मां
मां का मान
बाग के माली ने कहा...... मां एक बहुत ही खुब सुरत फ़ुल है, जो पुरे बाग को खुशवु देती है.
आकाश ने कहा ......मां अरे मां तो एक ऎसा इन्द्र्धनुष है, जिस मै सभी रंग समाये हुये है.
कवि ने कहा....... मां एक ऎसी सुन्दर कविता है, जिस मै सब भाव समाये हुये है.
बच्चो ने कहा................मां ममता का गहरा सागर है जिस मे बस प्यार ही प्यार लहरे मार रहा है.
वाल्मीकी जी ने कहा.......मां ओर मात्र भुमि तो स्वर्ग से भी सुन्दर ओर पबित्र है.
वेद व्यास जी ने कहा.....मां से बडा कोई गुरु इस दुनिया मै नही.
पैगम्बर मोहम्मद साहब ने कहा.... मां वो हस्ती है इस दुनिया की जिस के कदमो के नीचे जन्नत है.
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14 October 2008 at 4:44 am
बहुत सुंदर व्याख्या है इस पवित्र शब्द की ! धन्यवाद !
14 October 2008 at 4:50 am
ma kisi bhi ke chshne se dekhne par sabse sunder lagti hai .kyoni ma ma hi hoti hai .
14 October 2008 at 5:18 am
प्रेम, ममता, वात्सल्य, त्याग का मूर्त रूप है 'मां'
14 October 2008 at 5:23 am
राज जी,
मां के विषय में तो कुछ भी कहना सूरज को दीपक दिखाना है। इसलिए मैं तो यही कहूंगा कि आप सचमुच महान हैं।
14 October 2008 at 5:33 am
Thanks for defining mother so beautifully.
14 October 2008 at 6:00 am
आपने बहुत अच्छी बात पढ़वाई धन्यवाद
14 October 2008 at 6:01 am
हमने नही देखा उसको कभी , पर उसकी हक़िकत क्या होगी, ऐ मां,ऐ मां तेरी सूरत से अलग, भगवान की सूरत क्या होगी,क्या होगी,हमने नही देखा…………… बहुत बढिया भाटिया जी,शब्द नही है मेरे पास आपकी तारीफ़ के लिये।
14 October 2008 at 6:23 am
मां वो हस्ती है इस दुनिया की जिस के कदमो के नीचे जन्नत है.
" aapka ye lekh prh kr dil bhr aaya hai, Maa kya hai kuch shabdon mey bkhan krna bhut mushkil hai, magar aapne jo jo bhe upmayen dee hain apne aap mey bhut he mukkamal hain, bhut sunder prestutee.."
Regards
14 October 2008 at 9:11 am
वाह भाटिया जी वाह...जिसको नहीं देखा हमने कभी पर उसकी जरूरत क्या होगी...ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान् की सूरत क्या होगी...
नीरज
14 October 2008 at 11:54 am
श्रीमानजी माँ के विभिन्न रूपों की महिमा बखान बहुत ही सटीक और सुंदर शब्दों मैं करने के लिए साधुवाद .
14 October 2008 at 12:05 pm
nihsandeh,maa ishwar ka doosra naam hai,
bahut sundar...jahan maa,wahan saundarya
14 October 2008 at 12:24 pm
Karunamayi or mamatamayi maan jinke ashirwad se ham sabhi fal fool rahe hai .
bahut sundar post Raaj ji abhaar
14 October 2008 at 3:24 pm
Sir aapki kavita "Maa" ek bahut hi sundar rachana hai...mujhe maa ka aanchal, maa ka sneh , maa ki mamta,maa ki mahima sub kuchh mere man ko chhoo gaya...
Sir "Maa" par meri kuchh bhavnai is url par hai, aapki ek najar aur aashish chahiye..
http://dev-poetry.blogspot.com/2008/08/blog-post_3922.html
14 October 2008 at 4:03 pm
mamatamayi maan ko praanam karta hun .
14 October 2008 at 4:04 pm
बहुत ही सुंदर.......
सत्य कहा ,माँ से ही जन्म है,उससे ही प्रेम की ऊष्मा है.यही एक शब्द है जो हर पीड़ा में सबसे पहले होंठों पर आता है.उसके बारे में कितना भी कहो,भाव को शब्दों में नही बाँधा जा सकता
14 October 2008 at 9:28 pm
Bahut badiya likha hai, maa ko pranam.
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