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अगर ऎसे शोचालये हमारे शहरो मै भी बन जाये तो?? हर पेड के नीचे....
आप भी कुछ अपनी राय दे, ताकि इस विषय पर आगे सोचा जाये....:)

14 टिपण्णी:
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योगेन्द्र मौदगिल said...
29 January 2009 at 2:25 am  

भारत में तो ये परम्परा रही है लेकिन ईंटों के कमोड पर.... हमने तो मैदान, रेत के टीलों, खड्डों, रेललाइनों, जोहड़ के किनारों, गन्ने के खेतों और भी न जाने कहां-कहां निवृति सुख भरपूर लिया है. हां कमोड का आइडिया ठीक है अगर चोरी ना हो तो...

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इष्ट देव सांकृत्यायन said...
29 January 2009 at 3:13 am  

हा-हा-हा....

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Anonymous said...
29 January 2009 at 3:35 am  

अच्छा है..

योगेन्द्र जी की बात भी गौर करने लायक है...

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ताऊ रामपुरिया said...
29 January 2009 at 3:57 am  

हां, पर इस पर एक छतरी बारिश से बचने के लिये जरुर लगवाई जानी चाहिये. :)

रामराम.

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सुशील छौक्कर said...
29 January 2009 at 6:13 am  

देखकर तो हँसी आ गई।

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मस्तानों का महक़मा said...
29 January 2009 at 8:17 am  

चलते रास्तो पर कही नज़र पड़ी तो देखा ,
रूकते ढीकानो पर रुककर भी देखा,
न जाने कहा कहां-कहां देखा
पर वो जरूर देखा जहां की मझे लालसा थी
गाड़ियों के बगल मे,बस की आड़ मे,मुड़ती दिवारों पर, गलियों की नालियों पर...
क्योकि आज़ादी में ही मज़ा है खुले का ।
पर आज़ादी कैसी जिसमे एक दुसरे की नज़रों से परहैज़ हो ।
तो क्यू न कुछ एसा सोचे जो ना नज़रों के घेरे मे हो और न समाज की गालियों मे ।

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अनिल कान्त said...
29 January 2009 at 11:48 am  

मर्दों के लायक तो ठीक है पर इस तरह खुले में स्त्री के लिए उचित नही ....हाँ अगर चोरी न हो तो पुरूष जिस तरह से खुलेआम करते फिरते हैं इधर उधर वो बंद हो जाएगा ...गंदगी से निजात मिल सकेगी ...


अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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डॉ .अनुराग said...
29 January 2009 at 2:27 pm  

लोग रात में ही उठाकर ले जायेगे भाटिया जी

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कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra) said...
29 January 2009 at 2:42 pm  

सब तो ठीक है पर मेरे विचार से दो समस्यायें आएँगी-

१. इसमें पानी कहाँ से आएगा?
२. निवृत्ति सुख लेने वाले कुछ योजनगंधा लोगों से कौन बचायेगा?

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Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...
29 January 2009 at 3:50 pm  

भाटिया जी, आइडिया तो घणा जोरदार है....

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Hari Joshi said...
29 January 2009 at 4:54 pm  

विचार तो उत्‍तम है लेकिन डा0 अनुराग की बात पर गौर कीजिएगा।

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कुन्नू सिंह said...
29 January 2009 at 6:47 pm  

बचपन मे हर जगह ही :))

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Tapashwani Kumar Anand said...
30 January 2009 at 5:59 am  

सुझाव क्या दूँ मुझे तो अभी भी शर्म आ रहा है |
एक कोना जहाँ सुकून था वह भी आम जनता की पहुच से दूर नही रह सका |
:-)

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भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...
31 January 2009 at 6:33 am  

क्या खूब चित्र हैं, मुझे तो इन्तजार रहता है.

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