feedburner

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

दादी मां

.

सर्दी की वजह से दादी मां अब कम ही बाहर आती हे, जब कम आती है तो कम बात करती है, लेकिन आज मेने भी दादी मां को घर जा कर बात की, ओर बाताया कि बहुत से लोग इन्त्जार कर रहै है, आप की बातो का तो दादी ने सोच कर यह बात बताई.........
यह बात बहुत पुरानी हे, जब दादी मां जवान थी, हां आप को बता दुं दादी काफ़ी पढी लिखी है, ओर यह एक सच्ची बात है......

आज चार दिन से दादी की आंखो मे सुजन आई हुयी थी, पहले दो दिन तो दादी घर पर ही देसी टोटके करती रही लेकिन आंखो की सुजन ओर दर्द कम नही हुआ, तो दादी मां डा के पास गई, डा साहब ने दादी मां की आंखे चेक की ओर कहा घबराने की कोई बात नही, लगता है आंख मे कुछ पड गया था, ओर आप ने उसे मल दिया, इस लिये यह सुजन आई है, आप यह दवा ले जाये ओर हर दो घण्टे के बाद डालते रहे, ओर आज से तीसरे दिन फ़िर से चेक करवाने आये।

दादी मां ने वो दवा की ट्युब डा साहब से ली, बिल दिया ओ घर आ गई, बडे बेटे को कहा बेटा यह ट्युब मेरी आंखॊ मे डाल दे, बेटे ने आंखो मै डाल दी, ओर फ़िर मां से बोला मां एक बार मै जाने से पहले आप की आंखॊ मै डाल दुगां, फ़िर मेने कालिज जाना है, तीसरी बार छोटे से डलवा लेना।

बडे ने दोनो समय सही वक्त पर मां की आंखो मे दवा डाल दी, मां की आंखे आज ज्यादा ही दुख रही थी, तो बडे ने मां को बताया मां यह आंखो की दवा मै इस ऊपर वाले दराज मे रख रहा हूं, छोटा आया खाना खाया ओर कब आंख बचा कर चला गया मां को पता ही नही चला, थोडी देर मे अलार्म बजा तो मां को याद आया कि बडा इसी लिये अलार्म लगा गया था कि मे दवा ना भुलु, मां ने दो चार बार छोटे को आवाज दी , लेकिन छोटा तो छत पर पतंग उडाने मे मस्त था।

लेकिन मां की आवाज सुन कर माया पडोस की लडकी आ गई ओर बोली मां भाईया तो यहां नही, बोलो क्या काम हे? मां ने कहा बेटी मेरे से तो आंखे भी नही खोली जा रही, वो देख सामने मेज की दराज मे तेरा बडा भाई मेरी आंखो की दवा रख गया हे, तु वो मेरी आंखो मे डाल दे, शायद शाम तक कुछ आराम आ जाये? अब माया उस मेजे के पास गई ओर दराज को खोला वहां कई सारी दवा की ट्युब पडी थी,।माया ने पुछा मां कोन से वाली ? दादी मां ने कहां बेटी हरे रंग वाली ? माया ने दादी का सर अपनी गोद मे रखा ओर एक आंख खोल कर उस मे वो हरी ट्युब वाली दवा डाल दी।

लेकिन यह क्या दवा डालते ही दादी की चीख निकली ओर दादी बुरी तरह से तडपने लगी, माया ने अब ध्यान से टयुब को पढा तो वो टयुब तो पंचर लगाने वाली थी, अब माया घबरा गई ओर जल्दी से अपने घर से अपने पिता जी कॊ ओर उपर से छोटे भाई को बुला लाई, ओर दादी को झट पट डा के पास ले गये ओर माया ने रोते रोते सारी बात बता दी।

डा ने कहा आप जितनी जल्द हो सके इन्हे मेडिकल मे ले जाओ, जल्दी से दादी को मेडिकल ले जाया गया,( साथ मे डा ने यह भी कहा की सारे रास्ते आप इन की आंख को सुखने मत देना इस लिये कोसे कोसे पानी से आंख धोते रहना, या हलके हलके छीटें मारते रहना, ओर आंख को खोले रखे अगर बन्द हो जाये तो जवर्दस्ती मत खोले) अब मेडिकल मे दादी को झटपट दाखिल करवाया गया, ओर डा साहब ने चेक भी किया, कई दवा भी आंखो मे डाल कर आंखो को कई बार धोया।

ओर फ़िर सब घर वालो को कहा कि अभी मै कुछ नही कह सकता, आप सब शाम को आये, मेने इन्हे सोने की दवा देदी है , जिस से यह बार बार आंख को नही मसलेगी , ओर आंख को थोडा आराम मिलेगा, अगर शाम तक सुलोशन (पंचर लगाने वाला ) सूख कर अपने आप बाहर निकल आया तो कोई खतरा नही, वरना अप्रेशन करना पडेगा, लेकिन आंख का पता नही बचे या न बचे लेकिन आप सब दिल छोटा ना करे, मुझे उम्मीद है ऎसा कुछ नही होगा।

माया का रो रो कर बुरा हाल था, उसे यही मलाल था की पढी लिखी हो कर भी उसने यह वेबकुफ़ी केसे कर दी, सब शाम तक वही बेठे रहै, शाम सात बजे डा साहब आये, ओर उन्होने देखा दवा का असर अभी भी हे, दादी शान्ति से सो रही है, डा ने धीरे से पट्टी खोली,आंख के ऊपर से दवा का फ़व्वा हटाय, ओर आंख को खोलने की कोशिश की, लेकिन यह क्या ? डा साहब के हाथ मे एक झिली सी आ गई, डा साहब के उसे ट्रे मे रखा ओर धीरे से फ़िर आंख कॊ खोला ,अब आंख के आगे से सफ़ेद झिली गायब थी, ओर दादी भी थोडी हिली डुली।

डा साहब ने कहा जब तक यह होश मै नही आ जाती तब तक कुछ नही कहा जा सकता, लेकिन लगता है अब कोई खतरा नही,रात नो बजे दादी की आंख खुली। ओर दादी जाग गई, थोडी देर बाद डा साहब की डयुटी बदलने वाली थी, लेकिन समय निकाल कर आये, ओर उस आंख पर पहले पानी से धीरे धीरे छींटे मारे फ़िर बोले आप आंख धीरे धीरे खोले, दादी ने अपनी आंखे धीरे धीरे खोली, फ़िर डा ने दोनो आंखो से बारी बारी दादी मां को देकने को कहां, फ़िर सब को बधाई दी की अब इन्हे कोई खतरा नही, क्योकि सुलोशन डालते ही इस लडकी को अपनी गलती पता चल गई थी, ओर इस ने हिम्मत से काम लिया, अगर यह चुप रहती, या आप लोग लेट आते को .....
आज दादी ९१ साल की हो गई है, लेकिन कभी भी चशमा नही ला, ओर दादी खुद ही कभी कभी मजाक मै कानी हो जाती तो कुछ ऎसे दिखती ओर एक आंख बन्द कर लेती है।

कभी भी बिना पढे कोई भी दवा मत ले, ना किसी को दे, लेकिन हम मे से कई जो पढे लिखे भी है बिना पढे, ओर बिना उस दवा के जाने उसे खाते भी है ओर खिलाते भी है

11 टिपण्णी:
gravatar
रंजू भाटिया said...
14 November 2008 at 5:04 am  

जरा सी लापरवाही मुसीबत बन सकती है ..पढ़ कर ही दवा देनी चाहिए ..सही शिक्षा दी है आपने इस घटना के माध्यम से

gravatar
Anonymous said...
14 November 2008 at 5:43 am  

bahut sahi baat hamesha dawa padhkar hi deni chahiye.

gravatar
ताऊ रामपुरिया said...
14 November 2008 at 5:45 am  

आपने कहानी के माध्यम से बहुत सुंदर शिक्षा दी ! बहुत धन्यवाद !

gravatar
संगीता पुरी said...
14 November 2008 at 8:06 am  

बडे काम की बात बता रही है आपकी ये पोस्‍ट।

gravatar
seema gupta said...
14 November 2008 at 9:24 am  

"very motivating story, ya carelessnes can lead to the disaster......good to eed"

Regards

gravatar
दिनेशराय द्विवेदी said...
14 November 2008 at 12:35 pm  

दवाओं का देना विशिष्ट काम है, जरा सी लापरवाही अपंग बना सकती है और जान पर भी आ सकती है।

gravatar
शोभा said...
14 November 2008 at 2:26 pm  

वाह राज जी
आपने बहुत अच्छा लिखा है। और दादी माँ की सीख तो हमेशा याद रखूँगी। आभार

gravatar
गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...
14 November 2008 at 3:15 pm  

सही कहा आपने। दवाईयों के मामले में हम बहुत बार लापरवाही कर जाते हैं, खास कर 'पेटेंट' दवा को लेकर।
जरा सी असावधानी या अज्ञानता जानलेवा हो सकती है।

gravatar
कुन्नू सिंह said...
14 November 2008 at 5:31 pm  

ये क्या फीर से आप दादी की याद दिला दीये।
अब तो फीर से नैनीताल जाना पडेगा।

बहुत सीछा देने वाला लेख है।

हर लेख कूछ ना कूछ सीछा देने वाला है। बहुत बढीया लगता है पढ के।

gravatar
Udan Tashtari said...
14 November 2008 at 8:04 pm  

सही कहा-दवा को पढ़कर, समझ कर ही खाना चाहिये.

gravatar
Gyan Dutt Pandey said...
15 November 2008 at 5:53 am  

सही है जी - एक बार हम भी गलत दवा अपनी आंख में डलवा चुके हैं। बड़ा महीन महीन लिखा था ट्यूब पर, पढ़ने में ही न आ रहा था।

Post a Comment

Post a Comment

नमस्कार,आप सब का स्वागत हे, एक सुचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हे, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी हे तो माडरेशन चालू हे, ओर इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा,नयी पोस्ट पर कोई माडरेशन नही हे, आप का धन्यवाद टिपण्णी देने के लिये

टिप्पणी में परेशानी है तो यहां क्लिक करें..
मैं कहता हूं कि आप अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में लिखें।उनको गरज होगी तो वे हमारी बात सुनेंगे। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा।*जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे तो हिंदी भाषा का दर्जा बढ़ेगा। महात्मा गांधी अंग्रेजी का माध्यम भारतीयों की शिक्षा में सबसे बड़ा कठिन विघ्न है।...सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"महामना मदनमोहन मालवीय