दान
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राज भाटिय़ा
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विचार
आज का विचार...
दुसरो को खुशी देना सर्वोत्तम दान है
एक बार आप भी बिना लालच मे किसी को यह दान देके देखे
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मैं कहता हूं कि आप अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में लिखें।उनको गरज होगी तो वे हमारी बात सुनेंगे। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा।*जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे तो हिंदी भाषा का दर्जा बढ़ेगा। महात्मा गांधी
अंग्रेजी का माध्यम भारतीयों की शिक्षा में सबसे बड़ा कठिन विघ्न है।...सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की
शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"महामना मदनमोहन मालवीय
24 October 2009 at 5:37 pm
आज के दौर में जहाँ हर आदमी कुछ ना कुछ परेशान सा है उसे मुस्कान देना एक कार्य है..इससे असीम खुशी खुद को भी मिलती है..बहुत ही बढ़िया बात कही आपने
24 October 2009 at 5:42 pm
बहुत सही व सुन्दर विचार प्रेषित किए हैं आभार।
24 October 2009 at 6:07 pm
खुशी वो शै है जो जितनी दी जाती है उससे ज्यादा मिलती है
24 October 2009 at 6:26 pm
ओके
24 October 2009 at 8:51 pm
अपुन तो अपने ब्लॉग के जरिए पिछले अढाई साल से यही किए जा रहे हैँ
24 October 2009 at 9:17 pm
अपने लिए जिए तो क्या जिए,
तू जी ऐ दिल ज़माने के लिए...
जय हिंद...
24 October 2009 at 9:34 pm
अति सुन्दर विचार्!!
24 October 2009 at 9:54 pm
भाटिया जी इस सद्विचार पर मेरी एक पूरी कविता है प्रस्तुत कर रहा हूँ
261 खुशी के बारे में
खुशी के बारे में सोचो
कि खुशी क्या है
सुख-सुविधाओं में जीना
ज़िम्मेदारियों से मुक्त होना
जीवन में दुख व संघर्ष का न होना
तालियाँ बजा बजा कर भजन गाना
आँखें मून्दकर प्रसाद खाना
बच्चों से रटा हुआ पहाड़ा सुनना
हर इतवार सिनेमा देखना
अपनी हैसियत पर इतराना
या फिर
खुशी के बारे मे न सोचते हुए
किसी में जीने की ताकत भर देना
किसी बुज़ुर्ग से दो बातें कर लेना
रोते हुए बच्चे को चुप कराना
बेसहारा का सहारा बन जाना
गोया कि इस तरह मिलीं खुशियाँ
दूसरों में बाँट देना
वह भी सोचो
यह भी सोचो
खुशी के बारे में
एक बार फिर सोचो ।
शरद कोकास
25 October 2009 at 4:59 am
जब लोमडीयां पूंछ छोड कर भाग रही हों तो क्या किया जाये?
रामराम.
25 October 2009 at 5:07 am
sundar vichar.
25 October 2009 at 5:55 am
अब उनका क्या कहें जो दूसरों को दुख देकर खुश होते हैं। जैसे आजकल ब्लॉगर सम्मेलन से असन्तुष्ट कुछलोग कर रहे हैं...।
25 October 2009 at 6:51 am
@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
कुछ सुखी ही होते हैं
दूसरों को दुखी देखकर
उन्हीं की बहुतायत है
सिर्फ ब्लॉगिंग में ही नहीं
पूरे समाज में।
आप हतप्रभ क्यों है
खुशी बाद में न सही
पहले तो खूब बंटी
हमारी तो जेब
खुशी से खूब भरी।
बाद वाले तो ले उड़े
फुलझड़ी
अब जला रहे हैं
चमक से खुश हैं
पर शिकायत है
इससे धुंआ निकलता है
पर्यावरण प्रदूषित होता है
इसे ही कहते हैं
दूसरे को दुखी करने का प्रयास
और इसी में खुशी का अप्रतिम विश्वास
जिसका है रहने दो
जो जिस हाल में है
उसे उसी में बंद रहने दो
चंद लोगों को चंद ही रहने दो
खुशी का चंदा मत दो।
25 October 2009 at 10:18 am
achha vichar hai. aise vicharon ko hum dhyan mein rakh kar aage badhen to sahi disha mein kadam badhane mein madad milti hai.
25 October 2009 at 12:02 pm
जो हो, दान तो उसी का कर सकते हैं। किसके पास है इतनी खुशी, फिर भी
जिंदगी के हर मोड़ पर
सुनहरी यादों के एहसास रहने दो।
सुरुर दिल में जुबां पे मिठास रहने दो।
यही फलसफा है जीने का,
ना ख़ुद रहो उदास
ना दूसरों को उदास रहने दो।
25 October 2009 at 2:04 pm
लाजवाब विचार है .............
25 October 2009 at 9:31 pm
दुसरो को खुशी देना सर्वोत्तम दान है....Padhkar dil khush hua.
27 October 2009 at 4:05 am
बहुत सुन्दर विचार है धन्यवाद और शुभकामनायें
28 October 2009 at 1:52 am
मन में अगर पोझिटीवीटी या सकारात्मकता हो तो ही मन किसी को खुश कर सकता है. ज़िंदादिल बंदे ही ये कर सकते हैं.
खुशी वो दान है जो देकर हमें और खुशी देता है.
29 October 2009 at 4:16 am
सच कहा है आपने----
पूनम
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