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दादी मां

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आप सब के साथ शायद ऎसा ना होता हो, लेकिन हमारी जगत दादी माँ के साथ हमेशा कुछ ना कुछ होता है, आज फ़िर से ऎसा ही कुछ हुआ, लेकिन पढने से पहले इस कहानी से कुछ शिक्षा भी मिलती है, उस पर जरुर धयान देवें


कल दिपावली है, ओर गाव मै दादी के पास सारा परिवार आया हुआ था, सभी घर की साफ़ सफ़ाई मै लगे हुये थे, तीन दिन से यही चल रहा था, ओर घर की ओरते भी घर मै आज सुबह से ही मिठाईयां बनाने पर लगी थी, कल के लिये सभी के नये कपडे आये हुये थै, दोनो भाईयो के , उन की पत्नियो के ओर सभी बच्चो के लिये तीनो ननद के लिये भाभियां शहर से ही नयी साडियां ले कर आई थी.दादी मां ओर दादा जी के लिये भी नये कपडे छोटा बनबा लाया था, दादी मां के कपडे तो सही नाप के बने थे, लेकिन दादा जी का पेजामा थोडा लम्बा बना था.

दादी ने बडी बहुं को आवाज दे कर कहां बहु , बेटा अपने ससुर का पेजामा नीचे से दो उंगल काट कर छोटा कर देना, ताकि कल जब पहने तो नाप सही आये,तो बडी बहुं ने वही से जवाव दिया मां मेरे पास समय नही अभी मै मिठाई बना रही हूं, तो दादी ने छोटी बहू को आवाज दी, ..... छोटी बहुं ने भी कहा मां मै तो गुजिया बना रही हुं मेरे पास भी समय नही,फ़िर दादी ने बडी बेटी को आवाज मार कर कहा बेटी अपने बाप का पेजामा दो उंगल काट कर छोटा कर देना, बडी ने कहा मां मै तो छत साफ़ कर रही हुं मेरे पास तो बिलकुल भी समय नही, फ़िर छोटी बेटी ओर दोनो पोतियो ने भी जवाव दे दिया,
यह सब बाते दादा ने भी सुनी, ओर अपना पेजामा ले कर दर्जी से छोटा करवा कर दुवारा कील पर टांग दिया, शाम को दादी ने सोचा बच्चे थक गये है, सो किसी तरह से उठ कर खुदी ही दादा का पेजामा काट कर ठीक कर दिया, ओर फ़िर वही रख दिया थोडी देर बाद बडी बहु जब काम खत्म कर के हटी तो सोचा सुबह बाबुजी ने पेजामा पहनाना है लम्बा पेजामा ठीक नही लगेगा, सो उन्होने भी २ उंगल नाप कर काट दिया, इसी तरह से सब ने बिना एक दुसरे को पुछे अपना अपना फ़र्ज पुरा कर दिया.

सुबह जब दादा नहा कर निकले तो अपना पेजामा ढ्ढने लगे , दादी ने कहा अरे मेने यही तो रखा था उसे ठीक कर के, दादा बोले अरे किसे ठीक कर के वह तो मै खुद ही ठीक करवा लाया था, इन की बात सुन कर बडी बहु ने कहा मेने भी ठीक कर दिया था, ओर इस के साथ ही सब ओरते हम ने भी हम ने भी ठीक कर दिया था, ओर दादा जी की समझ मे अब सारी कहानी आ गई की जो नया लम्बा कच्छा उन्होने पहना है, असल मे वो तो उन का पेजामा था, ओर सब बात पता चलने पर खुब ठहके मार मार कर हंसने लगे, ओर फ़िर जल्दी से दाद जी के लिये नया पेजामा ले कर आये... ओर फ़िर सब ने मिल कर वह दिपावली खुशी खुशी मानई

हम सब को अपनी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिये, ओर एक बार इन्कार करने के बाद दुवारा काम शुरु करने से पहले उसे बता देना चाहिये जिसे हम एक बार इन्कार कर चुके है

22 टिपण्णी:
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गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...
29 October 2008 at 4:18 am  

जो होता है अच्छा ही होता है। ठंड आ रही है, नीचे पहनने के काम आएगा, दादाजी के।

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Gyan Darpan said...
29 October 2008 at 4:50 am  

पढने के बाद हँसी नही रोक सके |

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ताऊ रामपुरिया said...
29 October 2008 at 5:03 am  

ये तो खूब रही ! हँसी के मारे बुरा हाल और जोरदार शिक्षा भी मिली ! धन्यवाद !

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डा. अमर कुमार said...
29 October 2008 at 8:00 am  

मज़ेदार प्रसंग ...
मेरी कहानी में मुल्ला जी के तीन बीबीयों ने यह किया था !

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दीपक "तिवारी साहब" said...
29 October 2008 at 10:10 am  

बहुत जोरदार कहानी सुनाई ! तिवारी साहब का सलाम !

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dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...
29 October 2008 at 5:30 pm  

mere dadaji to dhoti pahnte the .bache rahe.

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dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...
29 October 2008 at 5:30 pm  

mere dadaji to dhoti pahnte the .bache rahe.

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कुन्नू सिंह said...
29 October 2008 at 6:59 pm  

हा हा :)))))))
मै तो सोच रहा था पेजामा बचा ही नही होगा क्यो की सबने उसे दो उंगली छोटा जो कर दीया था।

:))

बाद मे "हेप्पी एन्डींग" हूवा।
हसा हसा के हसाएं।

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सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...
29 October 2008 at 7:03 pm  

वह तो गनीमत थी कि दादाजी ने पड़ोसियों को इस काम के लिए नहीं कहा था, नहीं तो उनके हाथ लम्बा कच्छा नहीं; बल्कि एक शानदार फ्रेन्ची लगती।

हा,हा,हा,....। मजेदार पोस्ट।

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जितेन्द़ भगत said...
30 October 2008 at 4:46 am  

मुझै इस कहानी से ये शि‍क्षा मि‍ली कि‍ बुढापे में कोई सहारा नहीं होता है, इसलि‍ए अपने पैजामा जवानी में ही सि‍लवा लो।

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Abhishek Ojha said...
30 October 2008 at 8:18 am  

दादी का ये किस्सा भी मजेदार रहा !

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ज़ाकिर हुसैन said...
30 October 2008 at 8:19 am  

अब साहब हंसी रुके तो कुछ टिपण्णी भी करें. हा...हा...हा....

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seema gupta said...
30 October 2008 at 8:52 am  

"ha ha ha ha ha bhut mjedaar rha dademan ka kissa..."

Regards

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Unknown said...
30 October 2008 at 9:20 am  

dadi ka ye kissa bahut majedar raha maja aagaya!

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महेंद्र मिश्र.... said...
30 October 2008 at 4:50 pm  

दादी का पाजामानामा अच्छा लगा.

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P.N. Subramanian said...
31 October 2008 at 5:22 am  

बड़ी मजेदार कहानी. इसके विपरीत भी हो सकता था. यदि कोई भी अपना काम न कर यह सोच लेता कि दूसरे को तो कहा गया है तो दादाजी का पायजामा साबूत बच जाता. आभार.

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Aruna Kapoor said...
31 October 2008 at 10:22 am  

khoob manoranjan hua...ha, ha, ha!...dadaji ka payjaame ne khoob hunsaaya!

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जगदीश त्रिपाठी said...
31 October 2008 at 2:20 pm  

भाई मजा आ गया। शुक्र है दादा जी को कच्छा तो मिल गया। पाजामे का क्या वह भी नया आ गया। पर बेचारे कच्छा लाने के लिए किससे कहते। जो होता है अच्छे के लिए होता है। लेकिन भाई आज की बहुएं ऐसी नहीं हैं, जिन्हें दादी मां की बात याद रहे। सच पूछिए तो दादी मां की हिम्मत ही नहीं पड़ेगी, उन्हें कोई काम बताने के लिए।

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वर्षा said...
31 October 2008 at 5:05 pm  

बहुत मज़ेदार

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admin said...
1 November 2008 at 8:44 am  

मजेदार है यह प्रसंग।

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प्रदीप मानोरिया said...
2 November 2008 at 5:52 am  

बहुत मजेदार सुंदर आपकी शैली बहुत प्रभावशाली है श्रीमान जी

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Atmaram Sharma said...
3 November 2008 at 3:28 pm  

कमाल की कहानी है, पढ़ते हुए एक साथ कई स्तरों पर विचार-प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है. अंत में मासूम-सी हँसी आना तो गुठलियों के दाम जैसा है. आदर सहित...

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