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ताऊ के काम

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ताऊ चला दिल्ली की ओर....

एक बार ताऊ रोहतक से दिल्ली जा रह था, सापले आते ही टी टी चढ गया बस मै, ओर सब की टिकट चेक करने लगा, ओर थोडी देर बाद ताऊ के पास भी आ गया, ओर बोला भाई चोधरी साहब टिकट दिखायो, ताऊ ने अपना झोला खोला, फ़िर उस मै से एक पलास्टिक की एक थेली निकाली, फ़िर उस मै से एक कपडे की एक छोटी सी गांठ निकली, फ़िर उस मै से एक रोटी बांध रखी थी, ओर उन रोटीयो के बीच मै देसी घी का चुरमा रखा हुया था, फ़िर ताऊ ने उस चुरमे मै ऊंगली से टिकट ढुढा, ओर फ़िर टिकट निकाल कर टी टी को दिखाया।
टिकट तो घी के चुरमे के कारण पुरी तरह से चिकनी हो गई थी, तो टी टी ने कहा, अरे अच्छे आदमी तुम्हे कोई ओर जगह नही मिली इस टिकट को रखने के लिये ?? ताऊ बोला मै बुढढा आदमी इसे से अच्छी जगह ओर कहा होगी, कही ओर रख के भूल गया तो... ओत टी टी भुन भुनाता आगे निकल गया, साथ मे तिवारी साहब जी बेठे थे, तिवारी साहब बोले , अरे बाउली बुच( पगले) तुझे टिकट रखने की कोई दुसरी जगह नही मिली क्या????बाबले चुरमा टिकट रखने के लिये थोडे है ??? ताऊ बोला तिवारी मै इतना भी बाब्ली बुच (पागल ) नही इस टिकट पर पिछले ४ साल से यात्रा कर रहा हुं.
जय बोलो ताऊ की

20 टिपण्णी:
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डॉ. मनोज मिश्र said...
18 November 2008 at 3:54 am  

ताऊ बोला मै बुढढा आदमी इसे से अच्छी जगह ओर कहा होगी, कही ओर रख के भूल गया तो... ओत टी टी भुन भुनाता आगे निकल गया, साथ मे तिवारी साहब जी बेठे थे, तिवारी साहब बोले , अरे बाउली बुच( पगले) तुझे टिकट रखने की कोई दुसरी जगह नही मिली क्या????बाबले चुरमा टिकट रखने के लिये थोडे है ??? ताऊ बोला तिवारी मै इतना भी बाब्ली बुच (पागल ) नही इस टिकट पर पिछले ४ साल से यात्रा कर रहा हुं.
जय बोलो ताऊ की.......सुबह -सुबह मज़ा आ गया जी ताऊ की इस हरकत पर

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गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...
18 November 2008 at 3:55 am  

ताऊ, बाप का बड़ा भाई एवंई तो नहीं बन गया।

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Anil Pusadkar said...
18 November 2008 at 5:14 am  

वाट एन आईडिया सर जी।

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संगीता पुरी said...
18 November 2008 at 5:22 am  

बहुत अच्‍छा।

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ताऊ रामपुरिया said...
18 November 2008 at 5:32 am  

चलिए अच्छा हुआ की मेरी पोलपट्टी ये तिवारीसाहब आपके पास आकर खोलते हैं , इसका पता चल गया ! अब निपटते हैं इनसे भी ! आप दोनों तो बीच बाजार हमारे कपडे लत्ते उतरवा रहे हैं ! :)

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Anonymous said...
18 November 2008 at 5:47 am  

ha ha jai bolo tau maharaaj ki:);) kya idea nikala hai waah maza aa gaya

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रंजू भाटिया said...
18 November 2008 at 6:04 am  

बढ़िया कारनामा है यह :)

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seema gupta said...
18 November 2008 at 7:03 am  

ताऊ बोला तिवारी मै इतना भी बाब्ली बुच (पागल ) नही इस टिकट पर पिछले ४ साल से यात्रा कर रहा हुं.
जय बोलो ताऊ की
" ha ha ha ha ha bhai wah, tau jee ka sach mey jvab nahee jai bolo tau jee kee.."

Regards

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विवेक सिंह said...
18 November 2008 at 7:55 am  

जय बोलो ताऊ की .

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Dr. Amar Jyoti said...
18 November 2008 at 8:40 am  

भई वाह!

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admin said...
18 November 2008 at 9:01 am  

ताऊ का जवाब नहीं। यह आइडिया तो आजमाने वाला है?

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कुन्नू सिंह said...
18 November 2008 at 12:20 pm  

हा हा... कीतना बढीया बताए की कैसे एक ही टिकट से चार साल से यात्रा ताऊ यात्रा करते आ रहे थे।

ताऊ तो बहुत चतूर हैं

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मोहन वशिष्‍ठ said...
18 November 2008 at 1:12 pm  

बहुत ही मजेदार लगा ताऊ का चूरमा अर उसमैं रखी वा टिकट मजा आ ग्‍या

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डॉ .अनुराग said...
18 November 2008 at 2:18 pm  

jai ho taau ki !

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Gyan Darpan said...
18 November 2008 at 5:15 pm  

ताऊ आख़िर ताऊ है कुछ भी कर सकता है |

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अभिषेक मिश्र said...
19 November 2008 at 5:02 am  

Pahli baar aaya hoon is blog par. Kafi accha laga.
Really Taau is great!

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Alpana Verma said...
19 November 2008 at 5:23 am  

ha ha ha!!!!!!!!!! bahut hi mazedaar hai..
kisi din same conductor mil gaya to shamat aa jayegi Tau ji ki :D
-sari pol-patti khul jayegi-
-[waisey idea badiya hai ]

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चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...
19 November 2008 at 12:19 pm  

एक और तरीका है ताऊजी, कई पुरानी टिकटें जमा कर के रख ले और टिकिट चेकर पूछे तो सारे बिखेर कर चुनने को कह लें। क्यों कैसी कही :)

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अनुपम अग्रवाल said...
19 November 2008 at 7:21 pm  

wah
kahan kahan se chhantkar taau ke pass vichaar aate hain .
bolo taau kee jai .

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प्रदीप मानोरिया said...
24 November 2008 at 4:50 am  

हर बार की तरह लाज़बाब

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