आक्रोश,नफ़रत???
इस दुख की घडी मे मै अपनो से बहुत दुर बेठा हूं, ओर यह सारी घटनाये हम ब्लांग पर ,इन्ट्रनेट के जरिये भारतीय आखबरो से या फ़िर जर्मन टी वी ओर अन्य टीवी के साधनो से पता कर पाते है, ओर यह साधन ( टी वी ओर न्युज पेपर) कितने सच्चे है पता नही, लेकिन इन पर विशवास करने के सिवा कोई चारा भी नही, आज जर्मन टी वी पर बता रहे थे की आतंकी होटलो मे पहले से ही किसी न किसी रुप मे थे, कई गेस्ट के रुप मे तो कोई कर्मचारी के रुप मे थे, यानि वहां बहुत लोग थे हमला करने वाले, ओर यह न्युज देख कर मेरे मन मे एक खयाल आया. कि अगर ऎसा था तो आईंदा लोग नोकरी देने से पहले , होटल मे कमरा देने से पहले, घरो मे किराये पर मकान देने से पहले सॊ बार सोचेगें.
वेसे ऎसा हमारे यहां काफ़ी समय से है, अगर आप भारतीया है तो कोई प्रोबलम नही,(आप के नाम के साथ भारत लगा है, आप का धर्म कोई भी हो आप नेक इंसान है) आप को सब जगह स्वागत है, आप को नोकरी, माकन लेने मे कोई कठिनाई नही, लेकिन अगर आप पाकिस्तानी है तो ..... लेकिन अब इस हादसे( मुंबई) के बाद लगता है यह युरोपियन लोग भारतीया होने के साथ साथ अब हमारा धर्म भी ना पुछने लगे.
क्योकि यह मुंबई हादसे ने लोगो को(विश्व) को झंकोर के रख दिया है ,भारतीया लोग एक दम से सहम से गये है, क्यो कि हम कितना भी विदेश मे रह ले हमारी सोच, हमारा मन , हमारा दिल तो भारत मै ही है, हमारी पहचान भारत है, जब भारत मै कुछ अच्छा होता है हम सीना फ़ुला कर चलते है, ओर पुरे युरोप मै भारतीयो का ओर भारत का बहुत मान है, यह लोग हमारी संस्कृति को बहुत समान से देखते है ओर भारत को एक महान द्रिश्ति से देखते है.ओर भारत को एक शांति वाला देश समझते है,
कुछ खबरे मेरे भारत के वीर जवानो की जिन पर हमे मान होना चाहिये
'डर के आगे जीत है...' ,नेता लोगों को तो अपने काम से काम है, ये भीख मांगने आते हैं वोटों की और उसके बाद लोगों को भूल जाते हैं,
'यह किसी के लिए भगवान होने जैसा था'
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4 December 2008 at 3:22 am
बाहर हमें क्या समझा जाता है , ये महत्वपूर्ण नहीं है। हम खुद को क्या समझते हैं ये जानना ज्यादा ज़रूरी है...
4 December 2008 at 4:39 am
ये दुखद स्थितियॉं हैं...
4 December 2008 at 4:57 am
लिंक के लिए आभार !
आप हमसे दूर कहाँ बैठे हैं ? यहाँ भारत में जितने ब्लॉगर बैठे हैं वो आपस में जितनी दूरी पर हैं आप भी उतनी ही दूरी पर हैं ! आपका दिल तो आज भी हिन्दुस्थान में धड़कता है ! क्या हुआ आप चंद घंटे की दूरी पर है !हमें तो आप हमेशा पास ही लगते हैं !
भला हो विज्ञान का , जिसने ये दुरिया मिटा दी ! पहले अपनों से यूरोप में बात करने के लिए काल बुक करके इन्तजार करना पङता था ! आज तो जब इच्छा हो जाए लोकल की तरह बात कर सकते हैं !
रामराम !
4 December 2008 at 3:59 pm
हमारे देश में सुरक्षा बलों के पास आधुनिक हथियार होना चाहिए. भारत के वीर जवानों के बदौलत ही हम सभी इस विशाल देश में सुरक्षित भी है .
4 December 2008 at 4:11 pm
आपने सही कहा है. निराशा की घड़ी में थोड़ी-सी सांत्वना भी दवा का काम करती है.
4 December 2008 at 7:40 pm
आपकी बात सही है..हमारी पहचान, हमारी अस्मिता ही संकट में है।
4 December 2008 at 9:05 pm
आपसे पूर्ण रूप से सहमत हूं
5 December 2008 at 4:37 am
सही कहा है आपने इस तरह की घटनाओं के बाद कुछ दिक्कतें तो बढेंगी ही | आपकी चिंता जायज है |
5 December 2008 at 7:12 am
शायद ऐसे कठिन समय हमारी परीक्षा के लिए ही आते हैं।
5 December 2008 at 1:35 pm
ताऊ से सहमअत हूं...इन जुड़ी भावनाओं संग तो कोई दूरी-दूरी नहीं
6 December 2008 at 7:48 am
निश्चित रूप से कुछ तो फर्क पड़ेगा
regards
9 December 2008 at 8:09 am
Gehri baat..
11 December 2008 at 5:29 pm
राज भाई आपकी भावनाओं को समझता हूं आप की अपने देश के प्रति जो भावनाएं हैं वही संवेदना आप उन लोगों के लिए रखते हैं जिनका हमारे देश से बस इतना नाता था कि वो हमारे मेहमान बनकर आए थे। ऐसे क्षण में हमारी सदभावनाएं आपके साथ है।
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