Feb
23
हम भी तो.......(सत्यम शिवम)
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Er. सत्यम शिवम
.
कविता
हम भी तो नभ के पंक्षी से,
बस ढ़ुँढ़ रहे अपना ठिकाना,
क्या है पता अगले ही पल,
किसको पड़े यहाँ से जाना।
है जिंदगानी बस यहाँ वहाँ,
कल थे कहाँ,आज है कहाँ,
न जाने कैसा हो कल का जहाँ?
हम भी तो वन के मोर से,
बरखा का बाट जोह रहे,
खुशियों से हर पल नाच कर,
दुख की गठरी को ढ़ो रहे।
बस मन ही मन में खुश हो के,
कल के सपने संजोते है,
यादों की मालाओं में,
पल पल के मोती पिरोते है।
हम भी तो रात में तारों से,
टुट के दुनिया बसाते है,
टुटते तारों से जो माँगो,
वो पल में मिल जाते है।
बस रात भर का होता है,
अपना नगर निराला सा,
हर ख्वाब होता है,
बस टिमटिमाते तारों सा।
जो दिन में खो जाते है,
बस रात में नजर आते है,
और हमको लुभाते है।
हम भी तो बगिया के फूल से,
खिलते और मुरझाते है,
खुशबु की नदियाँ बहा के,
गुलजार का गुलशन सजाते है।
ये फूल तो मुरझा जाते है,
बस खुशबु ही रह जाती है,
हमारे बाद हमारी पहचान,
हमारे सुकर्म ही तो बनाती है।
हम भी तो नदियों के जल से,
खुद अपना जल नहीं पीते है,
धरती की छाती सींच कर,
हरी भरी दुनिया उगाते है।
नदियाँ तो सागर में मिल जाती है,
बस जल ही जल रह जाती है,
अपना ठिकाना पा के वो,
बड़ी चैन की साँस पाती है।
हम भी तो वृक्ष के फल से,
खुद अपना फल नहीं खाते है,
राही की भूख शांत कर,
मँजिल का राह दिखाते है।
राही तरु की छावँ में,
थक के जो आश्रय पाता है,
कितना सुकुन तब दिल को,
बस ये सोच के आता है,
किसी को दे के ठिकाना अपना क्या जाता है।
बस ढ़ुँढ़ रहे अपना ठिकाना,
क्या है पता अगले ही पल,
किसको पड़े यहाँ से जाना।
है जिंदगानी बस यहाँ वहाँ,
कल थे कहाँ,आज है कहाँ,
न जाने कैसा हो कल का जहाँ?
हम भी तो वन के मोर से,
बरखा का बाट जोह रहे,
खुशियों से हर पल नाच कर,
दुख की गठरी को ढ़ो रहे।
बस मन ही मन में खुश हो के,
कल के सपने संजोते है,
यादों की मालाओं में,
पल पल के मोती पिरोते है।
हम भी तो रात में तारों से,
टुट के दुनिया बसाते है,
टुटते तारों से जो माँगो,
वो पल में मिल जाते है।
बस रात भर का होता है,
अपना नगर निराला सा,
हर ख्वाब होता है,
बस टिमटिमाते तारों सा।
जो दिन में खो जाते है,
बस रात में नजर आते है,
और हमको लुभाते है।
हम भी तो बगिया के फूल से,
खिलते और मुरझाते है,
खुशबु की नदियाँ बहा के,
गुलजार का गुलशन सजाते है।
ये फूल तो मुरझा जाते है,
बस खुशबु ही रह जाती है,
हमारे बाद हमारी पहचान,
हमारे सुकर्म ही तो बनाती है।
हम भी तो नदियों के जल से,
खुद अपना जल नहीं पीते है,
धरती की छाती सींच कर,
हरी भरी दुनिया उगाते है।
नदियाँ तो सागर में मिल जाती है,
बस जल ही जल रह जाती है,
अपना ठिकाना पा के वो,
बड़ी चैन की साँस पाती है।
हम भी तो वृक्ष के फल से,
खुद अपना फल नहीं खाते है,
राही की भूख शांत कर,
मँजिल का राह दिखाते है।
राही तरु की छावँ में,
थक के जो आश्रय पाता है,
कितना सुकुन तब दिल को,
बस ये सोच के आता है,
किसी को दे के ठिकाना अपना क्या जाता है।
Wednesday, February 23, 2011 | 7 Comments
Feb
17
तुझे पा लिया……(सत्यम शिवम)
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Er. सत्यम शिवम
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कविता
तुमको कभी ऐसे पाऊँगा,
तुझमे ही मै खो जाऊँगा,
मर जाऊँगा,मिट जाऊँगा,
पर अब जुदा हो ना पाऊँगा।
जैसे छायी हो रात की कालिमा,
वैसे ही मै तुझमे समा के,
खुद को करुँगा लालिमा।
मेरी आत्मा,परमात्मा से,
मिल के जो सुख पायेगी,
मै कैसे कहूँ,क्या नाम दूँ,
शब्दों में कैसे व्यक्त करुँ?
उस मधुर मिलन की कामना।
जो बीत गया उसे भूल कर,
अंदर की आँख को खोल कर,
मन के दीपक की ज्योत जला,
तेरे चरणों में मन को लगा।
चाहूँगा मै तुझे ऐसे प्रभु,
जैसे मौत की शय्या पे पड़ा,
कोई चाहता हो जीने की लालसा।
चाहत मेरी ऐसे पूर्ण हो,
मधुबन में जैसे कोई जीर्ण हो,
हो लालसा मद्भाल की,
हो कामना बस प्यार की,
मधुशाला में भी जो रहे,
बन के प्याले की मद्लालसा।
अब तु रहेगा,मै रहूँगा,
और बस चाहत रहेगी,
तेरे साथ मै,मेरे पास तु,
बन के ख्वाहिश बस साथ चलेगी।
तु नैनों में बस जायेगा,
हर जगह तु ही नजर आयेगा,
हिन्दू भी तु,मुसलिम भी तु,
इसा भी तु कहलायेगा।
राजा भी तु,प्रजा भी तु,
शासित भी तु,शासक भी तु,
सुख दुख का सारा खेल तु,
सब भेदभाव मिट जायेगा।
मन स्वच्छंद उड़ता हुआ,
तब अपनी मँजील पायेगा।
सब को भूला,तु जो मिला,
बस तुझमे ही अब नेह लगा,
सब कष्ट मेरे अब मिट रहे,
जैसे पा लिया हो अमृत की थालसा।
तु साथ है,अब क्या प्यास है,
तु पास है,ये मेरी साँस है,
अब मै रहूँ तुझमे कहूँ,
तुझे पा लिया,तुझे पा लिया,
तुझको तो अब मै पा लिया।
Thursday, February 17, 2011 | 10 Comments
Feb
12
तुम बिन........(सत्यम शिवम)
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Er. सत्यम शिवम
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कविता
तुम बिन तो हम हरपल उदास है,
हर खुशी पास है, पर जाने किसकी आश है।
वो तो लगता है भूला देगी मुझे,
पर मै कैसे कहूँ, कि साँस तो चल रही है,
लेकिन धडकन उनके पास है।
तुम बिन हर मोर पर तन्हाई है,
महफिल में भी जिंदगी से मिली रुसवाई है।
कमबख्त इश्क भी क्या चीज है,
बिन कहे किसी को दिल दे देता है,
और मिलती है जब प्यास राहों में,
तो दरिया के साथ समंदर भर लेता है।
हर दर्द को दिल में कैद कर,
गम का सैलाब जो बनता है,
आँखे बरसने लगती है,
तुम बिन तो वो कुछ ना करता है।
किनारे पे भी आके मौजे लौट जाती है,
मँजिल के करीब भी आके राही,
रास्ता भूल जाता है।
तुम बिन तूफान आता है, और जाता है,
सदिया आती है, और जाती है,
सब मौसम फलक पे छाती है,
पर दिल से तेरी सूरत कभी ना जाती है।
तुम बिन दिन को रात लिखते है,
अकेले में खुद से ही बात करते है,
पलकों में ख्वाबों का बसेरा होता है,
बस तुम बिन कभी भी ना,
जीवन में सवेरा होता है।
बस तुम बिन, इक तुम बिन, तुम बिन.........
हर खुशी पास है, पर जाने किसकी आश है।
वो तो लगता है भूला देगी मुझे,
पर मै कैसे कहूँ, कि साँस तो चल रही है,
लेकिन धडकन उनके पास है।
तुम बिन हर मोर पर तन्हाई है,
महफिल में भी जिंदगी से मिली रुसवाई है।
कमबख्त इश्क भी क्या चीज है,
बिन कहे किसी को दिल दे देता है,
और मिलती है जब प्यास राहों में,
तो दरिया के साथ समंदर भर लेता है।
हर दर्द को दिल में कैद कर,
गम का सैलाब जो बनता है,
आँखे बरसने लगती है,
तुम बिन तो वो कुछ ना करता है।
किनारे पे भी आके मौजे लौट जाती है,
मँजिल के करीब भी आके राही,
रास्ता भूल जाता है।
तुम बिन तूफान आता है, और जाता है,
सदिया आती है, और जाती है,
सब मौसम फलक पे छाती है,
पर दिल से तेरी सूरत कभी ना जाती है।
तुम बिन दिन को रात लिखते है,
अकेले में खुद से ही बात करते है,
पलकों में ख्वाबों का बसेरा होता है,
बस तुम बिन कभी भी ना,
जीवन में सवेरा होता है।
बस तुम बिन, इक तुम बिन, तुम बिन.........
Saturday, February 12, 2011 | 5 Comments
Feb
07
आ जाओ माँ.....(सत्यम शिवम)
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Er. सत्यम शिवम
स्वर मेरा अब दबने लगा है,
कंठ से राग ना फूटे,
अंतरमन में ज्योत जला दो,
कही ये आश ना टूटे।
तु प्रकाशित ज्ञान का सूरज,
मै हूँ अज्ञानता का तिमीर,
ज्ञानप्रदाता,विद्यादेही तु,
मै बस इक तुच्छ बूँद सा नीर।
विणावादिनी,हँसवाहिनी!
तुझसे है मेरा नाता,
बिना साज,संगीत बिना भी,
हर दम मै ये गाता।
तेरा पुत्र अहम् में माता,
भूल गया है स्नेह तुम्हारा,
भूल गया है ज्ञान,विद्या,
धन लोभ से अब है हारा।
आ जाओ माँ आश ना टूटे,
दिल के तार ना रुठे,
कही तुम बिन माँ तड़प तड़प के,
प्राण का डोर ना छुटे।
कंठ से राग ना फूटे,
अंतरमन में ज्योत जला दो,
कही ये आश ना टूटे।
तु प्रकाशित ज्ञान का सूरज,
मै हूँ अज्ञानता का तिमीर,
ज्ञानप्रदाता,विद्यादेही तु,
मै बस इक तुच्छ बूँद सा नीर।
विणावादिनी,हँसवाहिनी!
तुझसे है मेरा नाता,
बिना साज,संगीत बिना भी,
हर दम मै ये गाता।
तेरा पुत्र अहम् में माता,
भूल गया है स्नेह तुम्हारा,
भूल गया है ज्ञान,विद्या,
धन लोभ से अब है हारा।
आ जाओ माँ आश ना टूटे,
दिल के तार ना रुठे,
कही तुम बिन माँ तड़प तड़प के,
प्राण का डोर ना छुटे।
Monday, February 07, 2011 | 9 Comments
Feb
03
आओ एक खेल खेले.... लेकिन बच्चे ,महिलाये ओर कमजोर दिल इसे ना खेले Game free
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राज भाटिय़ा
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Game
नीचे एक खेल दिया हे जिसे हम सब ने समय पास करने के लिये बहुत बार खेला हे, तो चलिये फ़िर से इसे खेले, अगर आप इस गेम मे जीत जाये तो आप को मान जायेगे.....
साबधान...... इसे बच्चे , नारिया ओर कमजोर दिल लोग ना खेले, यह चेतावनी के बावजूद भी कोई खेले तो खुद जिम्मेदार होगा, धन्यवाद.

साबधान...... इसे बच्चे , नारिया ओर कमजोर दिल लोग ना खेले, यह चेतावनी के बावजूद भी कोई खेले तो खुद जिम्मेदार होगा, धन्यवाद.
Thursday, February 03, 2011 | 9 Comments
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मैं कहता हूं कि आप अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में लिखें।उनको गरज होगी तो वे हमारी बात सुनेंगे। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा।*जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे तो हिंदी भाषा का दर्जा बढ़ेगा। महात्मा गांधी
अंग्रेजी का माध्यम भारतीयों की शिक्षा में सबसे बड़ा कठिन विघ्न है।...सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की
शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"महामना मदनमोहन मालवीय