मे क्या करू,अपनी गलती केसे सुधारू ?
क्या आप इन की मदद कर सकते हे, कोई राय दे सकते हे ???
ओर जिस मकसद से मेने यह बांलग शुरु किया, मुझे पहले सप्ताह ही ३ मेल आई, लेकिन उन्हे रोमन मे पढने मे मुझे काफ़ी दिक्कत आई, लेकिन ३,४ बार पढने पर, सारी बाते समझ मे आ गई, ओर तीनो मेल अलग अलग बातो से समभंवित हे।
ओर तीनो ने हे अपने बारे बताने से मना किया हे, इस सप्तहा से मेरी छुट्टिया भी खतम हो गई , इस लिये यहां के लिये समय निकाल पाना काफ़ी कठिन हे...
तो आज की पोस्ट, इस मे सभी नाम ओर स्थान कलप्निक हे...
मुझे यह मेल दो, तीन दिन पहले मिला, लिखने वाले सज्ज्न २५ साल के हे, उन्हे एक बहुत ही मुस्किल आन पडी हे... उन की बात उन की जुवानी.....
मेरा नाम रंजन हे, उम्र २५ साल, थोडे दिनो बाद मेरी शादी होने वाली हे, ओर इस शादी से हम सब बहुत खुश हे, मे घर मे बडा हू इस लिये हमारे घर मे यह पहली बडी खुशी हे, ओर सभी को उस दिन का बेसब्री से इन्तजार हे, जब मॆ घोडी पर बेठ कर शादी करने जाऊगा....
अब सुनिये मेरी मुसिबत, फ़िर चाहे मुझे गालिया दे, लेकिन कोई रास्ता जरुर बताये, मॆ आप सब का बहुत आभारी हूगां,क्योकि इस मुसिबत ने मेरी सभी खुशियो को ग्रहण सा लगा दिया हे, ओर इस चिंता मे काफ़ी उलझा सा रहता हु, काफ़ी सोचता हु, लेकिन कोई रास्ता नजर नही आता, ओर किस से सलाह लू, समझ नही आता,
जब मे २१ साल का था तो हमारे पडोस मे एक परिवार आ कर रहने लगा, अकंल ४०,४५ साल के आसपास होगे ओर आंटी उन से ४,५ साल छोटी होगी, आंटी घर पर रहती हे, ओर अंकल पुलिस मे इस्पेंक्टर हे, इन के दो बच्चे हे , एक छोटी लडकी १०,१२ साल की हे ओर लडका १३,१४ साल का हे, पहले तो मे इन्हे अकंल ओर आंटी बुलाता था, लेकिन जब घरो मे आना जाना बढ गया तो मे इन्हे मोसी कह कर बुलाने लगा, ओर वह भी मुझे बेटा कहती हे।
एक बार मोसा की तबीयत खराब हो गई, ओर सब लोग अस्पताल मे उन्हे देखने गये, उन सब का रो रो कर बुरा हाल था,मेरे ममी पापा ने उन्हे बहुत होसला दिया, ओर सभी को घरपर खाना खिलाया, फ़िर मोसी ने कहा की वह आज तक कभी अकेली नही सोई, छोटे बच्चे भी डरते हे, तो मां ने मुझे भेज दिया, अब मोसी के घर पर सब मेरे साथ आये( मोसी, दोनो बच्चे ओर मॆ) काफ़ी रात हो गई थी , ओर बच्चे जाते ही सो गये, ओर मॆ मोसी के पास बेठ था, मोसी रोये जा रही थी, मे उन्हे चुप करा रहा था, इस बीच पता नही क्या हुआ ओर मोसी ओर मॆ.....
अब मुझे भी अच्छा लगता था यह सब, ओर मोसी भी जब चाहे मुझे बुला लेती, लोगो के सामने बेटा ओर मोसी, लेकिन ....मोसी मेरा पुरा ख्याल भी रखती थी,यह सिलसिला करीब ३ साल से चल रहा हे, अब जब मेरी शादी की बात चली तो मोसी मुझे धमकाने लगी हे, कि अगर तुम ने मुझे छोडा , ओर पहले की तरह से नही आये तो मे सब को बता दुगी, यह बात मोसी ने तब कही जब मेने उन के बुलावे पर भी उन के घर जाना छोड दिया, अब जाता हु तो बहुत गुस्सा दिखाती हे, ओर कहती हे जब भी बुलाऊ उसी समय आना वरना तुम्हे पुलिस मे पकडवा दुगी, मेरी एक दो फ़ोटो (बिना कपडो के) भी मोसी के पास हे,
अब मुझे डर हे कही मोसी मेरा घर बसने से पहले ही ना उजाड दे, अब मेने जाना बहुत कम कर दिया हे, तो मोसी हमारे घर आ जाती हे, अगर मेरे घर मे किसी को बता दिया,या मेरी होने बाली बीबी को यह सब पता चला या फ़िर मोसा को पता चल गया तो क्या होगा, मेरी गलती तो हे ही , लेकिन इसे सुधारू केसे, ओर इस बारे किस से बात करु, किस से सलाह लू, अगर सब को पता चल गया तो मे कही मुहं दिखाने लायक नही रहुगां.
गलती मेने बचपने मे आ कर की हे, लेकिन मोसी को भी सोचना चाहिये था, लेकिन करु क्या केसे इस मुसिबत से छुटकारा पाऊ, अगर आप मुझे कोई रास्ता दिखा सको तो मे आप का आभारी रहुगां
आप का आभारी
रंजन(कल्पनित नाम)
भारत
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29 August 2008 at 7:33 pm
मैं इस सवाल की नैतिकता / अनैतिकता पर
कोई भी टिपणी नही करना चाहूँगा ! सवाल
है उन महाशय का ! मेरा ऐसा सोच है की जो
उन्होंने बोया है वो तो काटना ही पडेगा ! और
उनको सारी बातों में साफगोई से काम लेते हुए
अपने घर वालो एवं होने वाली पत्नी से भी स्पष्ट
बात करके ही करनी चाहिए ! आज तक ये पोस्ट
मेरिटल अफेयर्स अखबारों में पढ़े थे आज आपसे
सुन रहा हूँ ! खैर......दुनिया में सब तरह के लोग हैं !
और सबकी अपनी मर्जी है ! इसमे कोई क्या कर सकता है ?
29 August 2008 at 7:39 pm
ये रंजन महाशय शरीफ बन रहे हैं !
जितने भोलेपन से इन्होने बात कही है !
उतने भोले और शरीफ ये नही हैं ! इनको
अभी भी ट्रांस्पेरेसी से काम लेना चाहिए !
इन कामों के परिणाम हमने तो अच्छे
नही देखे हैं !
29 August 2008 at 9:34 pm
ये जो रंजन महाशय की तकलीफ है ये हमारे यहाँ भी
शुरू हो चुकी है ! शायद इन विषयों पर हम बात ही
नही करना चाहते ! और आपने तो आपके ब्लॉग पर
ये विषय उठा भी लिया ! दुसरे यह बात उठाना तो दूर की
बात है शायद इस पर टिपणी भी नही करना चाहेंगे !
मैं ख़ुद आपके ब्लॉग पर इसको पढ़ कर टिपणी करने
से बच रहा था की कौन इन ठेकेदारों से पंगे लेगा ?
फ़िर दुबारा आया तो ताऊ रामपुरिया और उठापटक जी
की टिपणी मौजूद देख कर लिखने का साहस किया !
आपके साथ साथ इन दोनों टिपनीवीरों को भी धन्यवाद
देना चाहूँगा की इन्होने साहस तो किया !
आज अगर हम नैतिक मूल्यों की बात करेंगे तो वह
सिर्फ़ सतही और बेमानी होगा ! क्योंकि आतंरिक रूप
से नैतिक मूल्य ख़त्म हो चुके हैं ! हो सकता है कुछ
लोग मुझे गालियाँ भी दे पर मुझे फर्क नही पङता !
हमको ये कबूल करना ही होगा की इस समस्या में
हम लोग पश्चिमी देशों से ज्यादा पीछे नही हैं ! अब
मेरी राय तो यही होगी की भैया बोया पेड़ बबूल का
तो आम कहाँ से होय ! जो बोया वो काटो !
30 August 2008 at 12:59 am
जो ग़लत था वह सही कहा नहीं जा सकता है और दुर्भाग्य से सही किया भी नहीं जा सकता है. मगर वह कल था यह आज है - "बीती को बिसार के आगे की सुध ले"
अगर रंजन जी में इतनी हिम्मत है कि अपनी गलती को स्वीकार कर उसकी पूरी जिम्मेदारी ले सकते हैं तो मैं तो यही कहूंगा कि उनको किसी से भी डरने या ब्लैकमेल होने की ज़रूरत नहीं है. जैसा रामपुरिया जी ने कहा, "बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय" - परिणाम को खुशी से स्वीकार करें.
अगर वे आज से अपने चरित्र की गारंटी ले सकते हैं और उनमें अपनी गलती के लिए प्रायश्चित करने का दम है तो वे शादी के बारे में भी सोच सकते हैं. हाँ, यह बात पत्नी को बताने से पहले उसकी वैचारिक परिपक्वता और आगे के वैवाहिक जीवन पर पड़ने वाले परिणामों के बारे में अच्छी तरह सोच-परख लें.
30 August 2008 at 5:13 am
30 August 2008 at 5:53 am
.
आम नज़रिये से...तो यह उसका मामला है,वो जाने ।
ज्ञानी नज़रिये से इन सज्जन ( ? ) को नैतिकी मदर टिंक्चर 30 - 30 बूँद दिन में चार बार शर्म के एक चुल्लु पानी के साथ लेनी चाहिये, सब ठीक हो जायेगा ।
और... मेरे नज़रिये से तो एक अटैची लेकर जायें, और स्पष्ट कहें कि " मौसीजी, बहुत हो गया ये ’ नर - मादा ’ का खेल.. आओ भाग चलें और अब पति-पत्नी बन जायें । ज़ाहिर है कि ज़वाब उसका ना होगा, फिर एक लखनवी लप्पड़ और एकाध हरयाणवी झन्नाटेदार झाँपड़ मारे और ’ जय श्रीराम ’ बोल के अपना घर बसायें ।
बेवज़ह बिसूर रहें हैं, परस्पर मज़े लेने का संबन्ध कब तक ढो सकते हैं ।
30 August 2008 at 7:22 pm
डा० अमर कुमार जी हम मान गये आप को हर बिमारी की दवा हे आप के पास, आज से गुरु माना आप को.बहुत ही सही सलाह दी हे आप ने.
धन्यवाद
31 August 2008 at 4:54 pm
भाटिया साहब आपने डाक्टर साहब को गुरु मानने
में इतने दिन क्यूँ लगा दिए ? चलो देर आयद दुरुस्त आए ! :)
4 September 2008 at 1:16 am
भाटिया जी , तस्लीम. आप के ब्लॉग पर पहली बार आया. सोच रहा हूँ के आप को तो शायेद अब पाबंदी से पढ़ना पड़ेगा.
जहाँ तक इस कहानी का तालुक़ है , हमारे समाज में ऐसा बरसों से होता आ रहा है फ़र्क़ सिर्फ़ इतना पड़ा है के अब दुन्या चूँकि ग्लोबल विललेज बन गई है लिहाज़ा हर बात मिनटों मं इधर या उधर से मालूम हो ही जाती है.
जिन साहेब का किस्सा है उनको मेरा मशुरा तो यह रहेगा के ऐसी कहानी अपने उन लोगों को सुनाना चाहिए और उन से मशूरा लेना ज़यादा बेहतर होता है जिन के साथ ज़िन्दगी बिताना हमारे लिए ज़रूरी है यानी माँ बाप भाई बहिन.
ग़लती का एहसास जिसको होता है वह कभी अपनों को अपनी ग़लती बताने से झिझकता नही. जो अपनों को कुछ बताने से डरता है वह दरअसल अपनी ग़लती को ग़लती नही मानना चाहता. और यह उसकी दूसरी ग़लती होती है. पहली ग़लती खुले दिल से माफ़ कर दी जाती है लेकिन दूसरी ग़लती , ग़लती नही जुर्म कहलाती है. अब फ़ैसला तो उन्ही साहेब के हाथ है.
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