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मैं कहता हूं कि आप अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में लिखें।उनको गरज होगी तो वे हमारी बात सुनेंगे। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा।*जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे तो हिंदी भाषा का दर्जा बढ़ेगा। महात्मा गांधी
अंग्रेजी का माध्यम भारतीयों की शिक्षा में सबसे बड़ा कठिन विघ्न है।...सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की
शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"महामना मदनमोहन मालवीय
19 January 2009 at 3:46 am
जब दीवारें सुन सकती हैं तो दीवारें क्यों नहीं?
19 January 2009 at 4:07 am
मूर्ती भी शायद किसी अछी खबर का इंतज़ार कर रही है।
19 January 2009 at 4:47 am
वाह !! क्या स्नॆप चित्र है, संग्रहणीय!!!
इस तरह के चित्रों को देख कर ये तय है, कि आपके संवेदनशील मन का प्रतिबिंब आपकी दृष्टी में परिलक्षित होता है, और उसमें जो भाव है, वह आप अपने कॆमेरे में कैद कर हम पाठकों को दिखाते है और खुश कर देते हैं.
मैं कोशिश करूंगा की यह चित्र यहां आपके जानिब से कहीं प्रकाशित हो.आपको कोइ आपत्ति ना होगी.
19 January 2009 at 5:27 am
"wowwwwwwww amezingggg........"
Regards
19 January 2009 at 7:21 am
bahut sahi....
19 January 2009 at 9:15 am
शानदार चित्र.
रामराम.
19 January 2009 at 10:57 am
बहुत खूबसूरत चित्र । और अपने जैसे केवल एक । आपकी भूली हुई चांदनी भी कमाल की है ।
हाँ आप कुछ जानकारी चाहते थे तो हमने तो अपनी यात्रा ट्रेन से की और बुकिंग भी यूएस में रहते ही करवा ली थी । आइ आरसी टी सी की साइट से । और हर शहर पहुंचने के बाद टैक्सी से ।
आपको नव वर्ष की बधाई ।
19 January 2009 at 7:32 pm
Mindblowing...
I must say Rich collection of wonderful pictures :)
20 January 2009 at 5:18 pm
धीरे धीरे बोल कोई सुन न ले
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