छोटी सी बात लेकिन मतलब बहुत बडा
आज थोडी देर पहले "शव्द शिखर" नाम के ब्लांग पर आकांक्षा जी दुवारा लिखी एक लेख पढी, बहुत अच्छा लगा, ओर तभी मुझे एक बात जो मेरे संग बीती थी याद आ गई, काश आप भी ऎसा ही करे....
रक्त दान सच मै महान है, लेकिन उस मे डर रहता है कि पता नही इसे अच्छी तरह से चेक भी किया है या नही, कही रक्त दान देने वाला बीमार ना हो किसी खतरनाक बीमारी से, वगेरा वगेरा... आज से करीब १२,१३ साल पहले मेरी बाजु का आपरेशन हुया, जो करीब ४,५ घण्टॆ चला, क्यो कि बाजु की आधी हड्डी निकाल कर वहां पर कमर के पास से एक कच्ची हड्डी डालनी थी, ओर इस कारण खुन ज्यादा बहने की उम्मीद थी, मुझे ड्रां जी ने पहले ही बता दिया कि आप को कम से कम दो बोतल खुन चढ सकता है, ओर वो तुम्हे फ़्रि मै मिलेगा.... मेरी हिचकिचाहट देख कर ड्रां ने पुछा क्या बात है, तो मेने वेसे ही ड्रां से पुछा कि क्या ऎसा नही हो सकता कि मेरा खुन आज ही ले ले क्योकि अभी आपरेशन को करीब डेढ महीना है, ओर फ़िर आपरेशन के समय मुझे मेरा ही खुन मुझे चढा दे,ड्रां ने कहा हां क्यो नही यह हो सकता है, ओर बहुत से लोग ऎसा करते है, लेकिन तुम्हे एक बोटल आज ओर फ़िर ३ सप्ताह बाद दुसरी बोतल देनी होगी, मेने दो बार अपना खुन दान दिया, लेकिन इस दोरान खुब फ़ल खाये ओर मेरा खुन कम होने की जगह ज्यादा हो गया, ओर फ़िर अप्रेशन के बाद जब जरुरत पडी तो मुझे मेरा ही खुन मुझे दिया गया.
लेकिन यह उन ही मामलो मै होता है जिन मै पता हो कि आपरेशन कब होगा, एमर्जेंसी मै इस तरह से नही हो सकता, ओर हमारा खुन ६ सप्ताह से ज्यादा भी नही रह सकता, मै कोई ड्रां नही बस आकांक्षा जी की पोस्ट पढी तो याद आ गया ओर टिपण्णी देता तो मेरी टिपण्णी उन के लेख से भी बडी हो जाती, अगर आप को कभी ऎसी नोबत आये तो क्या मेरी सलाह मानेगे?
हां मेरी बाजु की हड्डी धीरे धीरे ठीक हो गई यानि फ़िर से पक्की हो गई,
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22 September 2009 at 8:33 pm
चलिए इस बहाने आप के साथ घटी घटना का पता लगा। नियमित रूप से रक्तदान करना स्वास्थ्य के लिए उत्तम है। वर्ष में दो बार ऐसा किया जाए तो बुरा नहीं है। हर व्यक्ति ऐसा करता रहे तो किसी जरूरमंद को तकलीफ न हो।
22 September 2009 at 9:35 pm
कमाल है... आप भी लाजवाब हैं
22 September 2009 at 11:02 pm
दंगों में सड़को पर खून बहाने से बेहतर है इसे रगों मे बहाया जाये ताकि वक़्त पड़े तो यह किसी के काम आये
23 September 2009 at 2:37 am
bahut hi kamal ka sansmaran aapne bataya..
apna khoon swayam ke liye bhi daan kiya jaa sakta hai yah pata nahi tha..
lekin rakt-daan sarwottam daan hai..kab, kahan, kise, kaise rakt ki awashyata pad jaaye koi nahi kah sakta hai..
bahut hi accha lekh..
aabhar..
23 September 2009 at 3:34 am
मेरे मन की बात दिनेश जी ने कह दी है !
23 September 2009 at 3:47 am
आपने सही मूल्याकन किया है।
बधाई!
23 September 2009 at 3:54 am
बहुत सही!
23 September 2009 at 4:08 am
प्रेरक
23 September 2009 at 4:42 am
बहुत प्रेरक बात कही .
रामराम.
23 September 2009 at 5:15 am
रक्त दान कहते हैं महा दान है , प्रेरक और रोचक वाकया....
regards
23 September 2009 at 6:16 am
सही बात है, जब अपने ही खून से अपना भला हो सकता है तो दूसरे का खून क्यों लिया जाए? उस दूसरे के खून से किसी अन्य जरूरतमंद की भलाई हो सकती है।
बहुत सुन्दर लिखा आपने!
23 September 2009 at 6:27 am
रक्तपान के सीजन में रक्तदान की बात सुख देती है
आपका सुझाव बड़ा उपयोगी है राज जी,
धन्यवाद !
23 September 2009 at 8:11 am
जीवनोपयोगी बात बताई है जी आपने, धन्यवाद
प्रणाम स्वीकार करें
23 September 2009 at 8:56 am
कल शाम को एक सज्जन का फोन आया था.. उनके पिताजी का आपरेश्न है.. ओ + ब्लड चाहिये.. आज दोपहर में जाकर दे आऊगां...
बहुत जरुरी है..
23 September 2009 at 9:04 am
समझदारी का काम किया किसी दुसरे की बिमारी से बचे !
23 September 2009 at 9:47 am
भाटिया जी, हम भी आपकी इस बात से सौ फीसदी सहमत हैं।
रक्तदान को महादान यूँ ही तो नहीं कहा जाता!!!!!!
25 September 2009 at 12:06 pm
behad gyanvardhak sasmarn .dhnwad
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