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दादी मां

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भाई अब तो आप सब लोगो को दादी मां से खुब प्यार हो गया होगा, मेने मह्सुस किया है, तो चलिये आज फ़िर से हम आप को दादी मां से मिलवाते है...

एक बार दादी के पोते पोतियां सब उस से मिलने गावं मे आये, दादी मां बहुत खुश थी, सारा दिन घर मे खुब शोर शरावा, उधम मचाते बच्चे इधर उधर भागते बच्चे, कभी कभी दादी भी सब बच्चो के साथ बच्चा बन जाती, दादी रोजाना नयी से नयी कहानिया सुनाती, एक दिन बच्चो ने कहा कि दादी आज हम शहर जायेगे ओर दादी मां को भी साथ ले जायेगे.

दुसरे दिन सुबह सब तेयार हो गये, ओर दादी मां ने सब बच्चो को समझाया कि कोई भी बच्चा शरारत नही करेगां, ओर सब साथ साथ रहेगे, अब दादी मां ओर चारो बच्चे दो पोतियां ओर दो पोते जो सभी १६ से १३ साल के अन्दर थे, ओर फ़िर बस पकड कर सब साथ बाले कस्वे मे चले गये,सब ने दादी के साथ खरीदारी की, ओर फ़िर फ़िल्म भी देखी फ़िल्म देख कर सब बहुत खुश थे, तभी दादी ने कहा आओ बच्चो तुम्हे ठण्डी ठण्डी लाल पीली सोडे की बोतल पिलाऊ, ओर सामने की दुकान पर गई, पीछे से बच्चे आवाज मारते रहे, ओर दादी को भी यह दुकान कुछ अजीब सी लगी, लेकिन जब ऊपर लिखा है कि ठण्डी फ़्रिज की बोतल तो ठीक ही है, ओर दादी ने सामने की खिडकी पर बेठे एक लडके से कहा बेटा सब को एक एक ठण्डी ठण्डी बोतल देदै, अब अन्दर बेठा लडका भी कांपने लगा, ओर बिन बोले ही दादी को देखने लगा, दादी ने कहा मुये बंदर की तरह से क्या ठुकर ठुकर क्या देखे जा रहा है, जल्दी से बोतल निकाल, ओर अन्दर बेठा लडका अब बहुत डर गया,

तभी पीछे से दादी क पोता आया ओर बोला दादी दादी रुको यह देखो यह तो देशी दारु की दुकान है, अब वो अन्दर बेठा लडका भी थोदा मुस्कुराया, ओर दादी बोली कमबखत पहले क्यो नही , ओर फ़िर दादी खुद ही खुब हंसी, तभी उस ठेक के अन्दर से एक ओर आदमी आया ओर दादी मां को ओर बच्चो को कोला दे कर वह भी हंसने लगा, यही तो दादी मां का प्यार

23 टिपण्णी:
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ताऊ रामपुरिया said...
15 October 2008 at 6:12 am  

बहुत सुंदर वाकया ! अक्सर हमारी दादी माँ तो ऎसी ही थी भाटिया साहब ! पर आने वाली जेनेरेशन की दादी माँ ऎसी नही होंगी ! :) आख़िर पढी लिखी जो हैं ! :)

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Anonymous said...
15 October 2008 at 6:20 am  

ताउ जी दादी तो दादी ही रहेगी। दादी का प्‍यार तो सदियों से ऐसा ही है।

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seema gupta said...
15 October 2008 at 7:26 am  

"bhut sunder, dadeemaa heee to hotee hai jo bachpan ke sub galteyon ko chupa kr pyar kertee hai, dant or maar se bhee bchatee hai, to dade man se pyar ho bhee kyu na.. ha na??

Regards

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संगीता पुरी said...
15 October 2008 at 8:32 am  

मेरे मामाजी के साथ ऐसा ही वाकया हो चुका है। गर्मी में एक सफर के दौरान मेरी नानीजी उन्हें बार बार ठंडा पीने को कह रही थी , पर वह ताड़ी थी , देशी शराब। मेरे मामाजी पहचान रहे थे , वे बार बार पीने से मना करते और नानी बार बार पीने का आग्रह। अंत में उन्हें मां को बताना ही पड़ा िक वह शराब है।

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दीपक said...
15 October 2008 at 8:46 am  

हमेशा की तरह मजेदार !!सचमुच हमे दादी मां से प्यार हो गया है!!

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Nitish Raj said...
15 October 2008 at 9:32 am  

भाटिया जी दादी के प्यार की अलग ही बात होती है। मुझे याद है मेरी दादी मक्खन मथ के निकाला करतीं थीं और हम लोग को थोड़ा थोड़ा देकर सब छुपा के हंडिया में रख देतीं और फिर फिर अल्मारी में ताला लगा देतीं थीं। हम उनके पल्लू में फंसी चाबी चोरी से जब वो सोतीं थीं तो निकालते और फिर सारा मक्खन चट कर जाते पर थोड़ा छोड़ देते थे खाना खाने के लिए। हम चाचा ताऊओं के मिलाकर कुल ९ भाई हैं और १ बहन। बाद में दादी बहुत चिला चिल्ली करतीं। दादी से बहुत बाद में बताया था कि मुझे तुम लोगों का चाबी निकालना पता रहता था पर मैं हमेशा ही चाहती थी कि तुम लोग ऐसे ही खा लिया करो। बाद में तो मेरा नाटक हुआ करता था। ऐसी होती है दादी।

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भूतनाथ said...
15 October 2008 at 9:35 am  

पर मुझे तो याद ही नही आ रहा की मेरी दादी माँ कहाँ है ? मुझे भी उनकी याद आने लगी है !

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ilesh said...
15 October 2008 at 10:43 am  

bahot hi sundar....

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दीपक "तिवारी साहब" said...
15 October 2008 at 11:50 am  

बहुत सुंदर !

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admin said...
15 October 2008 at 1:01 pm  

वाकई दादी के प्यार के कहने। इस दिल को छू लेने वाली पोस्ट को पढवाने का शुक्रिया।

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दीपक कुमार भानरे said...
15 October 2008 at 2:05 pm  

श्रीमान जी बहुत अच्छा बाकया सुनाया . दादी ऐसी ही स्नेहमयी होती है .

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डॉ .अनुराग said...
15 October 2008 at 3:56 pm  

आहा बहुत सुंदर.....सबकी दादी एक सी होती है

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लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...
15 October 2008 at 7:39 pm  

सुँदर यादेँ बाँटने का शुक्रिया
दादी माँ ऐसी ही होतीँ हैँ ~~

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समीर यादव said...
15 October 2008 at 10:35 pm  

दिल को छूने वाले वात्सल्य प्रस्तुत करने हेतु धन्यवाद. दादी माँ तो सदैव इसी भावनाओं की रहेंगी लेकिन मुझे आशंका है कि वो नीला, पीला, नारंगी चींजे बदलती जायेंगी.

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सचिन मिश्रा said...
15 October 2008 at 10:42 pm  

Bahut badiya.

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संगीता मनराल said...
16 October 2008 at 7:03 am  

हा हा हा अच्छा वाकिया था| लेकिन मेरी दादी ऐसी बिलकुल नहीं थी और वैसे भी वो बहुत पहले ही चल बसी थी| आज मन करता है कि काश वो होती तो कितने मज़े करते|

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योगेन्द्र मौदगिल said...
16 October 2008 at 7:16 am  

वाह
रिश्तों को उकेरती हर बात अच्छी लगती है भाटिया जी
आपको बधाई एवं शुभकामनाएं

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Aruna Kapoor said...
16 October 2008 at 9:58 am  

aalekh padhhkar to muze bhi meri dadi yaad aa gai!...uttam rachanaa ke liye badhai ho bhatiyaji!

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Anonymous said...
16 October 2008 at 10:17 am  

बहुत अच्छा किस्सा है दादी माँ का

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जितेन्द़ भगत said...
16 October 2008 at 8:45 pm  

अफसोस कि‍ ऐसी दादी नहीं थी हमारी। अच्‍छी दादी का सुख भी खुशनसीबों को ही मि‍लता है।

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रंजना said...
17 October 2008 at 2:28 pm  

yah sahi rahi..majedaar,kabhi na bhool pane wala wakya raha

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समयचक्र said...
17 October 2008 at 5:34 pm  

ये दादी जी भी खूब जमी राज जी

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Asha Joglekar said...
18 October 2008 at 10:21 pm  

हमें तो दादी का सुख नही मिला . पर हमारे पोतियों को मिल रहा है । कहानी मजेदार है ।

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