गालिया केसी केसी.........
हमारे भारत मै लोग जब आपस मै लडते है, तो हमेशा शुरुआत होती है सुंदर सुंदर गालियो से, ओर गालिया भी एक दुसरे को देते वक्त उन्हे सुंदर सुंदर शव्दो से सजा कर देते है, उन पर मसाले, मिर्ची, इमली ओर भी स्वादिष्ट ओर चटखारे वाले मसाले डाल डाल कर एक दुसरे को आदान परदान करते है, ताकि जिसे हम गाली दे रहे है उसे उस गाली का स्वाद भी आये, फ़िर गाली दे कर थोडा रुकते है, यह देखने के लिये कि उस गाली का सामाने वाले पर क्या असर हुआ,लेकिन सामने वाला भी बडा तेज होता है, वो किसी का पेसा चाहए ना लोट्ये लेकिन गाली इधर लपकी दुसरे हाथ से वापिस.
फ़िर इन गालियो पर सिर्फ़ बडो का हक नही, अजी बच्चे बुढे, जवान लडके लडकिया सब मजे से निकालते है, ब्लांग जगत मै आने से पहले एक दो बार मै याहू पर गया ओर एक दिन घुमता हुआ दिल्ली मै पहुच गया... बाप रे वहा एक लडकी नाम (?) लडको से भी ज्यादा गालियां निकाल रही थी, हम ने उसे समझाना चाहा कि यह गालिया लडकियो के मुंह से अच्छी नही लगती, तो कुछ देर चुप रही, हम ने उसे बच्चा बेटी ओर बहन कह कर चुप करवाया, फ़िर बाद मै पता नही क्या हुआ.
अब भारतिया गालियो का तो आप सब को पता ही है, क्योकि सुबह शाम कोई भजन कानो मै पडे या ना पडे लेकिन यह गालिया जरुर पडती है, लेकिन यह गोरे भी हम से कम नही, यह भी खुब गालिया निकालते है, लेकिन इन की गालिया फ़ुस्स है, जिन्हे सुन कर बिलकुल मजा नही आता.
अब हमारी गालियो के सामने तो यह बिलकुल ही फ़ुस्स है, जेसे नारियल अजी यह भी कोई गाली है, नारियल को यह जर्मन मै कोको नुस कहते है, अगर किसी से बहस हो जाये ओर आप ने उसे कोको नुस कफ़ कह दिया तो वो आप से नाराज, यानि उस का सर नारियल की तरह से खाली है, अन्डर दिमाग नही, अब आप को कोई पक्षी कह दे तो आप कया करेगे अजी यह भी कोई गाली है? हां जी है ना पक्षी यानि फ़ोगल, हमारे यहा फ़ोगल कहते तो पक्षी को है अगर आप ने किसी व्यक्ति को कह दिया तो यानि आप ने उससे पागल कह दिया, यहां फ़िर नाराजगी,हमारे यहा मां बहन की गाली फ़ुस्स है जी, अगर आप को कोई कहे कि भगवान की गलती है तु, तो आप बुरा नही माने गे, लेकिन हमारे यहा बहुत बुरा मानते है, ओर भी बहुत सी यहां की अजीब बाते है लेकिन फ़िर कभी.... लेकिन मुझे यहां करीब तीस साल हो गये है मैने इन लोगो को आपस मै कभी लडते नही देखा
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2 December 2009 at 9:01 pm
राज जी,
कोई गाली देता है तो ज़ुबान गंदी किए बिना उससे निपटने का अपने पास रामबाण नुस्खा है...बस उसकी हर गाली का जवाब "same to you" से देते जाइए...
जय हिंद...
2 December 2009 at 10:14 pm
गालिया लडकियो के मुंह से अच्छी नही लगती,
-अब जरा हेलमेट पहन लें तो बेहतर रहेगा. नारी मुक्ति वाले पढ़कर आते ही होंगे कि आप बकें तो फूल और हम बकें तो गाली...
हैं जी- शुभचिंतक हूँ तो चेता दिया. बाकी अपनी सेहत का ख्याल तो आपको खुद ही रखना होगा. :)
3 December 2009 at 12:06 am
गाली बिना क्या जीना
जैसे बिन साकी के पीना
3 December 2009 at 2:10 am
वाह खूब जानकारी मिली है -कुछ भारतीय गालियों का भी जिक्र किये होते ....
यहाँ गाँवों में तो महिलायें इतना धारा प्रवाह गाली देती हैं की कलेजा मुंह को आये !
3 December 2009 at 3:04 am
सबका भला करो भगवान!
सबको दो प्रज्ञा का दान!
3 December 2009 at 3:22 am
गांवों में आपने कभी दलित महिलाओं की गालियाँ नहीं सुनी होगी | इतनी मोटी मोटी गालियाँ देती है कि सुनने वाला दंग रह जाये | बहुत सी गलियां तो उनकी भाषा में ही सम्मिलित हो गयी है |
और तो और यहाँ एन सी आर दिल्ली में जितनी भी कपडा मिले है वहां गालियों का जब्बर दस्त इस्तेमाल होता है किसी मजदुर को आप प्यार से बुलाएँगे तो आएगा ही नहीं और गाली देती ही वह सारे काम कर लेगा यही नहीं जिस दिन आप किसी मजदुर को गाली नहीं देंगे तो वो समझेगा आज आप उससे नाराज है |
3 December 2009 at 4:27 am
अरे! ये तो गाली पुराण लिख दिया आपने!!
वैसे गालियों के मामले में हम हिन्दुस्तानियों से तेज शायद ही कोई हो।
3 December 2009 at 4:47 am
वैसे कई बार लोग प्यार में भी गाली देते है.. और गाली है यत्र, तत्र, सर्वत्र...
3 December 2009 at 5:24 am
अब अपने यहाँ बिना गालियों के काम चलता भी तो नहीं......
3 December 2009 at 7:11 am
बहुत से लोग तो ऐसे मिलते हैं कि एक मिनट की बातचीत में करीबन 10-15 बार गाली दे चुके होते हैं। और उन्हें पता ही नही होता कि उन्होंने गाली दी है। दूसरों की परवाह तो करते ही नही, मैने ऐसे लोग भी देखे हैं, जो अपने मां-पिता और बच्चों के सामने भी दनादन गंदी-गंदी गालियां निकालते रहते हैं।
प्रणाम
3 December 2009 at 7:20 am
वैसे भाटिया साहब, आपका पंजाब तो इस मामले में निश्चित तौर पर टोपर है :) और अब कमोबेश स्थिति ऐसी बन गई कि अगर सुरुआत ही आपने उससे नही की तो ऐसा लगता है कि मानो यह आदमी सभ्य नहीं है
3 December 2009 at 8:03 am
इस देश में लोग हिंदी का कोई शब्द भले ही न समझें गाली जरूर समझ लेते हैं . क्या यही है हमारी संस्कृति जिसका हम इतना बखान करते हैं ?
3 December 2009 at 8:13 am
राज जी-गालियों का चलन तो पुरी दुनिया मे ही है, लेकिन इसका स्वाद भारत मे ही मिलता है। हम जब पढ़ने जाते थे तो हमारा स्कूल घर से डेढ किलो मीटर दुर था, रास्ते में देवारों(कंजर) का कबी्ला था, वहां उनकी आपस मे रोज लड़ाई होती थी, तो हम उनकी नई-नई गालियों का रस लेने के लिए पहले ही पहुंच जाते थे, यहां नित नई गालियों का जन्म होता था।
3 December 2009 at 9:15 am
समीर जी का कहना बिल्कुल दुरूस्त है...जरा संभलकर....वर्ना नारी मुक्ति वालियाँ झंडा लिए आती ही होंगीं :)
3 December 2009 at 9:56 am
वाह .... गाली के भी कितने रूप हैं ....... अलग अलग देश में गालियों के रूप और प्रकार भी बदलते रहते हैं ...... पर भारत में तो इस के बिना गुज़ारा नही ..........
3 December 2009 at 10:42 am
सबसे अच्छी बात तो ये है कि वहां आपने लोगों को लड़ते नहीं देखा....और जर्मन में भले ही बहुत शाकाहारी गालियाँ हों,पर अंग्रेजी में तो ऐसी ऐसी गालियाँ देते हैं कि हिंदी की गालियाँ, पानी भरें उनके सामने...और आजकल भारत में क्या लड़के क्या लडकियां...अगर एक वाक्य में अंग्रेजी की चार गालियाँ ना बोलें तो लोग उन्हें अनपढ़ समझ लें....टी.वी.पर कोई भी रिअलिटी शो देख लीजिये....सबसे ज्यादा काम एडीटिंग का होता है...हर दो सेकेण्ड में बीप देने का
3 December 2009 at 11:47 am
क्या राज जी,
आप भी क्या बात ले बैठे...
गाली हो तो हिन्दुस्तानी वर्ना न हो...जितनी पावरफुल गाली हमारे यहाँ होती है वैसी आपको कहीं भी नहीं मिलेगी....अरे दिल्ली में तो बहन की गाली लोग comma या semicolan की तरह प्रयोग मं लाते हैं...हर वाक्य में कई बार इसकी जरूरत पड़ती है बाबा.....यहाँ तक की मैंने एक बाप को अपने बेटे से बहुत प्यारा से बहन की गाली देते हुए बात करते देखा....हां मैंने अपने गाल पर गाली की झन्नाटेदार थप्पड़ महसूस किये लेकिन वो बेटा आराम से काम करता रहा ...जैसे कुछ हुआ ही नहीं....
अजी अग्रेजों को कई बार पैदा होना पड़ेगा हमारे जैसी गाली देने का लिए....
और ये सच है हमने कभी किसी को लड़ते नहीं देखा...पता नहीं कैसे लोग हैं......बेकार से...लड़ते भी नहीं हैं...छि.......
3 December 2009 at 12:03 pm
गालियाँ देने में तो हम भारतीय ऑस्कर अवार्ड के हकदार हैं .....बुरा हो इन होलिवुडियन का ...
गालियों के लिए कोई पुरस्कार नहीं रखा ....!!
3 December 2009 at 3:06 pm
खुशदीप जी का नुस्का जोरदार है याने की रामबाण "सेम टू यूं" ... शिष्ट गालियो के बारे में जाना बड़ी जोरदार मसालेदार है ....
3 December 2009 at 5:02 pm
ye ek aham bishya hai jo hame aas paas aksar dekhne ko milta hai ,aur star ko nicha kar deta hai ,aese mahaul se hame aksar door rahna chahiye ,bolte waqt ye bhi khyaal nahi rahta ki marayada kis had tak laangh rahe hai .aapne ise samne rakhkar behtrin kaam kiya ,umda
4 December 2009 at 2:33 am
आलेख क़ाबिले-तारीफ़ है।
4 December 2009 at 3:26 am
वाह बहुत खूब एक समय था जब हम खूब भोपाली श्टाईल में गालियाँ देते थे और अब भी हम उसीके मुरीद हैं, बस अब गाली देना बंद कर दिया है। गाली का मजा जो अपनी भाषा में है वो परायी भाषा में नहीं।
4 December 2009 at 3:42 am
हाँ हमारी तरह गालियाँ ये कहाँ से पाएंगे
आप चाहें तो उन्हे कुछ सिखला सकते हैं...
एक बात की तारीफ तो करनी ही पड़ेगी कि
इतनी गालियाँ देने के बाद भी वे लोग आपस में
लड़ते नहीं हैं।
4 December 2009 at 4:44 am
राज जी समीर जी ने तो आपको गालियाँ दिलवाने का बन्दोबस्त कर ही दिया था नारी मुक्ति वालों को न्यौता दे कर मगर लगता है आप बच ही गये। बहुत अच्छी पोस्ट है अगली कडी का इन्तज़ार रहेगा शुभकामनायें
4 December 2009 at 6:23 am
mujhe to hasi ati hai ..vaise raamban vali baat bhi sahi hai .
" same to u ":
aapki choti choti baten bahut bhari hai .
6 December 2009 at 11:41 am
गाली सिखाने को कोई स्कूल नही है परन्तु बच्चे बहुत जल्दी सीखते है । वैसे भी गाली का कायदा है बच्चे को मां की, युवक को बहिन की और बुजुर्ग को बेटी की गाली देना चाहिये ।किसी बुजुर्ग को मां की गाली देने का क्या मतलब
9 December 2009 at 7:27 am
डेल्ही जैसे शहर में गलियाँ ज्यादा प्रचलित है बिना गाली के कोई मिलता नहीं है !!! गाली तो तो एक प्रतिक मानते है प्रगाढ़ संबंधों का !!!
11 December 2009 at 4:15 pm
Apane is lekh me ek aise mudde ko uthaya hai jis par abhee naheen likha gaya hai-----
shubhakamnayen.
14 December 2009 at 4:06 am
हमारे यहाँ गालियाँ संस्कृति हैं. बच्चे को ए बी सी डी या क ख ग आये नये, गालियाँ जरूर आ जाती हैं. शायद यही वजह है की मिर्ज़ा ग़ालिब भी यह कह बैठे थे:- "कितने शीरीं हैं तेरे लब कि रकीब, गालियाँ खा के बेमज़ा न हुआ". शराफत से कुछ कहकर देखिये, काम नहीं बनेगा. लेकिन अगर दो चार फडकती हुई गलियों के साथ बात पेश की जाये तो किसी माई के लाल में ये दम नहीं कि इंकार कर दे. आपने बहुत अच्छा विषय चुना है. बहुत सलीके से निभाया भी है.
14 December 2009 at 12:25 pm
गालियाँ ?? अजी हमारे राजस्थान के नागौर में गलियाँ भी बड़े प्यार से दी जाती हैं !!! मेरी पग्धरनी आपके सर पे विराजमान होगी!!( सीधा सीधी बोले तो जूते से मारना)
15 December 2009 at 3:19 pm
... अपने देश में गालियां, ताश के पत्ते, बिडी, बच्चों को विरासत में मिल जाती हैं !!!!
18 December 2009 at 1:52 am
किसी प्रदेश मे प्रयोग होने वाले आम शब्द दूसरे प्रदेश मे गाली भी बन जाते हई , यह विलक्षणता भी अपने ही मुल्क मे मिलती है :)
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