क्या ऎसी भी हो सकती है रेलवे लाईन ??
.
राज भाटिय़ा
.
चित्र
यह है जर्मनी के शहर फ़्रेंक फ़ुर्त के रेलवे स्टेशन से मामुली आगे का चित्र... केसा भी मोसम हो लेकिन आप की ट्रेन कभी भी लेट नही आयेगी..... ओर कभी लेट आई तो आप को आप का पुरा हर्जाना मिलेगा , ओर टिकट के पेसे वापिस.
चाहे धुंध हो या मुसलाधार बरसात, या फ़िर बहुत बर्फ़ बारी लेकिन याता यात पर कोई असर नही पडता, क्योकि यहा कोई बहाना नही चलता.
Post a Comment
नमस्कार,आप सब का स्वागत हे, एक सुचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हे, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी हे तो माडरेशन चालू हे, ओर इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा,नयी पोस्ट पर कोई माडरेशन नही हे, आप का धन्यवाद टिपण्णी देने के लिये
टिप्पणी में परेशानी है तो यहां क्लिक करें..
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
मैं कहता हूं कि आप अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में लिखें।उनको गरज होगी तो वे हमारी बात सुनेंगे। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा।*जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे तो हिंदी भाषा का दर्जा बढ़ेगा। महात्मा गांधी
अंग्रेजी का माध्यम भारतीयों की शिक्षा में सबसे बड़ा कठिन विघ्न है।...सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की
शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"महामना मदनमोहन मालवीय
21 February 2009 at 2:17 pm
सच कहा अपने राज साहेब...फ्रैंक फर्ट ही क्या जर्मनी के किसी भी शहर कसबे से आप ट्रेन को देख अपनी घड़ी मिला सकते हैं...कैसे करलेते हैं वो ये सब हैरानी होती है....ट्रेन में चाहे लोग न मिलें लेकिन चलना उन्होंने समय से ही होता है...
नीरज
21 February 2009 at 2:23 pm
गज़ब सर. काश ऐसा भारत में हो पाता!
21 February 2009 at 2:27 pm
"कभी लेट आई तो आप को आप का पुरा हर्जाना मिलेगा"
गजब!!
इसका मतलब है कि इच्छा हो तो सरकारी सेवाओं मे दक्षता बढाई जा सकती है.
आखें खोल देने वाले इस आलेख के लिये आभार
सस्नेह -- शास्त्री
21 February 2009 at 2:36 pm
अद्भूत जानकारी दी .. आभार
21 February 2009 at 2:38 pm
गज़ब सर
समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : चिठ्ठी लेकर आया हूँ कोई देख तो नही रहा है .
21 February 2009 at 2:49 pm
21 February 2009 at 2:53 pm
प्रणाम
ये रेल लाइन है या लाइनों का जाल है . यहाँ राजधानी और शताब्दी ट्रेन लेट हो जाती है बाकी का तो भगवान ही मालिक है . और लेट चलना तो ट्रेन की फितरत में है , कभी स्टेशन पहुँचा और ट्रेन समय पर आगई तो आश्चर्य होता है. लोग पूछने लगते है भइया ये आज वाली है या कल वाली २४ घंटे लेट आई है . लालू जी की राज में कुछ सुधार हुआ है लेकिन अभी जर्मनी दूर है .
धन्यवाद
21 February 2009 at 3:02 pm
काश भारत में भी ऐसा हुआ होता!
पर जरा यह भी देखें जर्मनी कितना बड़ा है, जनसंख्या क्या है? और उस की वृद्धि दर क्या है?
है कोई आगे हम से बच्चे पैदा करने में?
21 February 2009 at 3:10 pm
अनुकरणिय उदाहरण है.
रामराम.
21 February 2009 at 3:25 pm
काश ऐसा भारत में हो पाता!
21 February 2009 at 3:45 pm
अजी कमाल है?. काश ऎसा ही भारत में हो सके तो जीवन कितना सुगम हो जाए.
21 February 2009 at 3:45 pm
ye to nayi jankari hai,badi rochak,aur late train to paise vapas,gajab ki baat.
21 February 2009 at 4:20 pm
एक बार मै स्टेशन गया देखा ट्रेन समय से १० मिनिट पहले आगई थी . पता करने पर पता चला ट्रेन कल वाली थी सिर्फ़ २३ घंटे ५० मिनिट लेट .यह है हमारी भारतीय रेल
21 February 2009 at 4:24 pm
काश ऐसा भारत में हो पाता!यहाँ राजधानी और शताब्दी ट्रेन लेट हो जाती है
इस आलेख के लिये आभार
21 February 2009 at 4:30 pm
हमारे यहॉं ट्रेन इसलिये लेट हो जाती है क्योकि भारतीय लेट-लेट कर खूब यातायात करते है। खुद लेटे रहते है और किसी को बैठने तक की जगह नही देते। :)
स्पैम पर शोध चल रहा है जैसे ही कोई फार्मूला निकलता है। आप सबके सामने पेश करते है।
21 February 2009 at 4:30 pm
राज जी काश ऐसा भारत में भी होता।
21 February 2009 at 4:47 pm
नमस्कार ..अद्भुत् जानकारी है, हैरानी है...हम तो वहां की बसों के भी कायल हैं अनुभव यही है ....सिर्फ समय की पाबंदी हम लोग सीख जाते तो ....दुनिया के किसी भी देश से पीछे रहने का सवाल ही खतम हो जाता....आपकी किचिन वाली पोस्ट भी कमाल है फोटोग्राफ सुंदर और मनमोहक भी ...संवेदनशीलता ख़ास कर पशु पक्षियों के प्रति होना ही चाहिए.....आभार
21 February 2009 at 5:24 pm
वाह हमारे लिए तो यह स्वप्न है !
21 February 2009 at 5:32 pm
भाटिया अंकल, क्यो जी जला रहे हो हमारे यहा एसा कभी नही हो सकता है ।
21 February 2009 at 5:44 pm
जर्मनी की हर चीज लोन्म्ग लास्टीँग होती है मेन्युफक्चरीँग गुणवता मेँ जर्मनी मेँ बनी हर वस्तु बेजोड होती है अन्य किसी भी देश मेँ बनी वस्तु से ज्यादा मगर कापानी , चीन की कोरिया की सस्ती होतीँ हैँ और भारत की कलात्मकता और प्रादेशिक विविधता भी अजोड है - अब यही बात है कि,
हर अच्छी प्रणाली और वस्तु को अपना कर अपनी मौलिकता को बचाया जाये, सजाया जाये और आगे ले जाया जाये ...अच्छी जानकारी रही राज भाई साहब ..
- लावण्या
21 February 2009 at 5:48 pm
हमें बड़ी ईर्षा होती है. क्या हम इस स्टार को कभी प्राप्त कर सकते हैं? सुंदर जानकारी. आभार.
21 February 2009 at 6:15 pm
विकराल होती जा रही जनसंख्या और सरकारों को नागरिकों का असहयोग-यह भी बडा कारण है हमारी समस्याओं का। निश्चय ही जर्मनी का यह अनुशासन प्रशंसनीय, अनुकरणीय और चमत्कृत करने वाला है किन्तु केवल सरकार यह सब नहीं कर सकती।
हम तो सरकार बनाते हैं और अगले ही क्षण उससे पल्ला झाड लेते हैं।
21 February 2009 at 6:15 pm
विकराल होती जा रही जनसंख्या और सरकारों को नागरिकों का असहयोग-यह भी बडा कारण है हमारी समस्याओं का। निश्चय ही जर्मनी का यह अनुशासन प्रशंसनीय, अनुकरणीय और चमत्कृत करने वाला है किन्तु केवल सरकार यह सब नहीं कर सकती।
हम तो सरकार बनाते हैं और अगले ही क्षण उससे पल्ला झाड लेते हैं।
21 February 2009 at 6:15 pm
विकराल होती जा रही जनसंख्या और सरकारों को नागरिकों का असहयोग-यह भी बडा कारण है हमारी समस्याओं का। निश्चय ही जर्मनी का यह अनुशासन प्रशंसनीय, अनुकरणीय और चमत्कृत करने वाला है किन्तु केवल सरकार यह सब नहीं कर सकती।
हम तो सरकार बनाते हैं और अगले ही क्षण उससे पल्ला झाड लेते हैं।
21 February 2009 at 11:38 pm
@केसा भी मोसम हो लेकिन आप की ट्रेन कभी भी लेट नही आयेगी..... ओर कभी लेट आई तो आप को आप का पुरा हर्जाना मिलेगा ,
भाटियाजी इसमे हमारा ही नुकशान हुआ।
देखो भाई, वहॉ ट्रेन इसलिये लेट नही होती क्यो कि सरकार हर्जाना नही देना चाहती।
और हमारे भारत मे हर्जाना देने का टेशन नही ईसलिये ट्रेन लेट चलती है।
अब देखो दोनो ही देश कि सरकारे व्यापारी बुद्धि कि है के नही।
22 February 2009 at 3:58 am
... हिन्दुस्तान मे लेट चलने व लेट पहुँचने पर ओवरटाईम का प्रावधान है इसलिये गाडियाँ लेट चलती हैं, पेनाल्टी लगने लगे तो मजाल है कोई-भी गाडी लेट चले।
... बहुत सुन्दर व प्रेरणादायक जानकारी प्रस्तुत करने के लिये, आपको ढेर-सारी शुभकामनाएँ।
22 February 2009 at 5:13 am
रेलवे का नही ज्ञानदत्त जी का सम्मान करते हुए इतना ही कह सकता हूं कि कभी-कभी यहां भी ठीक टाईम पर रेल चलती है,ये बात दूसरी है की वो एक दिन पहले वाली रहती है।और इसिलिए हमने रेल मे सफ़र करना ही बंद कर दिया है।
22 February 2009 at 8:58 am
हमारे यहां रेलों का दोष नहीं है लाल फीता शाही का दोष है, जिसके चलते मंत्री-संत्री हर चीज पर हावी हो जाते हैं।
22 February 2009 at 1:56 pm
अद्भुत ! हमारे यहाँ भी यह सम्भव है. जरूरत है दृढ़ इच्छाशक्ति की.
31 May 2013 at 9:49 pm
jarmani ek tuccha sa desh hai muskil 2000 train chalti hogi
magar 130 caror aabadi wale desh me 14000 train chalti hai
itne comment dene wale kya kabhi apne ghar time se gaye hai agar gaye hai to hi comment de nahi to BOLE
MERA BHARAT MAHAN
3 July 2013 at 8:15 am
Manish Singh@ अकल बिना इंसान भी कोई इंसान हे, तो तुम ऊपर से खाली हो, दिमाग नाम की कोई चीज नही हे तुम्हारे पास... इस लिये बात करना बेकार हे तुम से... वैसे टुच्चे को हर तरफ़ टुच्चे ही दिखते हे...
Post a Comment