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12 टिपण्णी:
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Udan Tashtari said...
24 January 2009 at 2:09 am  

ताऊ भी सेब बन गया होगा इस गड्डी में.

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Dr Parveen Chopra said...
24 January 2009 at 2:14 am  

ताऊ की गड्डी में भरे इतने ता़ज़े ताज़े सेब चुरा कर खाने की इच्छा हो रही है, बताइये क्या करें ?

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Anonymous said...
24 January 2009 at 3:50 am  

सेब हैं।

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ताऊ रामपुरिया said...
24 January 2009 at 6:03 am  

क्या जमाना आ गया? ताऊ ने अभी खेती बाडी शुरु की है और भाटिया जी ने ताऊ की ये लोडर भी जब्त कर ली? :)

अरे भाईयों, ताऊ से जो पिस्से भाटिया जी को लेने थे उसके एवज मे भाटिया जी ये ताऊ की लोडर जब्त करके ले गये .

भाई वापस करवाईये, वर्ना खेतों मे सब सेब खराब हो जायेंगे.

रामराम.

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Anil Pusadkar said...
24 January 2009 at 6:06 am  

ये बढिया है कभी घोड़ा तो कभी सेब,गाड़ी का इतना बेहतरीन इस्तेमाल मैने आज-तक़ नही देखा।

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seema gupta said...
24 January 2009 at 7:08 am  

सेब की चोरी न बाबा न अगर ए गाड़ी ताई जी चला रही हुई तो?????????????

Regards

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सुशील छौक्कर said...
24 January 2009 at 8:07 am  

ताऊ रामपुरिया सही कह रहे है।

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द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...
24 January 2009 at 9:17 am  

अरे हमारे हिमाचल का सेब
!
ताऊ जी कहाँ ले जा रहे हो?


आपके ब्लॉग पर आकर मुझे मिली
टोबा टेक सिंह . यह मेरी सबसे
अधिक पसन्दीदा कहानी है. मेरे बुज़ुर्गोँ ने भी विभाजन का दंश झेला है.

द्विजेन्द्र द्विज

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Asha Joglekar said...
24 January 2009 at 9:50 am  

इतने सारे सेब ! फिर बाजार में महंगे क्यूं ?

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दीपक कुमार भानरे said...
24 January 2009 at 11:45 am  

श्रीमान जी इतना सारा सेब कान्हा ले जा रहे हैं . क्या इसका अचार डालेंगे या फिर फलों की दूकान खोल राखी हैं . जो भी है अच्छा है .
धन्यवाद .

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विष्णु बैरागी said...
24 January 2009 at 9:19 pm  

इसे कहते हैं बोलता चित्र।

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Tapashwani Kumar Anand said...
24 January 2009 at 10:42 pm  

हमारा भी ख्याल रखे, कुछ सेब इधर भी ...............

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