ताऊ की चलाकी
ताऊ की चालाकी
एक समय की बात है, जब ताऊ जवान हुआ करता था,ताऊ घर पर सोया था, ओर उधर नहर वाले खेत के पास से तीन अजनबी लोग गुजर रहे थे, दोपहर का समय था, ओर आसपास भी कोई नही था,अब तीनो ने सोचा चलो खेत मे चने लगे हे, ओर आसपास भी कॊई नही, ओर हमे भूख भी लगी हे, तो चने खाये जाये, यह तीनो लोग मे से एक ब्राह्मण था, एक क्षत्रिय था, ओर एक नाई, बहुत सोच समझ के बाद तीनो ने चने उखाडे ओर वही बेठ के खाने लगे.
ताऊ घर मे बेठा मक्खी मार रहा था, तभी ताई ने कहा जा जरा खेतो मे देख आ कोई जानवार ना घुस गया हो, बात ताऊ के दिमाग मे आगई, ताऊ लठ्ठ ले कर खेतो की तरफ़ चल पडा, अब ताऊ ने दुर से देखा कि तीन लोग चने के पोधे उखाड उखाड कर फ़सल खराब कर रहे है, खाते कम ओर नुक्सान ज्यादा कर रहे हे, गुस्सा तो ताऊ को बहुत आया, फ़िर ताऊ ने चारो ओर देखा, आसपास कोई नजर भी नही आया, अब ताऊ ने सोचा कि सीधा जाकर अगर मेने लडाई की तो यह तीन है, ओर मै अकेला कही यह भारी ना पड जाये, तो फ़िर ताऊ ने अपनी बुद्धी का प्रयोग किया, केसे??
ताऊ गया उन के पास ओर पहले आदमी से बोला भाई साहब आप कोन, जबाब मे उस ने कहा मे एक ब्राह्मण हुं, तो ताऊ बडा खुश हुआ, बोला महा राज आप ने तो मेरा खेत ही पबित्र कर दिया अरे मुझे हुकम देते मे घर पर छोड आता, खाईये जितना चाहे,ओर हां अगर आप को घर के लिये भी चाहिये तो मे अपनी बेलगाडी से आप के घर पर चार पांच गठरी चनो की छोड आऊगां
फ़िर ताऊ दुसरे आदमी के पास गय, ओर बोला भाई सहाब आप कोन? तो उसने कहा मै क्षत्रिय हुं, इतना सुनते ही ताऊ बोला अरे कुवर जी आप तो हमारे अन्नदाता है, मेरे कितने अच्छॆ भाग्या है मेरे कुवरं साहब पाधारे आप भी खाईये जितना चाहे, अगर घर के लिये भी चाहिये तो हुकम मेरे महाराज कुवर साहव, अब आप खाईयेमै जरा इन से बात कर लू, फ़िर ताऊ तीसरे के पास गये, ओर बोले भाई साहब आप कोन तो तीसरा आदमी बोला जी मै नाई.
अब ताऊ बोला नाइ तेरी हिम्मत केसे हुयी मेरे खेत मे घुसने की बोल ससुरे, इन ब्राह्मण ने चने उखाडे यह हमरे पुजनिया है, हमारे व्याह शादी पर , किसी के मरने पर, दुख सुख मे हमे कथा सुनाते हे काम आते है, ओर यह कुवर साहब तो हमारी सरकार है, हमारे राजा, यह भि दुख सुख मे हमारे काम आते है, पर कमीने तु किस काम का ओर ताऊ नेउस हज्जम को जर्मन लठ्ठ से खुब बजाया,ब्राह्मण ओर क्षत्रिय दोनो नाई को पिटाता देख कर खुश हो रहे थे, जब ताऊ ने नाई को अच्छी तरह से बजा दिया तो उसे टागं से पकड कर खेत से बाहर फ़ेंक दिया,फ़िर ताऊ आया उस क्षत्रिय की तरफ़, ओर बोले क्यो कुवरं जी क्या खेत मेबीज तुम्हारे बाप ने दिया था, ओर खाद आप ने दादा ने दी थी, बोलो क्षत्रिय बोला नही तो , तौ बोला ब्राह्मण तो हमारे पुज्निय ठहरे , लेकिन आप ने फ़िर क्यु उखाडे हमारे चने, हे बोलो ओर फ़िर ताऊ ने अपना लठ्ठ उस क्षत्रिय पर खुब मांजा,क्षत्रिय को पिटाता देख कर नाई ओर ब्रह्माण बहुत खुश हुये, नाई मन ही मन कह रहा था साले जब मेरी पिटाई हुयी तो बहुत खुश था अब तु भी पिट, ओर ताऊ ने उसे भी मार मार के लाल कर दिया, उधर ब्राह्नाण कह रहा था कमीने को ओर मार अपने आप को कुवरं साहब मान रहा था, तो ताऊ ने उसे भी इतना मारा कि बेचारे से खडा भी ना हो पाया जा रहा था, ओर उसे भी टांग से पकड कर नाई की बगल मे फ़ेंक दिया.
उधर क्षत्रिय सोच रहा था अब गाव मे जा कर यह ब्राह्माण हम दोनो की खिली उडायेगा, देखो नाई ओर क्षत्रिय खुब पिटे, ओर हमे देख देख कर खुश भी हो रहा था, हे भगवान इस की भि पिटाई करवा,ओर अब ताऊ चले ब्राह्माण की ओर , ओर बोले पूजनीय जी अब आप की भी पुजा हो जाये तो केसा रहेगा,क्यो मेरे पुजनिया क्या यह खेत युही तेयार हो जाता है क्या, अरे इस मे बीज डालना पडता है, खाद डालनी पडती है, फ़िर मेहनत ओर फ़िर इस की हिफ़ाजत करनी पडती है, जब आप पुजा वगेरा करते हो तो कोई एक पेसा भी कम लेते हो?? बोलो... ओर ताऊ होगया चालू उस ब्राह्माण कि पुजा करने केलिये., ओर फ़िर ताऊ ने खुब पुजा की उस ब्राहमण की.....
शिक्षा:...अगर यह तीनो मिल कर रहते तो क्या इन की धुनाई हो सकती थी?? नही ना तीनो मिल कर एकता से नही रहे ओर बेज्जती ओर पिटाई करवाई, तो मेरे देश के वासीयो आप भी अपिस मे मत लडे सब मिल कर रहे, ओर मिल कर इन आतंकवादियो का मुकवला करे , इन गंदे नेताओ का मुंह काला करे इन्हे हटाये, लेकिन पहले आपस मे लडना बन्द करे , यह सन्देश सब भारत वासियो के लिये है, चाहे वो हिन्दु है, या मुसल मान,या फ़िर सिख ईसाई. आओ ओर इस विदेशी ताऊ( हमारे वाला ताऊ नही) से पिटने की व्ज्याए हम सब मिल कर उसे ही पीटे.
कॊइ गलती हो तो माफ़ करे, यह कहानी मेने कुछ अलग रुप मे कई साल पहले कही सुनी थी.
धन्यवाद
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18 October 2008 at 3:42 am
स्कूल में पढ़ी कहानी - एकता में बल है- वाली कहानी को इतने सालों के बाद आपने एक बार बहुत ही क्रिएटिव स्टाइल में रिवाइज़ करवा दिया। बहुत अच्छे। वैसे मैं सोच रहा हूं कि जब स्कूल में कहानी पढ़ाई जाती है--एकता में बल है--तो वही कहानी बार बार ---किसान के चार लड़के और लकड़ियों का गट्ठा----पढ़कर , सुनकर, और लिखकर बच्चे ऊब ही जाते होंगे....तो समय है कि समय के साथ साथ हमारे संदेश भी बदलें......जैसे जैसे हमारा सामाजिक परिवेश बदलता है,यह कहानियां भी बदलनी चाहियें ताकि इन की रोचकता को बनाये रखा जा सके।
बहुत बढ़िया कहानी कही गई है। ताऊ तो सचमुच छा गया। उस ने वी तिन्नां नूं ही मांज के दम लिया--इस करके एथों एह ही सिखिया मिलदी ऐ कि किसी नूं वी घट कदे नहीं समझना चाहीदा।
18 October 2008 at 3:44 am
सच बहुत ही सही सीख देने वाली कहानी सुनाई है। बहुत ही बढ़िया सीख। देश को ऐसे ही रहना चाहिए।
18 October 2008 at 4:02 am
सीख तो अच्छी है ताऊ की..मगर सुनेगा कौन..सब पिटेंगे और कोई रास्ता नहीं है.,
18 October 2008 at 4:34 am
अद्भुत प्रसंग। आंखे खोल देने वाला लेकिन बात तो उड़न तश्तरी यानी समीर लाल जी की फिट है।
18 October 2008 at 4:42 am
बहुत प्रेरक कहानी है ! धन्यवाद राज भाई !
18 October 2008 at 4:51 am
बात तो बहुत सही कि भाटिया जी लेकिन आजकल हिट तो ताऊ है,चाहे अपना हो या विदेशी। वैसे आपकी इस सीख की देश को आज वाकई बहुत सख्त जरुरत है।
18 October 2008 at 4:53 am
बहुत ही प्रेरक प्रसंग।पर हां! समीर लाल जी जैसे जीवन्त व्यक्ति की इतनी निराशाजनक टिप्पणी कुछ समझ में नहीं आई।
18 October 2008 at 4:53 am
हुत अच्छी प्रेरक कहानी | एकता में ही शक्ति है
18 October 2008 at 5:01 am
भाटिया जी ताऊ की लुटिया डुबोयेंगे क्या ? बिचारे का वैसे ही कोई धनधा चल नही रहा ऊपर ऐ आप उसकी स्टाईल पर भी चोट पहुँच रहे हो -कहानी तो जरूर अच्छी है मगर यथार्थवादी नहीं -वो कैसा ब्राह्मण था जो पिट गया .! असल ब्राहमण को कोई छू कर तो देख ले ? जिसे बुद्धि नहीं वह ब्राह्मण नहीं !
18 October 2008 at 5:24 am
भाटिया जी की सीख लाजवाब है, अपने ताऊ तो मस्त भोले हैं।
(अरविंद जी की बात समझ नहीं आई-असल ब्राहमण को कोई छू कर तो देख ले ? जिसे बुद्धि नहीं वह ब्राह्मण नहीं !)
18 October 2008 at 6:46 am
' sach kha hai unity is strength, inspiring story, but ye tau jee khan reh gye, abhee tk khaiton se laute nahe hain kya????????"
Regards
18 October 2008 at 8:28 am
इसे कहते हैं,एक तीर से दो शिकार.........
कहानी की कहानी और सीख की सीख
बहुत सुन्दर
18 October 2008 at 8:34 am
ताऊ आपकी कितनी तारीफ हो रही है यहाँ सुन रहें हैं न ...:-)
18 October 2008 at 9:00 am
च्छी प्रेरक कहानी | एकता में ही शक्ति है
18 October 2008 at 9:04 am
भाटिया साहब आपने ताई को जर्मन लट्ठ दे रखे हैं फ़िर भी मैं उन लठ्ठो से इसी अक्ल की वजह से बच के रह पाता हूँ ! आपके यहाँ जब चने के खेत को ये तीनो साफ़ कर गए तो भी ताऊ का पीछा नही छूटा ! क्योंकि ताऊ की किस्मत ने पक्का कर लिया है की उसका धंधा नही जमने देगी ! अब ताऊ के खेतो का हाल ताऊ की अगली पोस्ट में पढ़ लेना !
वैसे श्री मिश्रा जी की बात सही है की वो ब्राह्मण नकली ही था असली होता तो ताऊ के हाल ख़राब कर देता ! असली ब्राहमण वो होता है जिसमे अक्ल हो और उसको तो कुछ करना ही नही पङता ! सिर्फ़ जाकर ताई को भड़काना था ताऊ के ख़िलाफ़ ! फ़िर वो जर्मन लट्ठ हमेशा की तरह ताऊ पर पड़ते ! :) और ताऊ भी असली से थोड़े ही उलझता ? :) वो तो ताऊ ने देख लिया की नकली है सो निपटा दिया तीनो को ! वैसे आपकी कहानी दमदार है यहाँ ताऊ अंग्रेजो को रिप्रेजेंट करता दीखता है ! फूट डालो और राज करो !
18 October 2008 at 10:26 am
divide and rule policy !
18 October 2008 at 10:56 am
हम रामपुरिया ताऊ से सहमत हैं।
18 October 2008 at 12:23 pm
सौ फीसदी सही, दुरुस्त बात कही आपने.पर कौन सुनना समझना चाहता है यह सब???सदयों से जो हम गुलामी ढ़ो रहे हैं,कभी विदेशी ताकतों की और अब अपने ही देश में सत्तासीन इन फ़ुट डालकर शासन करने वाले नेताओं की,सब इसी के कारण तो है.
18 October 2008 at 4:22 pm
बहुत बढिया कहानी ! ताऊ तो असली मजे लेता है ! कुम्हार कुम्हारी को जीत नही पाया तो गधे के कान उमेठता है ! ताई से लट्ठ खाकर यहाँ इन तीनो गरीबो को कूट दिया ! : अभी लगाता हूँ भूतनाथ को उसके पीछे ! :) आज भूतनाथ नही आया क्या आपके पास ?
18 October 2008 at 6:00 pm
बचपन में भी पढ़ा था की एकता में बल है..ये सच आज भी सच है...एक रोचक ढंग से ये सच फिर से याद दिलाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया...बहुत ही अच्छी रचना है...
18 October 2008 at 6:01 pm
सीख तो हमेशा की तरह अच्छी है !! मगर लोग माने तब ना !!
18 October 2008 at 6:32 pm
TAU GERMNY WALE ,KYA SIKSHA DI HAI .
18 October 2008 at 8:32 pm
prerak kahni ke liye aabhar.
18 October 2008 at 8:32 pm
prerak kahni ke liye aabhar.
18 October 2008 at 10:03 pm
समय के साथ प्रसंग और व्यक्ति बदल सकते है लेकिन इस तरह की सिखलाई कालातीत होती हैं. सिखाने दीजिये, उत्तम.
18 October 2008 at 10:18 pm
ताऊ की बुध्दी में बल है भाई । अंग्रेजों से काफी सीख ली लगती है ।
19 October 2008 at 5:55 am
कितनी सुंदर बात है, जितनी तारीफ़ की जाय कम है. पर दुर्भाग्य है कि कोई इस से कुछ सीखेगा नहीं. वह पीटते रहेंगे और आम आदमी एक-एक करके पिटता रहेगा. इसे कहते हैं प्रजातंत्र की राजनीति.
19 October 2008 at 6:23 am
भूतनाथ मेरे कुरते की जेब मैं बैठ्या था
तिवारी साब अपन नै कुरता फाड़ कै भूतनाथ समेत हिन्द महासागर मैं फेंक दिया
अब भूतनाथ किसी खाली बोतल पै चढ़ कै डायरेक्ट जरमनी आ रह्या है साथ मैं युनिटी अर हिटलर बी सैं
ईब बेरा पाटेगा भाटिया जी नै
अब यें तीन्नों घुसेंगें खेत मैं
मिसरा जी नै बता ई दिया ताऊ नै समर्थन दे दिया अर मैं बी दे रह्या सूं
असली ब्राह्मण तै तौ भगवान बी डरै मेरा यकीन नहीं तो तिवारी साब तै बूझ लियो पर शाम नै जिब वें मूड मैं हों
19 October 2008 at 8:10 am
Raj ji, Tau ji aur sabhi mitragano ke liye..
isi kahani ko maine ek chitra katha ke roop me pesh kiya tha.. please is link par jayen.. :)
http://comics-diwane.blogspot.com/2008/08/blog-post_8610.html
19 October 2008 at 1:18 pm
जे ताऊ तो जबरदस्त है,त्वाडी पोस्ट भी।
19 October 2008 at 8:52 pm
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद
19 October 2008 at 9:41 pm
आपकी सभी कहानीया प्रभावीत करती हैं।
आप अब कहानी महारथी बन गै हैं।
आपका लेख "आगे पढें" :)
20 October 2008 at 10:59 am
Prasangon ka taana-baana rochak hai!....shiksha prad rachana hai!...dhanyawad!
20 October 2008 at 4:33 pm
भाटिया जी
ताऊ के पास अक्ल नहीं थी ये तो ताई की संगत का असर है। वरना तीनों ताऊ की तारीफ के कसीदे काढ़ते और ताऊ वाकई बैलगाड़ी में फसल लाद कर उनके घर पहुंचे आते।
26 October 2008 at 5:51 am
सुखमय अरु समृद्ध हो जीवन स्वर्णिम प्रकाश से भरा रहे
दीपावली का पर्व है पावन अविरल सुख सरिता सदा बहे
दीपावली की अनंत बधाइयां
प्रदीप मानोरिया
13 August 2018 at 8:31 pm
आपकी सभी कहानीया प्रभावीत करती हैं।
आप अब कहानी महारथी हैं।
visiter:- Rajput status
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