश उत्तम सुझाव
8 March 2010 at 2:35 am
...फ़ोटो के अभाव मे सार समझ में नहीं आ रहा है बस "चाईल्ड हेल्पलाईन" से ही अर्थ लगाया जा सकता है !!!!
8 March 2010 at 11:46 am
eksandesh deti prabhav shali post.
poonam
8 March 2010 at 12:39 pm
एक बहुत अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद
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