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मैं कहता हूं कि आप अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में लिखें।उनको गरज होगी तो वे हमारी बात सुनेंगे। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा।*जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे तो हिंदी भाषा का दर्जा बढ़ेगा। महात्मा गांधी
अंग्रेजी का माध्यम भारतीयों की शिक्षा में सबसे बड़ा कठिन विघ्न है।...सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की
शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"महामना मदनमोहन मालवीय
26 June 2009 at 9:46 am
मजेदार भाटिया जी.............. शुक्र है हमारे बच्चे ऐसे नहीं थे अपने बचपन में.............
26 June 2009 at 9:54 am
बहुत बेहुदा विज्ञापन... बच्चों कि इतनी नकारात्मक छवी? क्या कहना चाहता है.. बच्चों मत पैदा करो?
26 June 2009 at 10:09 am
ऐसे बच्चे बेबस कर देते हैं मां बाप को।
26 June 2009 at 10:11 am
कितने स्वरूप बदल गये है,
आधुनिक भावी पीढ़ी का,
ऐसे विज्ञापन सही नही है.
26 June 2009 at 10:13 am
मैं तो देख ही नहीं पा रहा हूं.
26 June 2009 at 12:18 pm
समझ में नहीं आ रहा है कि इस विज्ञापन को बनाने वाले इसके जरिये क्या दिखाना चाहते हैं , परिवार नियोजन के लिए अब और कोई सोच नहीं बची है क्या ? .
26 June 2009 at 12:44 pm
is balak ko tau raampuriya bhi thik nahin nkar sakta, isliye raajji, aap bhi koshish na karen........
subh subh daraa diya yaar...
26 June 2009 at 12:47 pm
यह विज्ञापन क्या कह रहा है ? मै भी इस बात से सहमत नही हुं,
लेकिन जो मै कहना चहाता हुं, कि अगर हम अपने बच्चो को भी इन लोगो की तरह रखेगे(जेसा कि आज कल ७५% लोग रखते है, तो परिणाम आप इस विडियो मै देख ले) बच्चो को प्यार डांट उन के अच्छॆ भविष्य के लिये दी जाती है, अब आप खुद सोचे कि आप का बच्चा ऎसा बने या फ़िर अच्छा.
यहां युरोप मै इन लोगो को परवाह नही इस लिये बच्च कुछ भी करे, क्योकि यहां बच्चे का भविष्या मां बाप नही सरकार समभालत ही, क्या हमारी सरकार हमारे बिगडे बच्चे को समभालेगी???
26 June 2009 at 12:49 pm
ओर हां मेने ऎसे बच्चे अपने भारत मै भी देखे है, लेकिन इस मे बच्चो का कोई कसुर नही, कसुर मां बाप का है, अभी भी समभल जाओ
26 June 2009 at 2:07 pm
बहुत बढ़िया
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मिलिए अखरोट खाने वाले डायनासोर से
26 June 2009 at 2:55 pm
हा हा!! मजेदार सजा!
26 June 2009 at 2:58 pm
अपने यहां भी मैंने ऐसे आफत के परकाले देखे हैं और तुर्रा यह है कि ऐसी हरकतों पर उनके माँ-बाप खिसियानी हंसी हस कर कहेंगे, जी थोड़ा शरारती है। उस समय मन तो करता है कि छुटकू को नहीं बड़कू को ही एक.....
26 June 2009 at 4:00 pm
uff ! ye dhamaal !
29 June 2009 at 8:02 am
जय हो इन बालकों की.
रामराम.
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