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विचार

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आज का विचार....
मनोविकारो पर विजय प्राप्त करना ही आत्मा की सच्ची स्वतन्त्रता है.

15 टिपण्णी:
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M VERMA said...
10 October 2009 at 5:37 pm  

उत्तम विचार

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Unknown said...
10 October 2009 at 5:38 pm  

आपने शत प्रतिशत सही फरमाया भाईजी............

ये मन के विकार हमें बीमार कर देते हैं और बीमार आदमी को सारी दुनिया से चिढ सी हो जाती है.. मन स्वस्थ हो तो विकार नष्ट हो जाते हैं और विचार जन्म लेते हैं जो कि सृजन का कार्य करते हैं विध्वंस का नहीं.....

आपका अभिनन्दन ! इस अनमोल विचार के लिए.........

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Khushdeep Sehgal said...
10 October 2009 at 6:08 pm  

राज जी,
आत्मा किसी में बची हो तभी न...

जय हिंद

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Udan Tashtari said...
10 October 2009 at 6:23 pm  

धन्य हुए

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परमजीत सिहँ बाली said...
10 October 2009 at 6:25 pm  

सुन्दर विचार।

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विनोद कुमार पांडेय said...
10 October 2009 at 7:25 pm  

सौ आने सच्ची बात कही आपने...ये मनोविकार ही है जो मनुष्य को अजीबोगरीब काम करने पर मजबूर कर देता है और उसे उसका एहसास बाद में होता है...मनोविकार पर विजय निश्चित रूप से मनुष्य की सबसे बड़ी विजय होती है.

बहुत सुंदर विचार..बधाई!!!

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Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...
10 October 2009 at 10:49 pm  

भाटिया जी.....ससुरे मन के चलते तो आत्मा कब की मर चुकी है ।

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Anil Pusadkar said...
11 October 2009 at 8:12 am  

भाटिया जी लगे हुयें तो है मगर मन बड़ा चंचल है।

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दिगम्बर नासवा said...
11 October 2009 at 8:56 am  

UTTAM VICHAAR HAI .... AUR ISKO POORA KARNE KE LIYE .... EKAAGRATA AUR DHYAAN LAGAANA AASAAN MAARG HAI ....

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अजय कुमार said...
11 October 2009 at 10:41 am  

aajkal manovikaron ke bojh se aatma dab gayi hai

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डॉ महेश सिन्हा said...
11 October 2009 at 2:01 pm  

सत्य वचन

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Unknown said...
11 October 2009 at 2:49 pm  

बिल्कुल सही विचार है किन्तु मनोविकारों पर विजय प्राप्त करना बहुत ही मुश्किल कार्य है।

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Alpana Verma said...
12 October 2009 at 7:53 am  

Satya vachan

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निर्मला कपिला said...
12 October 2009 at 11:00 am  

बिलकुल सत्य वचन हैं धन्यवाद्

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स्वप्न मञ्जूषा said...
12 October 2009 at 10:21 pm  

Bhatiya ji ye kaam nahi aasaan...!!

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