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मैं कहता हूं कि आप अपनी भाषा में बोलें, अपनी भाषा में लिखें।उनको गरज होगी तो वे हमारी बात सुनेंगे। मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा।*जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे तो हिंदी भाषा का दर्जा बढ़ेगा। महात्मा गांधी
अंग्रेजी का माध्यम भारतीयों की शिक्षा में सबसे बड़ा कठिन विघ्न है।...सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की
शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"महामना मदनमोहन मालवीय
24 January 2009 at 2:09 am
ताऊ भी सेब बन गया होगा इस गड्डी में.
24 January 2009 at 2:14 am
ताऊ की गड्डी में भरे इतने ता़ज़े ताज़े सेब चुरा कर खाने की इच्छा हो रही है, बताइये क्या करें ?
24 January 2009 at 3:50 am
सेब हैं।
24 January 2009 at 6:03 am
क्या जमाना आ गया? ताऊ ने अभी खेती बाडी शुरु की है और भाटिया जी ने ताऊ की ये लोडर भी जब्त कर ली? :)
अरे भाईयों, ताऊ से जो पिस्से भाटिया जी को लेने थे उसके एवज मे भाटिया जी ये ताऊ की लोडर जब्त करके ले गये .
भाई वापस करवाईये, वर्ना खेतों मे सब सेब खराब हो जायेंगे.
रामराम.
24 January 2009 at 6:06 am
ये बढिया है कभी घोड़ा तो कभी सेब,गाड़ी का इतना बेहतरीन इस्तेमाल मैने आज-तक़ नही देखा।
24 January 2009 at 7:08 am
सेब की चोरी न बाबा न अगर ए गाड़ी ताई जी चला रही हुई तो?????????????
Regards
24 January 2009 at 8:07 am
ताऊ रामपुरिया सही कह रहे है।
24 January 2009 at 9:17 am
अरे हमारे हिमाचल का सेब
!
ताऊ जी कहाँ ले जा रहे हो?
आपके ब्लॉग पर आकर मुझे मिली
टोबा टेक सिंह . यह मेरी सबसे
अधिक पसन्दीदा कहानी है. मेरे बुज़ुर्गोँ ने भी विभाजन का दंश झेला है.
द्विजेन्द्र द्विज
24 January 2009 at 9:50 am
इतने सारे सेब ! फिर बाजार में महंगे क्यूं ?
24 January 2009 at 11:45 am
श्रीमान जी इतना सारा सेब कान्हा ले जा रहे हैं . क्या इसका अचार डालेंगे या फिर फलों की दूकान खोल राखी हैं . जो भी है अच्छा है .
धन्यवाद .
24 January 2009 at 9:19 pm
इसे कहते हैं बोलता चित्र।
24 January 2009 at 10:42 pm
हमारा भी ख्याल रखे, कुछ सेब इधर भी ...............
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