तुम हो अब भी……...(सत्यम शिवम)
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Er. सत्यम शिवम
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कविता
मौन मेरा स्नेह अब भी,
जो दिया,तुमसे लिया मै।
प्यार मेरा चुप है अब भी,
क्यों किया,जो है किया मै।
तुम कही हो,मै कही हूँ,
तुम ना मेरी,मै नहीं हूँ।
पर है वैसा ही सुहाना,
प्यार का मौसम तो अब भी।
राहे मुझसे पुछती है,
है कहा तेरा वो अपना,
साथ जिसके रोज था तु,
खो गया क्यों बन के सपना।
तु गया है भूल या उसने ही दामन है चुराया,
पर मेरे जेहन में वैसी ही,
कुछ प्यारी यादें सीमटी है अब भी।
माना है मैने कि तुम हो दूर मेरे,
दूर हो के पास हो तुम साथ मेरे।
मै तुम्हे अब देखता हूँ आसमां में,
चाँद में,तारों में,
हर जगह जहा में।
सब में बस तेरी ही तस्वीर दिखती,
हर तस्वीर तुम्हारी है ये पूछती।
मै नहीं तेरी प्रिया कर ना भरोसा,
दूर रह वरना तु खायेगा फिर धोखा,
मै उन्हें बस ये ही कह के टालता हूँ,
साये से तेरा अपना वजूद निकालता हूँ।
कोई ना जाने किसी को क्या पता है?
मेरे दिल के घर में तो तुम हो अब भी।
बीती हुई हर बात में,
अपनी सभी मुलाकात में,
थे चंद सपने जो थे जोड़े तेरे मेरे साथ ने।
उन चाँदनी हर रात में,
भींगी हुई बरसात में,
मेरे आज में और कल में,
दबी दबी सी जिक्र तुम्हारी,
एहसास दिलाती तुम हो अब भी...........
जो दिया,तुमसे लिया मै।
प्यार मेरा चुप है अब भी,
क्यों किया,जो है किया मै।
तुम कही हो,मै कही हूँ,
तुम ना मेरी,मै नहीं हूँ।
पर है वैसा ही सुहाना,
प्यार का मौसम तो अब भी।
राहे मुझसे पुछती है,
है कहा तेरा वो अपना,
साथ जिसके रोज था तु,
खो गया क्यों बन के सपना।
तु गया है भूल या उसने ही दामन है चुराया,
पर मेरे जेहन में वैसी ही,
कुछ प्यारी यादें सीमटी है अब भी।
माना है मैने कि तुम हो दूर मेरे,
दूर हो के पास हो तुम साथ मेरे।
मै तुम्हे अब देखता हूँ आसमां में,
चाँद में,तारों में,
हर जगह जहा में।
सब में बस तेरी ही तस्वीर दिखती,
हर तस्वीर तुम्हारी है ये पूछती।
मै नहीं तेरी प्रिया कर ना भरोसा,
दूर रह वरना तु खायेगा फिर धोखा,
मै उन्हें बस ये ही कह के टालता हूँ,
साये से तेरा अपना वजूद निकालता हूँ।
कोई ना जाने किसी को क्या पता है?
मेरे दिल के घर में तो तुम हो अब भी।
बीती हुई हर बात में,
अपनी सभी मुलाकात में,
थे चंद सपने जो थे जोड़े तेरे मेरे साथ ने।
उन चाँदनी हर रात में,
भींगी हुई बरसात में,
मेरे आज में और कल में,
दबी दबी सी जिक्र तुम्हारी,
एहसास दिलाती तुम हो अब भी...........
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मैं कहता हूं कि आप अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में लिखें।उनको गरज होगी तो वे हमारी बात सुनेंगे। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा।*जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे तो हिंदी भाषा का दर्जा बढ़ेगा। महात्मा गांधी
अंग्रेजी का माध्यम भारतीयों की शिक्षा में सबसे बड़ा कठिन विघ्न है।...सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की
शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"महामना मदनमोहन मालवीय
27 January 2011 at 2:13 pm
दबी हुयी बातें, रह रह कर याद आती हैं।
27 January 2011 at 4:22 pm
यादों की डोर थामें आपके साथ हम भी हो आए अतीत में।
27 January 2011 at 4:28 pm
बहुत सुंदर एहसास दिलाती हुयी आप की यह सुंदर कविता धन्यवाद
27 January 2011 at 5:33 pm
उन चाँदनी हर रात में,
भींगी हुई बरसात में,
मेरे आज में और कल में,
दबी दबी सी जिक्र तुम्हारी,
एहसास दिलाती तुम हो अब भी...........
सुन्दर !!
27 January 2011 at 7:02 pm
बहुत सुंदर बातें बताती है यह कविता।
शुक्रिया।
28 January 2011 at 4:49 am
उन चाँदनी हर रात में,
भींगी हुई बरसात में,
मेरे आज में और कल में,
दबी दबी सी जिक्र तुम्हारी,
एहसास दिलाती तुम हो अब भी.......
कुछ यादें हमेशा के लिये दिल मे अंकित हो जाती हैं सुन्दर अभिव्यक्ति है। शुभकामनायें।
28 January 2011 at 6:22 am
भाव शानदार हैं।
लेकिन मुझे लगता है कि हिन्दी लिखने में थोड़ी परेशानी है। जैसे शुरुआती पहरों में मैं शब्द का इस्तेमाल किया गया है। मुझे लगता है कि मैं की बजाय मैंने शब्द का इस्तेमाल होना चाहिए। या फिर यह भी हो सकता है कि मेरी ही हिन्दी में फर्क हो।
28 January 2011 at 8:09 am
आपने सही कहा मैने का प्रयोग उपयुक्त रहेगा...पर कही कही व्याकरण और वर्ण से ज्यादा भाव की प्रधानता होती है....भाव सम्यक दृष्टि से मै लययुक्त है...धन्यवाद।
30 January 2011 at 10:58 am
मै तुम्हे अब देखता हूँ आसमां में,
चाँद में,तारों में,
हर जगह जहा में ...
प्रेम के एहसास से महक रही है आपकी रचना ... लाजवाब ...
30 January 2011 at 11:29 am
@digambar ji,dhanyawaad....bhut bhut aabhar mera utsaah badhane hetu.
6 February 2011 at 5:34 am
लाजवाब ...प्रेम के एहसास से महक रही है आपकी रचना|
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